स्टडी मटेरियल

भारतीय दर्शन

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दर्शनआधार ग्रंथप्रतिपादक
सांख्य दर्शनसांख्य सूत्र कपिल मुनि
योग दर्शनयोग सूत्र पतंजलि
न्याय दर्शनन्याय सूत्रगौतम
वैशेषिक दर्शनवैशेषिक सूत्रकणाद/उलूक
पूर्व मीमांशापूर्व मीमांशासूत्र जैमिनी
उत्तर मीमांशाब्रह्म सूत्रवेदव्यास/वादरायण

धार्मिक आन्दोलन के कारण

जैन धर्म

जैन धर्म के प्रमुख़ तीर्थकर –

  1. ऋषभदेव- इन्हें ‘आदिनाथ‘ भी कहा जाता है
  2. अजितनाथ
  3. सम्भवनाथ
  4. अभिनंदन जी
  5. सुमतिनाथ जी
  6. पद्मप्रभु जी
  7. सुपार्श्वनाथ जी
  8. चंदाप्रभु जी
  9. सुविधिनाथ- इन्हें ‘पुष्पदन्त‘ भी कहा जाता है
  10. शीतलनाथ जी
  11. श्रेयांसनाथ
  12. वासुपूज्य जी
  13. विमलनाथ जी
  14. अनंतनाथ जी
  15. धर्मनाथ जी
  16. शांतिनाथ
  17. कुंथुनाथ
  18. अरनाथ जी
  19. मल्लिनाथ जी
  20. मुनिसुव्रत जी
  21. नमिनाथ जी
  22. अरिष्टनेमि जी – इन्हें ‘नेमिनाथ‘ भी कहा जाता है। जैन मान्यता में ये नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे।
  23. पार्श्वनाथ
  24. वर्धमान महावीर – इन्हें वर्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर भी कहा जाता है।

स्थापना

जैनधर्म के तीर्थकर एवं प्रतीक चिन्ह

तीर्थकरप्रतीक चिन्ह
आदिनाथ/ऋषभदेववृषण/सांड/बैल
अजितनाथहाथि
संभवनाथघोड़ा
मल्लिनाथकलश
नेमिनाथनील कमल
अरिष्टनेमीशंख
पाश्र्वनाथसांप(सर्प)
महावीर स्वामीसिंह

आदिनाथ/ऋषभदेव

  1. ऋषभदेव का उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, श्रीमद् भागवत, विष्णुपुराण, एवं भागवत पुराण में हुआ है।
  2. ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था एवं इनकी मृत्यु अट्ठवय पर्वत अर्थात कैलाश पर्वत पर हुई थी।
  3. ऋषभदेव का प्रतीक चिन्ह सांड है

पाश्र्वनाथ

महावीर स्वामी

जैन धर्म के पंच महावृत

  1. अहिंसा – जीव की हिंसा न करना
  2. सत्य – सदा सत्य बोलना
  3. अपरिग्रह – संपत्ति एकत्रित नहीं करना
  4. अस्तेय – चोरी न करना
  5. ब्रह्मचर्य – स्त्री से संपर्क न बनाना (महावीर स्वामी ने जोड़ा था)

जैन धर्म के त्रिरत्न

  1. सम्यक ज्ञान –  सत्य तथा असत्य का ज्ञान ही सम्यक ज्ञान।
  2. सम्यक दर्शन – जैन तीर्थकरों तथा उपदेशों में दृढ़ आस्था तथा श्रद्धा रखना/सत्य में विश्वास।
  3. सम्यक चरित्र – इंद्रियों एवं कर्मो पर पूर्ण नियंत्रण।

