स्टडी मटेरियल

चौहान वंश (शाकम्भरी, अजमेर के निकट) 551 ई.

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चौहान वंश की स्‍थापना

वासुदेव-

 इसने राजस्थान में चौहान वंश की स्थापना पहली बार 551 ई. में सांभर में की तथा इसने अपने साम्राज्य की स्थापना सांभर (सपादलक्ष) के आस- पास की थी। वासुदेव को चौहान वंश का आदिपुरूष माना जाता हैं। इसने अपने साम्राज्य की राजधानी अहिछत्रपुर (नागौर का प्राचीन नाम) बनाई। चौहान वंश की जानकारी 1170 ई. का बिजौलिया शिलालेख (भीलवाड़ा) देता हैं, इस शिलालेख का उत्कीर्णकर्ता जैन श्रावक लोलाक था। इस शिलालेख में चौहान वंश को वत्सगौत्रीय ब्राह्मण बताया गया हैं।

बिजौलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माता वासुदेव हैं, तथा यही शिलालेख जानकारी देता हैं कि सांभर में वासुदेव ने अपनी कुलदेवी शाकम्भरी माता का मन्दिर बनवाया था। वासुदेव राजस्थान में राजपूत वंश की स्थापना करने वाला प्रथम शासक था।

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दुर्लभराज प्रथम-

चौहान वंश का प्रथम शासक जिसके काल में अजमेर पर प्रथम बार मुस्लिम आक्रमण हुआ था। इसने वत्सराज का साथ देते हुए बंगाल के धर्मपाल को हराया ।

गूवक प्रथम –

सीकर में हर्षनाथ मन्दिर का निर्माण इसने ही करवाया था, जहां पर भगवान शिव की लिंगोद्भाव प्रतिमा हैं, इस प्रकार की राज्य में यह एकमात्र प्रतिमा हैं। हर्षनाथ को चैहानों का देवता माना जाता हैं, इस मन्दिर का निर्माण सिंहराज के काल में पूर्ण हुआ था।

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विग्रहराज द्वितीय-

चौहान वंश के प्रारम्भिक शासकों में सबसे बड़ा व प्रभावषाली तथा योग्य शासक था। इसने अन्हिलपाटन में चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को हराया तथा इसने भड़ौंच में कुलदेवी आशापुरा माता का मन्दिर बनवाया। हर्षनाथ के शिलालेख में इसके काल का विस्तृत वर्णन मिलता हैं।

गोविन्दराज तृतीय-

फरिश्ता- ने इसको गजनी के शासकों को मारवाड़ में आगे बढ़ने से रोकने वाला कहा था।

अजयराज-

अर्णाराज/आनाजी –

विग्रहराज चतुर्थ/बीसलदेव-

तथ्‍य –

 बीसलदेव ने दिल्ली से प्राप्त अशोक के शिलालेख के पास 9 अप्रैल 1163 को शिवालिक शिलालेख अंकित करवाया था। बीसलदेव का राज्य धर्म शैव था। किल होर्न ने बीसलदेव के बारे में कहा कि यह उन हिन्दू शासकों में से एक था जो कालिदास व भवभूति की होड़ कर सकता था।

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पृथ्वीराज तृतीय-

तथ्य-

मौहम्मद गौरी ने हिन्दुस्तान पर प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान के शासक करमाथी पर किया था इस युद्ध में गौरी की विजय हुई थी। गौरी की हिन्दुस्तान में प्रथम पराजय 1178 ई. में आबू/अन्हिलवाड़ा के युद्ध में गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय से हुई थी, मूलराज की अल्पायु थी इसलिए इसकी संरक्षिका इसकी माता नाईका देवी थी।

मौहम्मद गौरी व पृथ्वीराज तृतीय के बीच में दो तराईन के युद्ध हुऐ थे-

तराईन का प्रथम युद्ध (1191 ई.)-

तराईन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.)-

तथ्‍य – तराईन का तीसरा युद्ध 1215-16 ई. में इल्तुतमिष व गजनी के शासक यल्दौज के मध्य लड़ा गया था।

विशेष –