स्टडी मटेरियल

गुप्त काल (240 ई.–550 ई.)

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।
Get it on Google Play

प्रमुख गुप्त काल शासक-

गुप्त काल के साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्यअभिलेखीय साक्ष्य
पुराण – विष्णु पुराण, वायु पुराण एवं ब्राह्मण पुराणसमुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति
देवी चन्द्रगुप्तम (विशाखदत्त कृत)कमारगुप्त का विलसड अभिलेख
कालीदास की रचनाएंस्कन्दन गुप्त का भितरी अभिलेख
विदेशी यात्री: फाह्यान, ह्नेनसाग आदिप्रभावती गुप्त का पूना ताम्रपत्र

गुप्त कौन थे ? वैश्य या ब्राह्मण ?

वैश्य होने के पक्ष में तर्क – रोमिला थापर, रामशरण शर्मा आदि इतिहासकारों ने गुप्तों को वैश्य माना है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

कारण: स्मृतियों के अनुसार नाम के पीछे गुप्त उत्तरांश लगाना वैश्यों की एक विशेषता है। गुप्त वैश्यों का एक गोत्र भी है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि गुप्त वंश के संस्थापक का नाम केवल गुप्त प्राप्त होता है। श्री आदर भाव से जोड़ा गया उपसर्ग है। इस प्रकार गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त माना जाता है।

ब्राह्मण होने के पक्ष में तर्क – राय चौधरी ने गुप्तों को ब्राह्मण वंशी माना है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

कारण: पुष्यमित्र शुंग षट्टमहिषी धारणी में गुप्त गोत्र को ब्राह्मण वंशी बताया गया है। इसका एक कारण गुप्त शासकों द्वारा अपनी पुत्रियों का विवाह ब्राह्मणों के साथ किया जैसे – चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक शासक द्वितीय से एवं भानु गुप्त ने अपनी बहनों का विवाह भी ब्राह्मणों से किया। चूंकि गुप्त काल में एवं मौर्योत्तर काल में जाति प्रथा प्रबल थी तथा अन्तर्जातीय विवाह अमान्य था।इस प्रकार गुप्तों की पुत्रियों के ब्राह्मणों से विवाह उन्हें ब्राह्मण वंशी मानने को प्रेरित करते हैं। परन्तु इस समय अनुलोम विवाह (उच्चवंश का वर, निम्न वंश की कन्या) प्रचलित था। ये पुनः इस तथ्य का उलझा देती है।

अतः ये कौन थे इसका कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है।

गुप्तवंशीय शासक

श्रीगुप्त (240 – 280 ई)

प्रभावती गुप्त का पूना स्थित ताम्रपत्र अभिलेख के अनुसार श्री गुप्त को गुप्त वंश का आदिराज/आदिपुरूष माना गया है। अतः गुप्त वंश की स्थापना का श्रेय श्री गुप्त को प्राप्त है। श्री गुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की थी।

घटोत्कच्च गुप्त (280-319)

नोट – श्री गुप्त एवं घटोत्कच गुप्त को संपूर्ण स्वतंत्र शासक नहीं माना गया है क्योंकि इन दोनो ने महाराज की उपाधि धारण की थी और उस समय महाराज की उपाधि सामन्तों को प्राप्त होती थी तथा पूर्ण स्वतंत्र शासक महाराजाधिराज की उपाधि धारण करते थे। चूंकि चंन्द्रगुप्त-1 ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी इसी कारण चन्द्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना गया है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

चन्द्रगुप्त प्रथम (319ई. – 334ई.)

समुद्रगुप्त (335ई. – 380ई.)

समुद्रगुप्त का विजय अभियान (5 चरण)

विजय अभियान को पूरा करने के बाद अश्वमेधयज्ञ करवाया एवं अश्वमेध पराक्रम की उपाधि ली। समुद्रगुप्त को उसके सिक्कों पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। समुद्र गुप्त को कविराज की उपाधि प्रदान की गयी है

चन्द्रगुप्त द्वितीय/चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य/देवगुप्त

नो रत्न –

चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल कला एवं साहित्य का स्वर्णकाल माना जाता है।

कुमारगुप्त

  1. कुमारगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था।
  2. उपाधि – महेन्द्रादित्य, श्री महेन्द्र, गुप्तकुल व्योमशशि, अश्वेमेध महेन्द्र।
  3. कुमार गुप्त की मुद्राओं पर गरूड के स्थान पर मयूर आकृति अंकित है।
  4. कुमारगुप्त प्रथम के शासन में नालंदा विश्वविधालय की स्थापना करवायी।
  5. कुमारगुप्त के सिक्कों पर कार्तिकेयन का अंकन मिलता है।

स्कन्दगुप्त (455 – 467)

स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारी

पुरूपुप्त – कुमारगुप्त द्वितीय – बुद्धगुप्त – नरसिंहगुप्त – भानुगुप्त।

भानुगुप्त (510 ई. )

विष्णुगुप्त -3 (540 – 550)

यह गुप्तवंश का अंतिम शासक था एवं इसके बाद गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