जैन धर्म की मान्यताएं

जैन धर्म का दर्शन

नोट – स्यादवाद को अनेकान्तवाद या सप्तभंगी सिद्धांत भी कहा जाता है।

जैन धर्म की मौलिक शिक्षाएं

  1. जैन धर्म में संसार को दुःख मूलक माना गया है। व्यक्ति को सांसारिक जीवन की तृष्णाएं घेरे रहती है। यही दुःख मूल कारण है।
  2. संसार त्याग तथा संन्यास मार्ग ही व्यक्ति को सच्चे मार्ग पर ले जा सकती है।
  3. संसार के सभी प्राणी अपने-अपने संचित कर्मो के अनुसार ही कर्मफल भोगते हैं।
  4. कर्म से छुटकारा पाकर ही व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर होता है।

पुद्गल

पुदगल से मुक्ति

पुदगल से मुक्ति पाने के लिए त्रिरत्न (सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र) का अनुशीलन अनिवार्य है।

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जब कर्म (पुदगल) का अवशेष समाप्त हो जाता है। तब मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जैन संघ

महावीर स्वामी ने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की।

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संघ के अध्यक्ष (क्रमानुसार) – महावरी स्वामी, सुधर्मन – जम्बुस्वामी – अन्तिम केवलिन।

संघ की संरचना

श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में अन्तर

श्वेताम्बरदिगम्बर
मोक्ष प्राप्ति के लिए वस्त्र त्याग आवश्यक नहींमोक्ष के लिए वस्त्र त्याग आवश्यक
स्त्रियां मोक्ष की अधिकारी हैं।स्त्रियों को निर्वाण संभव नहीं
कैवल्य के बाद भी भोजन की आवश्यकताकैवल्य के बाद भोजन की आवश्यकता नहीं
श्वेताम्बर मतानुसार महावीर स्वामी विवाहित थे।दिगम्बर मतानुसार महावीर स्वामी अविवाहित थे।
19वीं तीर्थर मल्लिनाथ स्त्री थी।19वें तीर्थकर मल्लिनाथ पुरूष थे।
अंग , उपांग, प्रकीर्ण, छेद सूत्र, मूल सूत्र आदि को मानते थे।दिगम्बर इन साहित्यों में विश्वास नहीं रखते थे।
इसके प्रमुख स्थूल भद्र थे।इसके प्रमुख भद्रबाहु थे

श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय के उपसम्प्रदाय

श्वेताम्बर – पुजेरा/मूर्तिपूजक/डेरावासी/मन्दिर मार्गी/ढुंढ़िया/स्थानकवासी/साधुमार्गी/थेरापंथी।

दिगम्बर – बीसपंथी/तेरापंथी/तीसपंथी/गुमानपंथी/तोतापंथी

जैन साहित्य

अन्य जैन ग्रंथ

कल्पसूत्रभद्रबाहु
द्रव्यसंग्रहनमिचन्द
कुवलयमालाउधोतन सूरी
स्यादवादजरीमल्लीसेन

प्रमुख जैन संगीतियां (सम्मेलन)

प्रथम जैन संगीति

स्थान – पाटलिपुत्र, वर्ष – 300 ई.पू., अध्यक्ष – स्थूलभद्र

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नोट – इसी सम्मेलन में जैन धर्म 2 सम्प्रदायों में बंट गया था।

द्वितीय संगीति

स्थान – वल्लभी (गुजरात), वर्ष – 512 ई., अध्यक्ष – इेवर्धिगण (क्षताश्रमण)

नोट – इस सम्मेलन में बिखरे ग्रंथों का संकलन किया गया।

प्रमुख जैन तीर्थस्थल

अन्य तथ्य

यापनीय सम्प्रदाय

यह जैन धर्म का एक संम्प्रदाय है जिसकी उत्पत्ति दिगम्बर संम्प्रदाय से हुई यह श्वेतांबरों की सान्यताओं का भी पालन करता है।

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जैन धर्म को आश्रय प्रदान करने वाले शासक

महापद्मनंद, धनानंद, बिम्बिसार, अजात शत्रु, उदयनि, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, सम्प्रति, चण्डप्रधोत, खारवेल, अमोघवर्ष, कुमारपाल आदि।