स्टडी मटेरियल

गुलाम/ममलूक वंश (1206 – 1290 ई.)

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प्रमुख मामलुक शासक –

मामलूक वंश के राजवंश-

कुतुबी वंश

कुतुबुद्दीन ऐबक

कुतुबुद्दीन ऐबक तुर्क जनजाति का था। काजी फखरूद्दीन अब्दुल अजीज कूफी ने सबसे पहले ऐबक को खरीदा एवं धनुर्विधा तथा घुडसवारी की शिक्षा दी। ऐबक कुरान पढ़ता था एवं कुरान याद की इस कारण वह कुरानख्वां के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बाद में मुहम्मद गौरी ने उसे खरीद लिया। मुहम्मद गोरी ने उसे अमीर-ए-आखूर(अस्तबलों का अधिकारी) के पद पर नियुक्त किया । कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गोरी का सबसे भरोसे का आदमी था इसी कारण गोरी ने ऐबक को अपने भारतीय विजित प्रदेशों की कमान सौंपी।

भारत में ऐबक का शासन काल

भारत में ऐबक का जीवन 3 चरणों में विभाजित था –

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अढ़ाई दिन का झोंपडा

कुतुबमीनार

इसका निर्माण कार्य कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रारंभ किया था। बाद में इल्तुतमिश ने इसका निमार्ण करवाया था। इल्तुतमिश ने इसकी 3 मंजिलों का निर्माण करवाया था (अब तक कुल मंजिल-4)। 1369ई. में बिजली गिरने से मीनार की ऊपरी मंजिल क्षतिग्रस्त हो गयी। फिरोज शाह तुगलक ने क्षतिग्रस्त मंजिल की मरम्मत करवायी एवं एक नई मंजिल का निर्माण करवाया(अब कुल मंजिल-5)। 1505 ई. में भूकम्प की वजह से मीनार को क्षति पहुंची बाद में सिकन्दर लोदी ने इसकी मरम्मत करवायी।

कुतुब मीनार का नाम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया।

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कुव्वल-उल-इस्लाम

2. शम्शी राजवंश

इल्तुतमिश इल्बारी जनजाति एवं शम्शी वंश से था। इल्तुतमिश ने शम्शी वंश की स्थापना की।

इल्तुतमिश

इल्तुतमिश, ऐबक का दामाद एवं बदायुं का गवर्नर(प्रशासक) था। इल्तुतमिश को अमीर-ए-शिकार का पद दिया गया। इल्तुतमिश भारत में तुर्की शासन का वास्तविक संस्थापक था। इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार को बनवाकर पूरा किया। इल्तुतमिश ने इक्ता व्यवस्था की शुरूआत की।

इक्ता व्यवस्था

इक्ता/अक्ता सल्तनत काल में एक प्रकार की भूमि थी जो सैनिक एवं असैनिक अधिकारियों को उनकी सेवाओं के लिए वेतन के रूप में प्रदान की जाती थी। इस भूमि से प्राप्त राजस्व, भूमि प्राप्तकर्ता(इक्ताधारी) व्यक्ति को प्राप्त होता था। पद समाप्ति या सेवा समाप्ति के बाद यह भूमि सरकार द्वारा वापस ले ली जाती थी।

इल्तुतमिश सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला दिल्ली का पहला शासक था। इल्तुतमिश ने यह उपाधि औपचारिक रूप से खलीफा अल मुंत सिर बिल्लाह से प्राप्त की थी।

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इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्को का चलन किया । इल्तुतमिश ने चांदी का टंका एवं तांबे का जीतल प्रचलित किए। चांदी का सिक्का 175 ग्रेन का था।

विदेशों प्रचलित टंकों पर टकसाल का नाम लिखने की परंपरा को भारतवर्ष में प्रचलित करने का श्रेय इल्तुतमिश को दिया जा सकता है।

इल्तुतमिश ने दिल्ली को राजधानी बनायाबी 1229 में इल्तुतमिश को खलीफा से खिअलत पत्र प्राप्त जिससे इल्तुतमिश वैध मुल्तान और दिल्ली सल्तनत स्वतंत्र राज्य बन गया(18 फरवरी 1229)।

भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का श्री गणेश इल्तुतमिश ने ही किया।

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तराइन का तीसरा युद्ध(1215-1216ई.)

