स्टडी मटेरियल

ब्रह्मसमाज (1828)

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ब्राह्म समाज भारत का एक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन था जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। इसके प्रवर्तक, राजा राममोहन राय, अपने समय के विशिष्ट समाज सुधारक थे। 1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था। इसका एक उद्देश्य भिन्न भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बँटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था। उन्होंने ब्राह्म समाज के अन्तर्गत कई धार्मिक रूढियों को बंद करा दिया जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह, जाति तंत्र और अन्य सामाजिक।

सन 1814 में राजाराम मोहन राय ने “आत्मीय सभा” की स्थापना की। वो 1828 में ब्राह्म समाज के नाम से जाना गया। देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने उसे आगे बढ़ाया। बाद में केशव चंद्र सेन जुड़े। उन दोनों के बीच मतभेद के कारण केशव चंद्र सेन ने सन 1866 “भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज” नाम की संस्था की स्थापना की।

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ब्रह्मसमाज के सिध्दांत

ब्रह्मसमाज के उद्देश्य

  1. हिन्दू धर्म की कुरूतियों को दूर करते हुए, बौद्धिक एवम् तार्किक जीवन पर बल देना।
  2. एकेश्वरवाद पर बल।
  3. समाजिक कुरूतियों को समाप्त करना।

ब्रह्मसमाज के कार्य

ब्रह्मसमाज की उपलब्धि