श्रीलंका संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद के प्रस्ताव से अलग हुआ

March 1, 2020

श्रीलंका ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद (UNHRC) को सूचित किया है कि युद्ध के बाद जवाबदेही और सामंजस्य पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से पीछे हट रहा है। UNHRC ने सर्वसम्मति का प्रस्ताव अंगीकृत किया था , जिसमें श्रीलंका को तमिल अलगाववादियों के साथ गृह युद्ध के छह साल बाद 2015 में मानवाधिकार हनन के आरोपों की जांच करने के लिए कहा गया था। यह प्रस्ताव श्रीलंका द्वारा सह-प्रायोजित था, जिसने 2017 में दो और वर्षों के लिए विस्तार मांगा था। पिछले साल, परिषद ने श्रीलंका को एक विश्वसनीय जांच-पड़ताल को पूरा करने के लिए दो और साल की मंजूरी दी थी।

मुख्य बिंदु

यूएनएचआरसी का प्रस्ताव 40/1 श्रीलंका और 11 अन्य देशों द्वारा सह-प्रायोजित था। इसका मुख्य उद्देश्य तमिल टाइगर विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध के समय की हिंसा की जांच करना है।  तमिल विद्रोही अलग मातृभूमि की मांग कर रहे थे। उनका दावा था कि वे जातीय तमिल अल्पसंख्यक थे और इसलिए अलग मातृभूमि के लिए पात्र हैं।

अमेरिका-चीन की भूमिका

संयुक्त राज्य अमेरिका ने श्रीलंकाई सेना प्रमुख को युद्ध अपराधों का आरोप लगाते हुए अमेरिका में प्रवेश करने से रोक लगा दी है। विशेषज्ञों का मत ​​है कि यूएनएचआरसी से हटने का श्रीलंका का निर्णय अमेरिका के कदम का एक प्रभाव है।

क्यों?

चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर ले लिया है। अब चीन द्वारा इसका उपयोग नौसेना बेस के रूप में किया जाता है। श्रीलंका के आंतरिक राजनीतिक मामलों में चीन का काफी प्रभाव हैं। श्रीलंका में चीन और उसके रक्षा बलों की अधिक मौजूदगी के कारण अमेरिका श्रीलंकाई सेना प्रमुख की अमेरिका यात्रा के लिए आश्वस्त नही है।