ख्वारिज्म शाह से पराजित होकर एलदौज (गजनी का शासक) भारत की तरफ अग्रसर हुआ तथा नासिरूद्दीन कुबाचा से लाहौर छीनकर पंजाब में पानेश्वर पर अधिकार करके तराइन के मैदान में आ गया। जिसके परिणामस्वरूप इल्तुतमिश ने तराइन के मैदान में जाकर एलदौज को पराजित किया और उसे बदायूं के किले में कैद कर दिया, जहां उसकी मृत्यु हो गई।

परिणाम-इस विजय से दिल्ली का स्वतंत्र अस्तित्व निश्चित हो गया और गजनी से अंतिम रूप से संबंध विच्छेद हो गया।

मंगोल आक्रमण

इल्तुतमिश के शासन काल में मंगोल नेता चंगेज खां के (मूलनाम-तिमूचिन) ने ख्वारिज्म पर आक्रमण करते हुए ख्वारिज्म के युवराज जलालुद्दीन मांगबर्नी का पीछा करते हुए सिन्धु नदी के तट पर आ पहुंचा। मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से सहायता के लिए प्रार्थना की लेकिन इल्तुतमिश ने नम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। इसके पिछे उसका मंगोलों से शत्रुता ने लेना का कारण था। इस प्रकार इल्तुतमिश ने मंगोलों से अपने राज्य की सुरक्षा की।

इल्तुतमिश को भारत में गुम्बद निर्माण का पिता कहा जाता है।

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चहलगानी

इल्तुतमिश का सांस्कृतिक योगदान

इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी

इल्तुतमिश की मृत्यु 30 अप्रैल, 1236 ई. में दिल्ली में हुई थी। दिल्ली में ही इल्तुतमिश को दफनाया गया था।

इल्तुतमिश ने अपना उत्तराधिकारी रजिया(पुत्री) बनाने की इच्छा व्यक्त की थी। परन्तु तुर्क एक स्त्री को अपना शासक नहीं बनाना चाहते थे। इसी कारण इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद रूकन्नुद्दीन फिरोजशाह को गद्दी पर बैठाया गया।

रजिया सुल्तान

रजिया के पतन के कारण

  1. तुर्की अमीरों की बढ़ती हुई शक्ति
  2. रजिया का स्त्री होना(मिनहाज के अनुसार)
  3. मिनहाज ने रजिया के गुणों की प्रशंसा की है और लिखा है कि ,“ सुल्तान रजिया एक महान् शासक थी – बुद्धिमान, न्यायप्रिय, उदारचित्त और प्रजा की शुभचिन्तक, समदृष्टा, प्रजापालक और अपनी सेनाओं की नेता, उसमें बादशाही के समस्त गुण विद्यमान थे – सिवाय नारीत्व के और इसी कारण मर्दो की दृष्टि में उसके सब गुण बेकार थे।”
  4. मिनहाज के अनुसार रजिया ने 3 वर्ष 5 माह 6 दिन राज्य किया।
  5. रजिया का याकूत को अमीर-ए-आखूर नियुक्त करना जिसके प्रति प्रेम का मिथ्या दोषारोपण करके तुर्क अमीरों(चालीस अमीरों का दल: चहल-गानी) ने विद्रोह किया।
  6. गैर तुर्को का प्रतिस्पद्र्धा दल बनाया।
  7. रजिया एक गैर-तुर्क दल बनाकर तुर्क अमीरों की शक्ति का सन्तुलन करना चाहती थी। लेकिन तुर्क अमीरों का इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान सभी उच्च पदों पर अधिकार हो गया था। अब वे इस एकाधिकार को बनाए रखना चाहते थे।

मुइनुद्दीन बहराम शाह(1240-1242 ई.)

