बचपन का नाम खुर्रम एवं पुरा नाम “शिहाबुद्दीन मुहम्मद शाहजहां” था। माता का नाम जगत गोसाई (जोधाबाई) था जगत गोसाई (जोधाबाई) बुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी की उपाधि प्राप्तकर सिंहासन पर बैठा। शाहजहां के द्वारा दिल्ली के पास शाहजनाबाद नगर स्थापित किया गया।
जहांगीर की मृत्यु के समय शाहजहां दक्षिण में था। शाहजहां के ससुर आसफ खां एवं दीवान अबुल हसन ने खुसरो के लडके दवार बक्श को सिंहासन पर बिठा दिया था। शाहजहां ने दवार बक्श की हत्या करके सिंहासन प्राप्त किया था। दवार बक्श को बलि का बकरा कहा जाता है।
शाहजहाँ का विवाह 1612 ई. में आसफ खाँ की पुत्री ‘ अर्जुमन्द बानू बेगम ’ से हुआ, जो की जहांगीर की पत्नी नूरजहां की भतीजी थी। अर्जुमन्द बानू बेगम को ही आगे चलकर मुमताज महल के नाम से जाना गया। शाहजहां और मुमताज महल के चार पुत्र और तीन बेटियां थी। पुत्रों के नाम औरंगजेब, मुरादबख्श, दाराशिकोह और शुजा थे। 1631 ई. में मुमताज की मौत के पश्चात शाहजहां ने आगरा में यमुना नदी के किनारे मुमताज की याद में ताजमहल की नींव रखी, जो 1653 ई. में जाकर पूर्ण हुआ था। ताजमहल में ही मुमताज को दफन किया गया था।
दक्षिण भारत में शाहजहाँ के साम्राज्य विस्तार का क्रम इस प्रकार है-
जहाँगीर के राज्य काल में मुग़लों के हमलो से अहमदनगर की रक्षा करने वाले मलिक अम्बर की मृत्यु के बाद सुल्तान एवं मलिक अम्बर के पुत्र फ़तह ख़ाँ के मध्य आन्तरिक कलह के कारण शाहजहाँ के समय महावत ख़ाँ को दक्कन एवं दौलताबाद प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई।
1633 ई. में अहमदनगर का मुग़ल साम्राज्य में विलय किया गया और नाममात्र के शासक हुसैनशाह को ग्वालियर के क़िले में कारावास में डाल दिया गया।
इस प्रकार निज़ामशाही वंश का अन्त हुआ, यद्यपि शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले ने 1635 ई. में मुर्तजा तृतीय को निज़ामशाही वंश का शासक घोषित कर संघर्ष किया, किन्तु सफलता हाथ न लगी।
चूंकि शाहजी की सहायता अप्रत्यक्ष रूप से गोलकुण्डा एवं बीजापुर के शासकों ने की थी, इसलिए शाहजहाँ इनको दण्ड देने के उद्देश्य से दौलताबाद पहुँचा।
गोलकुण्डा के शासक ‘अब्दुल्लाशाह’ ने डर कर शाहजहाँ से निम्न शर्तों पर संधि कर ली-
बीजापुर के शासक आदिलशाह द्वारा सरलता से अधीनता न स्वीकार करने पर शाहजहाँ ने उसके ऊपर तीन ओर से आक्रमण किया। बचाव का कोई भी मार्ग न पाकर आदिलशाह ने 1636 ई. में शाहजहाँ की शर्तों को स्वीकार करते हुए संधि कर ली।
संधि की शर्तों में बादशाह को वार्षिक कर देना, गोलकुण्डा को परेशान न करना, शाहजी भोंसले की सहायता न करना आदि शामिल था। इस तरह बादशाह शाहजहाँ 11 जुलाई, 1636 ई. को औरंगज़ेब को दक्षिण का राजप्रतिनिधि नियुक्त कर वापस आ गया।
