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स्थापना – 1799
संस्थापक – रणजीत सिंह
शासनकाल – 1799–1849
सिख साम्राज्य का उदय / सिखों का इतिहास: सिखों के दसवें व अंतिम गुरू गोविंद सिंह (1675-1699) ने खालसा पंथ की स्थापना की और गुरू प्रथा को समाप्त कर पाँचवे गुरु अर्जुन देव द्वारा स्थापित “गुरू ग्रंथ साहिब” को ही अगला गुरू बताया। । गुरू गोविंद सिंह की हत्या गुल खां नामक पठान ने 07 नवंबर 1708 को की थी। मृत्यु से पूर्व उनके द्वारा बंदा सिंह बद को एक हुकमनामा के साथ पंजाब भेजा गया। इस हुकमनामा में लिखा था कि आज से आपका (उपदेश) नेता बंदा सिंह बहादुर होगा।
बंदा सिंह बुरा
बंदा सिंह बग को सिखो का राजनैतिक गुरू भी कहा जाता है।
बंदा सिंह बादल का जन्म कश्मीर में 27 अक्टूबर 1670 ई. में पूंछ जिले के राजोरी गाँव में हुआ था।
बंदा सिंह बादल का असली नाम लक्ष्मण देव था।
लक्ष्मण देव को बचपन से ही कुश्ती और शिकार आदि का शौक था।
15 वर्ष की आयु में एक गर्भवती हिरन का उनके हाथों शिकार हो जाने से वह बहुत शोक में पड़ गए और इस घटना से अपना घर-बार छोड़ कर बैरागी हो गए।
वह जानकी दास ने एक बैरागी के शैलों को बुलाया। अपना नाम बदल कर माधोदास कर लिया।
कुछ समय पश्चात वह नांदेड क्षेत्र को चले गए जहां गोदावरी के तट पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की।
03 सितंबर 1708 को नांदेड में सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह जी इस आश्रम में पधारे और उन्हें सिख बनाकर उनका नाम बंदा सिंह बग रख दिया।
गुरूगोविंद सिंह जी की मृत्यु के बाद उनकी अर्थानुरूप बंदा सिंह बहादुर पंजाब गए और सिखों के अगले नेता बने।
बंदा सिंह बाग और उनकी फौज ने सबसे पहले सोनीपत और फिर कोयल पर हमला किया।
12 मई 1710 को छोटे साहिबजादों (गुरू गोविंद सिंह के दोनों छोटे बेटों बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह) को शहीद करने वाले वजीर खां की हत्या कर दी गई और सरहिंद पर कब्जा कर लिया गया।
बंदा सिंह बग का उद्देश्य पंजाब में सिख राज्य स्थापित करना था। इन्होंने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
उन्होंने गुरुनानक और गुरू गोविंद सिंह के नाम के संकेतक भी चलवाये।
मुगल बादशाह फारूख सियर की फौज ने अब्दुल समद खां के नेतृत्व में उन्हें गुरूदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरूदास नंगल गाँव में कई महीनों तक घेरे रखा।
खाने-पीने की सामग्री के आभाव के कारण उन्होंने 07 दिसंबर 1715 को आत्मसमर्पण कर दिया।
फरवरी 1716 को 794 सिखों के साथ बांदा सिंह बादल को दिल्ली लाया गया।
जहां 5 मार्च से 13 मार्च तक रोजाना 100 अध्यायों को फांसी दी गयी।
16 जून 1716 को फुरुखसियर के आदेश पर बंदा सिंह और उनके मुख्य सैन्य अधिकारी के शरीर के टुकडे-टुकडे को दिया गया।
मरने से पूर्व बंदा सिंह बाग द्वारा किए गए कार्य – – कृषकों को बड़े जमींदारों की दासता से मुक्ति दिलाई। – उनके राज में मुसलमानों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता थी। – इनकी स्वंय की सेना में 5000 मुस्लिम सैनिक थे।
बंदा सिंह बादल के पश्चात और राजा रणजीत सिंह से पूर्व
बंदा सिंह बाग के पश्चात अच्छे नेतृत्व की कमी के कारण सिखाते हैं कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बट गए।
1748 में नवाब स्लूर सिंह की पहल से सभी शिक्षा समितियों का दलदलसा में विलय हुआ।
इस दलदलसा का नेतृत्व जस्सा सिंह आहलुवालिया को सौंपा गया।
बाद में इसे 12 दलों में विभाजित कर हर दल को मिसल (अरबी शब्द, जिसका अर्थ “बराबर”) कहा गया है।
सभी मिसल में से सबसे प्रमुख था सुकरचकिया। इसके मुखिया महारसिंह थे। महाराज रणजीत सिंह का जन्म वर्ष 13 नवंबर 1780 में गुजरांवाला (वर्तमान पाकिस्तान) में इन्ही महासिंह के घर में हुआ था।
महाराजा रणजीत सिंह
1798-1799 में रणजीत सिंह लाहौर के शासक बने 12-अप्रैल 1801 को रणजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि धारण की।
गुरुनानक देव जी के वंशज ने इनकी ताज पोशी की।
में उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाई और 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया।
महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाई लड़ी और उन्हें पश्चिम पंजाब की ओर खदेड़ दिया।
महाराज रणजीत सिंह का राज्य सूबों में बटा हुआ था। जिसमें से प्रमुख सूबा थे-
पेशावर
कश्मीर
मुलतान
लाहौर
अंग्रेज सिखों के बड़ते राज्य से भयभीत थे और जिस कारण सिखों से संधि कर अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करना चाहते थे। अमृतसर की संधि 25 अप्रैल 1809 को रणजीत सिंह और अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कंपनी के बीच हुई थी। – उस समय गवर्नर जनरल लार्ड मिन्टो था लेकिन संधि चार्ल्स मेटकाफ के नेतृत्व में हुई थी और संधि पर हस्ताक्षर भी चार्ल्स मेटकाफ के द्वारा ही किए गए। – इस संधि से सतलज के पूर्व का हिस्सा अंग्रेजों के हाथों में आया और सतलज रणजीत सिंह के राज्य की पूर्वी सीमा बन गई।
महाराज रणजीत सिंह के दो प्रमुख मंत्री फ़कीर अजीजुद्दीन (विदेश मंत्री) और दीनानाथ (वित्त मंत्री) थे।
शाहशूजा जो कि एक अफगानी अमीर था, दोस्त मुहम्मद से हारकर कश्मीर में पनाह लेकर रह रहा था को कश्मीर के सूबेदार आत्ममुहम्मद ने शेरगढ़ के किले में बंदी बना रखी थी।
कोहिनूर हीरा, महाराजा रणजीत सिंह को इसी शाहशूजा को रिहा कराने के ऐवज में शाहशूजा की पत्नी वफा बेगम द्वारा दिया गया था।
27 जून 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गयी।
रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों में तीन पुत्र मुख्य थे-
महाराजा खड़ग सिंह (1839-1840)
महाराजा सिंह (1841-1843)
महाराजा दिलीप सिंह (1843-1849)
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