स्टडी मटेरियल

गुप्तोत्तर काल

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भारत के राजनीतिक इतिहास में गुप्त वंश के अंत के बाद विकेन्द्रीकरण एवं क्षेत्रीयता का आविर्भाव हुआ। गुप्त वंश के पश्चात् अनेक छोटे-छोटे राज्य बने जैसे – थानेश्वर का पुष्य भूति वंश, कन्नौज का मौखिरी वंश आदि मुख्य राज्य थे।

पुष्यभूति/वर्धन वंश

प्रभाकरवर्धन

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राज्यवर्धन

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हर्षवर्धन

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मौखिरी वंश (कन्नौज)

इस वंश का संस्थापक संभवतः गुप्तों का सामन्त था। क्योंकी इस वंश के प्रारंभिक 3 शासकों (हरि वर्मा, आदित्य वर्मा एवं ईश्वर वर्मा) को महाराज की उपाधि प्राप्त थी।

बाद के तीन शासकों (ईशान वर्मन, सर्ववर्मन एवं अवंतिवर्मन) को महाराजाधिराज की उपाधि प्राप्त हुई। अतः ईशान वर्मन इस वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं शक्तिशाली राजा प्रतीत होता है।

गुप्तवंश के पतन के बाद कन्नौज उत्तर भारत का शक्ति स्थल बना इसी कारण भारत का एकछत्र सम्राट बनने की होड में गुर्जर-प्रतिहार, पाल एवं राष्ट्रकूटों के मध्य एक लंबा त्रिदलीय संघर्ष चला।

मौखरी वंश के शासक – ईशानवर्मन, सर्ववर्मन, अवंतिवर्मन, ग्रहवर्मन, हर्ष (राज्यश्री के साथ), सुचंद्रवर्मन (अंतिम)।

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कन्नोज के लिए त्रिदलीय संघर्ष

तथ्य

कन्नौज पर स्वामित्व के लिए संघर्ष को शुरू पाल शासक धर्मपाल ने किया। इसके बाद प्रतिहार शासक इस संघर्ष में शामिल हुए। बाद में राष्ट्रकूट इस संघर्ष में कूदे।