स्टडी मटेरियल

अहमदनगर (दक्कन) 1617 ई.

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आगरा क़िले की झरोखा ख़िड़की में जहाँगीर के समय में दक्षिण विजय में महत्त्वपूर्ण रोड़ा था- ‘अहमदनगर‘ का योग्य एवं पराक्रमी वज़ीर मलिक अम्बर। अबीसीनिया निवासी मलिक अम्बर बग़दाद के बाज़ार से ख़रीदा एक ग़ुलाम था, जिसे अहमदनगर के मंत्री ‘मीरक दबीर चंगेज ख़ाँ‘ ने ख़रीदा था। अहमदनगर की सेना में रहते हुए मलिक अम्बर ने अनेक सैनिक एवं असैनिक सुधार किये। उसने टोडरमल की लगान व्यवस्था से प्रेरणा ग्रहण कर अहमदनगर में भूमि सुधार किया। उसने सैनिक सुधार के अन्तर्गत निज़ामशाही सेना में मराठों की भर्ती कर ‘गुरिल्ला युद्ध पद्धति’ को शुरु की। जिसने अपनी राजधानी को कई स्थानों पर स्थानान्तिरत किया।

पहले परेन्द्रा से जुनार, फिर जुनार से दौलताबाद और अन्ततः ‘खिर्की’ को अपने राजधानी बनाया। मलिक अम्बर ने जंजीरा द्वीप पर निज़ामशाही ‘नौसेना’ का गठन किया। उसकी बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के लिए मुग़ल सेना ने अहमदनगर पर सैन्य अभियान शुरू किया। सैन्य अभियान के अन्तर्गत सम्राट जहाँगीर ने 1608 ई. में अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना को, 1610 ई. में आसफ़ ख़ाँ के संरक्षण में शहज़ादा परवेज़ को, इसके बाद ख़ान-ए-जहाँ लोदी एवं अब्दुल्ला ख़ाँ को भेजा, पर ये सभी अबीसीनियन मंत्री ‘मलिक अम्बर’ पर सफलता प्राप्त करने में असफल रहे। अन्त में नूरजहाँ की सलाह पर 1616 ई. में जहाँगीर ने शाहज़ादा ख़ुर्रम (शाहजहाँ) को दक्षिण अभियान के लिए ‘शाह सुल्तान’ की उपाधि देकर भेजा। शाहज़ादा ख़ुर्रम की शक्ति से भयभीत मलिक अम्बर युद्ध किये बिना सन्धि करने के लिए सहमत हो गया। दोनों के बीच 1617 ई. में संधि हुई।

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संधि की शर्ते –

मुग़लों की अधीनता से मुक्त हो चुका ‘बालाघाट’ मुग़लों को पुनः प्राप्त हो गया। अहमदनगर के दुर्ग पर मुग़लों का अधिकार हो गया। 16 लाख रुपये मूल्य के उपहार के साथ बादशाह आदिलशाह ख़ुर्रम की सेवा में उपस्थित हुआ। ख़ुर्रम की इस महत्त्वपूर्ण सफलता से खुश होकर सम्राट जहाँगीर ने उसे ‘शाहज़ादा’ की उपाधि प्रदान की। बीजापुर के शासक आदिलशाह को जहाँगीर ने ‘फर्जन्द’ (पुत्र) की उपाधि प्रदान की। ख़ानख़ाना को दक्षिण का सूबेदार बनाया।

मलिक अम्बर ने ‘बीजापुर’ एवं ‘गोलकुण्डा’ से समझौता कर 1620 ई. में सन्धि की अवहेलना करते हुए अहमदनगर क़िले पर आक्रमण कर दिया। शाहजहाँ, जो उस समय पंजाब के ‘कांगड़ा’ के युद्ध में व्यस्त था, जहाँगीर के अनुरोध पर पुनः दक्षिण आया। शाहजहाँ एवं मलिक अम्बर के मध्य 1621 ई. में दोबारा सन्धि हुई। इस संधि के पश्चात् शाहजहाँ को उपहार के रूप में अहमदनगर, गोलकुण्डा, बीजापुर एवं कुछ अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों के शासकों से लगभग 64 लाख रुपये मिले। इस प्रकार साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से जहाँगीर के समय में दक्षिण में विशेष में सफलता नहीं मिली, परन्तु दक्षिण के इन राज्यों पर मुग़ल दबाव बढ़ गया।

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