रामगुप्त प्रकरण

गुप्त शासकों के रूप में रामगुप्त का नाम देवीचन्द्रगुप्तम, हर्षचरित, काव्यमीमांशा आदि ग्रंथों से प्राप्त होता है। यह समुद्रगुप्त के पश्चात् गद्दी पर बैठा परन्तु यह कायर शासक था। इसके समय में शक आक्रमण बढ़ गए थे जिसे इसने अपनी पत्नी ध्रुवदेवी को शाकाधिपति के लिए सौंपकर राज्य में शांति बहाल करने की कोशिश की। परन्तु रामगुप्त के छोटे भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय को इस बात की भनक लग गयी तथा स्त्री के वेश में ध्रुवदेवी के स्थान पर शक शिविर में गया तथा मौका पाकर शकाधिपति की हत्या कर दी। इसके बाद इसने अपने कायर भाई की भी हत्या कर दी तथा स्वंय गद्दी पर बैठा एवं ध्रुवदेवी से विवाह कर लिया।

गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण

  1. अयोग्य तथा निर्बल उत्तराधिकारी
  2. शासनक व्यवस्था का संघात्मक/विकेन्द्रित स्वरूप
  3. उच्च पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर न होकर आनुवांशिक।
  4. प्रांतीय शासकों को विशेषाधिकार प्रदान करना।
  5. बाह्म आक्रमण।

गुप्तकालीन प्रशासन

केन्द्रीय प्रशासन एवं प्रांतीय प्रशासन

राजा

देश/राष्ट्र

भुक्ति/प्रांत

विषय/जिला

विधि/तहसील

विषय विधियों में बंटा होता था

पेठ

पेठ विधि से छोटी इकाई थी। गांवों का संघ।

ग्राम/गांव

गुप्त साम्राज्य के प्रशासनिक अधिकारी

गुप्तकालीन अर्थव्यवस्था

कृषि

गुप्तकालीन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

भमि के प्रकार-

राजस्व – भू राजस्व ही राज्य की आय का मुख्य साधन था। भू राजस्व कुल आय का 1/6 हिस्सा होता था।

विभिन्न प्रकार के कर

गुप्तकालीन व्यापार

गुप्तकालीन समाज

गुप्तकालीन समाज की विशेषताएं

दास प्रथा

गुप्त काल में दास प्रथा प्रचलित थी तथा इस काल में दासों को मुख्यतः घरेलू कार्यो में लगाया जाता था। कारण – जनजातियों के आत्मसातीकरण के कारण श्रमिकों की पूर्ति, शूद्रों को कृषि कार्यो में लगाया जाना एवं भूमि दानों द्वारा दास प्रथा को कमजोर कर देना।

स्त्रियों की दशा

कुछ सकारात्मक परिवर्तन

  1. स्त्रियों को सम्पत्ति संबंधि अधिकार दिए गए।
  2. पत्नि एवं पुत्रियों को सम्पति का उत्तराधिकारी बनाया गया।
  3. स्त्रियां प्राकृत भाषा का प्रयोग कर सकती थी।

गुप्तकाल में धार्मिक स्थिति

गुप्तकालीन धार्मिक व्यवस्था का मुख्य लक्षण – जटिलता एवं विविधता है। एक ओर ब्राह्मणवादी पुनरूत्थान के कारण यहां यज्ञ की पद्धति पुनर्जीवित हो रही थी वहीं जनजातीय तत्वों के प्रभावस्वरूप भक्ति की अवधारणा को प्रोत्साहन मिल रहा था। मंदिरों एवं मूर्तियों का निर्माण हुआ। अवतार वाद की अवधारणा का उदय हुआ तथा ब्राह्मण धर्म के अन्तर्गत वैष्णव एवं शैव भक्ति का विकास हुआ। नव हिन्दु धर्म की शुरूआत भी इसी काल में हुई। इसके चलते वैष्णव धर्म सबसे प्रधान बन गया। शैव सम्प्रदाय को भी संरक्षण मिल गया।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

भगवान हरिहर की मूर्ति

गुप्तकालीन स्थापत्य

गुप्तकालीन शिक्षा एवं साहित्य

गुप्तकालीन साहित्य की विशेषताएं

गुप्तकालीन रचनाएं

अन्य रचनाएं

  1. कालिदास – ऋतुसंहार, मेघदूतम, कुमार सम्भवम, मालविकाग्निमित्रम, रघवंशम, अभिज्ञानशाकुन्तलम, विक्रमोर्वशीयम।
  2. दशकुमारचरित्र – दण्डिन, काव्यदर्शन-दण्डिन, अमरकोष -अमरसिंह
  3. ब्रह्मसिद्धांत – आर्यभट्ट, सूर्य-सिद्धांत – आर्यभट्ट, आर्यभट्टीयम – आर्यभट्ट।
  4. पंचतंत्र – विष्णुशर्मा, कामसूत्र – वात्स्यायन
  5. चरक संहिता – चरक, मृच्छकटिकम – शूद्रक