प्रार्थना समाज के आंदोलन ने राजा राममोहन राय द्वारा बंगाल में स्थापित ब्रह्मसमाज (1828) से प्रेरणा ग्रहण की और व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के स्वस्थ्य सुधार के लिए अपनी सारी शक्ति धार्मिक शिक्षा के प्रचार में अर्पित कर दी। बंबई के पश्चात् धीरे-धीरे इसका विस्तार पुणे, अहमदाबाद, सतारा और अहमदनगर आदि स्थानों में भी हुआ।
प्रार्थना समाज के मुख्य नियम और सिद्धांत निम्नलिखित हैं :-
प्रार्थना समाज का उद्देश्य प्रार्थना और सेवा द्वारा ईश्वर की पूजा करना था। ब्रह्म समाज की भाँति उपनिषदों और भगवद्गीता की शिक्षाएँ उद्देश्य के आधार हैं किंतु एक बात में यह ब्रह्म समाज से भिन्न है, इसमें भारत के, विशेषत: महाराष्ट्र के, मध्यकालीन संतों – ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ और तुकाराम – की शिक्षाओं को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह एकेश्वर वादी नहीं है
प्रार्थना समाज ने रानाडे के नेतृत्व में जाति प्रथा, बाल-विवाह, मूर्ति पूजा तथा हिन्दू समाज की अन्य कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन किया। उसने 19वीं शताब्दी के नवें दशक में नारी जागरण की योजनाओं का आरंभ किया। आर्य-महिला-समाज की स्थापना (1882) उन्हीं योजनाओं का फल है।
1878 में प्रार्थना समाज द्वारा स्थापित पहला रात्रिविद्यालय जनशिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में अग्रेणी रहा। वासुदेव बाबाजी नौरंगे बालकाश्रम की स्थापना लालशंकर उमाशंकर द्वारा पंढरपुर में 1875 में हुई। यह बालकाश्रम बाद में प्रार्थना समाज के संरक्षण में आ गया। यह अपने ढंग की सर्वाधिक प्राचीन और बड़ी संस्था है और यह 1975 में अपनी शताब्दी पूरी कर चुकी है। प्रार्थनासमाज के संरक्षण में दो बलकाश्रम और चलते हैं – एक विर्ले पार्ले (बंबई) में डी.एन. सिरूर होम और दूसरा सतारा जिले के वाई नामक स्थान में है।
“दि डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसायटी ऑव इंडिया” नाम की संस्था, जो अछूतोद्धार के लिए प्रसिद्ध है, प्रार्थना समाज के एक कार्यकर्ता विट्ठल रामजी शिंदे द्वारा स्थापित हुई।
1917 में प्रार्थना समाज ने राम मोहन अंग्रेजी विद्यालय की स्थापना की। अब इसके संरक्षण से दस से अधिक विद्यालय बंबई और उसके आस पास चल रहे हैं।