स्टडी मटेरियल

मुहम्मद शाह (1434-1445 ई.)

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मुबारक शाह के पश्चात् उसका भतीजा फरीद खाँ के नाम से सुल्तान बना। 6 महीने तक वास्तविक सत्ता वजीर सरवर-उल-मुल्क के सहयोग से वजीर का वध करवा कर उससे स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।

मुहम्मदशाह के काल में दिल्ली सल्तनत में अराजकता व कुव्यवस्था फैल गयी। जौनपुर के शासक ने सल्तनत के कई जिले अपने अधीन कर लिए।

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मालवा के शासक महमूद खिलजी ने तो दिल्ली पर ही हमला करने का साहस कर लिया। लाहौर और मुल्तान के शासक बहलोल खाँ लोदी ने सुल्तान की मदद की।

सुल्तान ने उसे ‘खान-ए-खाना’ की उपाधि दी और साथ ही उसे अपना पुत्र कह कर भी पुकारा। सुल्तान की स्थिति बहुत दुर्बल हो गई। यहां तक कि दिल्ली से बीस ‘करोह’ की परिधि में अमीर उसके विरोधी हो गए।

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1444 ई. में मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र अलाउद्दीन ने ‘आलमशाह‘ के नाम से सिंहासन संभाला।

तथ्य

मुबारक शाह के बाद दिल्ली की गद्दी पर मुबारक शाह का भतीजा ‘मुहम्मद बिन फ़रीद ख़ाँ‘ मुहम्मदशाह (1434-1445 ई.) के नाम से गद्दी पर बैठा।

उसके शासन काल के 6 महीने उसके वज़ीर ‘सरवर-उल-मुल्क‘ के आधिपत्य में बीते। परन्तु छह महीने बाद ही सुल्तान ने अपने नायब सेनापति ‘कमाल-उल-मुल्क’ के सहयोग से वज़ीर का वध करवा दिया।

वज़ीर के प्रभाव से मुक्त होने के तुरन्त बाद मालवा के शासक महमूद द्वारा दिल्ली पर आक्रमण कर दिया गया।

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मुल्तान में लंगाओं ने विद्रोह किया, जिसे सुल्तान ने स्वंय जाकर शांत किया। मुहम्मदशाह मुल्तान के सूबेदार बहलोल लोदी की सहायता द्वारा महमूद को वापस खदेड़ने में सफल रहा।

मुहम्मदशाह ने खुश होकर बहलोल लोदी को ‘ख़ान-ए-ख़ाना’ की उपाधि दी और साथ ही उसे अपना पुत्र कहकर पुकारा। इसके समय की प्रमुख घटना रही – बहलोल लोदी का उत्थान।

बहलोल लोदी ने भी दिल्ली पर आक्रमण किया, परन्तु वह असफल रहा। अपने अन्तिम समय में हुए विद्रोह को दबाने में मुहम्मदशाह असमर्थ रहा। अतः अधिकांश राज्यों ने अपने को स्वतंत्र कर लिया।

1445 ई. में मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ ही सैयद वंश पतन की ओर अग्रसर हो गया।

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