बीजापुर ने हमेशा दक्कन में मुगलों की घुसपैठ का विरोध किया था। इसलिए, मुगलों के खिलाफ गोलकुंडा का हमेशा समर्थन किया। सुल्तान इब्राहिम शाह की मृत्यु कुछ महीने पहले हुई थी जहाँगीर और मुहम्मद आदिल शाह सिंहासन पर चढ़े थे।
मुगलों ने 1631 ई. में आसफ़ ख़ान की कमान में बीजापुर पर हमला किया, लेकिन असफल रहे और आसफ़ ख़ान को शाहजहाँ ने वापस बुला लिया।
तब महाबत खान को दक्कन का गवर्नर नियुक्त किया गया था। उसने अहमदनगर के स्वतंत्र अस्तित्व को समाप्त कर दिया, दौलताबाद को जीत लिया, लेकिन परेंद्र के किले पर कब्जा करने में विफल रहा।
महाबत खान अपनी ओर से इस विफलता से हैरान था और 1634 ई. में बीमारी से मर गया, बाद में, शाहजहाँ जुझार सिंह के विद्रोह को दबाने में व्यस्त रहा और बीजापुर के खिलाफ कोई सफलता नहीं मिली।
1636 ई. में शाहजहाँ ने दलातबाद पर आक्रमण किया। अपने रईसों के विद्रोही प्रयासों के कारण उस समय बीजापुर कमजोर था।
शाहजहां के काल में कान्धार अंतिम रूप से मुगलों से छिन गया जिसे बाद में प्राप्त नहीं किया जा सका।
शाहजहां के शासन काल को स्थापत्य कला और सांस्कृतिक दृष्टि से स्वर्णिम युग कहा गया है। शाहजहाँ ने अपने शासन काल में कई प्रसिद्ध इमारतें बनवायी थी। जिनमें आगरा में स्थित ताजमहल,दिल्ली का लाल किला और जामा मस्जिद, आगरा की मोती मस्जिद, आगरा के किले में स्थित दीवाने खास, दीवाने आम, मुसम्मन बुर्ज, लाहौर में स्थित शालीमार बाग़, शालामार गांव में स्थित शीशमहल, और काबुल, कंधार, कश्मीर और अजमेर आदि में कई महल, बगीचे आदि कई इमारतें बनवायी थी। शाहजहां ने लाहौर तक रावी नहर का निर्माण भी करवाया था।
आगरा के किले के अन्दर कि जामा मस्जिद का निर्माण जहाँआरा बेगम़ (शाहजहाँ की पुत्री) ने करवाया था।
मुसम्मन बुर् या शाह बुर्ज 6 मंजिला भवन था जिस पर से शाही महल की महिलाएं पशुओं की लड़ाईयां देखती थी।
शाहजहां के दरबार में पंडित जगन्नाथ राजकवि हुआ करते थे, जिन्हें जगन्नाथ पण्डितराज के नाम से भी जाना जाता था। जो ‘ गंगा लहरी ’ के रचनाकार हैं। यह उच्चकोटि के कवि, समालोचक व साहित्यकार थे। इसके दरबार में संगीतकार सुरसेन, सुखसेन आदि दरबारी थे। शाहजहां के सबसे बड़े पुत्र दाराशिकोह ने ‘ भगवत गीता ’ और ‘ योगवशिष्ठ ’ का फ़ारसी भाषा में अनुवाद करवाया था, साथ ही वेदों का संकलन भी करवाया था। इसीलिए शाहजहां ने दाराशिकोह को ‘ शाहबुलंद इक़बाल ’ की उपाधि से सम्मानित किया था।
शाहजहां ने अपने शासन काल में सिक्का चलाया था जिसे ‘ आना ’ कहा जाता था। शाहजहां एक बेशकीमती तख़्त पर आसीन होता था जिसे ‘तख्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन)’ कहा जाता था। इस सिंहासन का वास्तुकार बेबादल खां था
शाहशुजा ने बंगाल में स्वंय को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया एवं मुराद ने गुजरात में स्वंय को स्वतंत्र शासक घोषत कर दिया। ओरंगजेब ने मुराद से समझौता कर लिया अंत में औरंगजेब की विजय हुई।