अलाउद्दीन मसूद शाह

नासिरूद्दीन महमूद

नासिरूद्दीन महमूद इल्तुतमिश का पौत्र था। वह उदार तथा मधुर स्वभाव वाला सुल्तान था जो ‘टोपियों को सिलकर’ एवं ‘कुरान की नकल’ कर व उसे बेचकर जीवन का निर्वाह करता था। 1249 में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरूद्दीन से कर दिया। इसके फलस्वरूप सुल्तान ने बलबन को 1249ई. में उलुगाखां और नायब-ए-मामलिकात का पद प्रदान किया।यह एक नाम मात्र का सुल्तान था। सारी शक्ति एवं अधिकार चालीस तथा बलबन के हाथ में थे।

1266ई. में अचानक मृत्यु हो गयी। इसका कोई पुत्री नहीं था।

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यह शम्शी राजवंश का अंतिम शासक था।

नासिरूद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद गयासुद्दीन बलबन शासक बना। बलबन ने बलवनी वंश की स्थापना की।

3. बलबनी राजवंश

बलबनी राजवंश की स्थापना गयासुद्दीन बलबन ने की। बलबन गुलाम वंश तथा बलबनी राजवंश का महान शासक था।

गियासुद्दीन बलबन(1266-1286ई.)

गियासुद्दीन बलबन के बचपन का नाम बहाऊदीन था। बचपन में मंगोलों ने बलबन को चुराकर बगदाद ले जाकर जमालुद्दीन बसरी नामक व्यक्ति को बेच दिया। बसरी ने 1232ई. में गुजरात के रास्ते से बलबन को दिल्ली ले आया और 1233ई. में इल्तुतमिश को बेच दिया। इस प्रकार बलबान इल्तुतमिश का दास था। अपने कार्यों के आधार पर बलबन प्रत्येक सुल्तान के काल में विशेष पदों पर आसमीन हुआ।

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सुल्तानबलबन को प्राप्त पद
इल्तुतमिशखाासदार
रजियाअमीर-ए-शिकार
बहरामशाह अमीर-ए-आखुर(अश्वशाला का प्रधान)
समूद शाह अमीर-ए-हाजिब(विशेष सचिव)
नासिरूद्दीन महमूदनायब-ए-मुमालिकात(सुल्तान का संरक्षक)

राजत्व का सिद्धान्त

तुर्कान-ए-चिहलगानी

इल्तुतमिश एवं बलबन का तुलनात्मक अध्ययन

इल्तुतमिशबलबन
इल्तुतमिश को कुतुबुद्दीन ऐबक ने खरीदा थाबलबन को इल्तुतमिश ने खरीदा था।
इल्तुतमिश ने चहलगानी/चालीसा दल का गठन किया। बलबन ने चालीसा को समाप्त कर दिया।
इल्तुतमिश ने बाहरी व आंतरिक समस्याओं पर नियंत्रण व राज्य विस्तार किया।बलबन ने आंतरिक प्रशासन पर विशेष बल दिया एवं राजत्व का सिद्धांत दिया।बलबन ने साम्राज्य विस्तार नहीं किया।
स्थापित व्यवस्था अस्थायी थी एवं प्रभाव अल्पकालीन था।स्थायी व्यवस्था की।

कैकुवाद(1287-1290ई.)

बलबल ने अपने पौत्र कैखुसरो/कायखुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया परन्तु बलबन की मृत्यु के बाद तुर्क अमीर फिर सक्रिय हो गए तथा कैखुसरो के स्थान पर कैकुबाद को सुल्तान मनोनीत किया। इस प्रकार बलबन का उत्तराधिकारी उसके छोटे बेटे बुगरा खां का पुत्र कैकुबाद हुआ। इस नए सुल्तान ने मुइजुद्दीन कैकुबाद की उपाधि धारण की। यह बहुत विलासी प्रवृत्ति का था इसका फायदा कोतवाल फखरूद्दीन का दामाद निजामुद्दीन ने उठाया तथा सत्ता हस्तगत करना चाहा। बुगरा खां के समझाने पर कैकुवाद ने निजामुद्दीन को विश देकर मरवा दिया। 1290ई. में कैकुवाद को पालिसिस(लकवा) मार गया जिससे वह अपंग हो गया।

कायूमार्स(1290ई.)