स्टडी मटेरियल

हड़प्पा सभ्यता (2300 – 1750 ई. पू.)

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हड़प्पा रावी नदी के किनारे पंजाब के माँटगोमरी जिले में है। इसकी खुदाई दयाराम साहनी के नेतृत्व में 1921 ई. में की गयी। यह शहर विभाजित है, पश्चिमी में गढ़ी है और पूर्वी भाग में निचला शहर है। हड़प्पा में छ:-छ: के दो कतारों में धान्य कोठार मिले हैं। अनाजों के दाबने के लिए एक चबूतरा बना था, इसमें जौ एवं गेहूँ के दाने मिले हैं, दो कतारों में 15 मकान मिले हैं। इनकी पहचान श्रमिक आवास के रूप में हुई है। दक्षिण क्षेत्र में एक कब्रिस्तान बना हुआ है।

हड़प्पा से एक मूर्ति धोती पहने मिली है, इनसे शरीर संरचना का ज्ञान मिलता है। यहाँ बालू पत्थर की दो मूर्तियां भी प्राप्त हुई। एक बरतन पर मछुआरे का चित्र बना मिला है। शंख का बना हुआ एक बैल भी मिला है। कांस्य दर्पण भी यहाँ से प्राप्त हुए हैं। यहाँ से बना कांसा का एक्का प्राप्त हुआ है। सिन्धु सभ्यता की अभिलेखयुक्त मुहरें सबसे ज्यादा हड़प्पा से ही प्राप्त हुई हैं।

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हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं 

इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि, यह नगरीय सभ्यता थी। ऐसा मानना गलत नहीं होगा कि, भारत में सर्वप्रथम सुनियोजित और सुव्यवस्थित नगरीय व्यवस्था सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में पनपी थी। नगरों की व्यवस्थाएं निम्न थी-

हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन

हड़प्पा सभ्यता में जो, नगरीय व्यवस्था शहरी स्वरूप देखने को मिलती है। ऐसी व्यवस्था किसी अन्य किसी भी प्राचीन सभ्यता में देखने को नहीं मिलती। इस सभ्यता का नगर नियोजन ग्रीड पद्धति पर आधारित था।  भारत में सुनियोजित नगरीय सभ्यता का प्रारंभ यहीं से हुआ होगा।

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ग्रिड पद्धति पर आधारित

सड़क और नालियों की व्यवस्था

भवन निर्माण