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स्थापना – 1485 ई.
संस्थापक -सालुव नरसिंह
पतन – 1505 ई.
सालुव नरसिंह (1486-99 ई.)
सालुव नरसिंह ने विजयनगर साम्राज्य को संभावित विनाश से बचाया।
सालुव नरसिंह आंतरिक शत्रुओं पर अधिकार कर सका, किन्तु उड़ीसा के पुरुषोत्तम गजपति से पराजित हुआ व बन्दी बनाया गया।
फलस्वरूप उसे उदयगिरी का किला और आस-पास के क्षेत्र पुरुषोत्तम को सौंपने पड़े।
सालुव नरसिंह ने अरबी घोड़ों का आयात पुनः आरंभ किया।
उसे तुलुप्रदेश होनावर बट्टकुल, बाकनुर तथा मंगलोर के बन्दरगाहों को जीतने में सफलता मिली।
1491 ई. में सालुव नरसिंहकी मृत्यु हो गई।
उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र इम्माड़ि नरसिंह राजा बना।
इम्माड़ि नरसिंह
इम्माड़ि नरसिंह अल्पायु का था अतः सेनापति नरसा नायक ने उसका संरक्षक बनकर सारी शक्ति अपने हाथों में एकत्र कर ली।
कालान्तर में उसने इममड़ि नरसिंह को पेनुकोंडा के किले में कैद कर लिया।
नरसा नायक ने राचूर दोआव के अनेक किलों पर अपना अधिकार कर लिया तथा चोर, पाण्डुय व चेर राज्यों पर आक्रमण करके इन्हें अपनी अधीनता स्वीकार करने हेतु बाध्य किया।
1503 ई. में रीजेंट नरसा नायक का देहांत हुआ।
वीर नरसिंह ने सालुव नरसिंह के अयोग्य पुत्र को पदच्युत करके राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया व तुलुव वंश की स्थापना की।
इस घटना को विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में ‘द्वितीय अपहरण‘ कहते हैं।