स्टडी मटेरियल

राज्यवर्धन

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प्रभाकरवर्धन के जीवन के अंतिम दिनों में हूणों का आक्रमण हुआ परन्तु प्रभाकरवर्धन युद्ध में जाने के लिए सक्षम नहीं था अतः उसका पुत्र राज्यवर्धन युद्ध के लिए गया किन्तु युद्ध के मध्य में ही प्रभाकरवर्धन का स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ गया। राज्यवर्धन युद्ध से वापस लौटा तो उनके पिता प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो चुकी थी।

इसी समय मालवा शासक देवगुप्त एवं बंगाल शासक – शशांक ने मिलकर कन्नौज के मौखिरी शासक गृहवर्मन (राज्यवर्धन के बहनोई) की हत्या कर दी राज्यश्री बना लिया।

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राज्यश्री (बहिन) को बंदी बनाए जाने तथा गृहवर्मन की हत्या की सूचना मिलते ही राज्यवर्धन देवगुप्त एवं शशांक से बदला लेने के लिए निकल पड़ा इसी क्रम में राज्यवर्धन ने देवगुप्त को हराया । शशांक ने राज्यवर्धन से मित्रता का हाथ बढ़ाते हुए अपने शिविर में बुलाया और धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी। राज्यवर्धन की मौत की सूचना पाकर हर्षवर्धन ने थानेश्वर राज्य की बागडोर संभाली।

राज्यवर्धन थानेश्वर के शासक प्रभाकरवर्धन का ज्येष्ठ पुत्र था। वह अपने भाई हर्षवर्धन और बहन राज्यश्री से बड़ा था। 

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तीनों बहन-भाइयों में अत्यंत प्रेम था। एक भीषण युद्ध के फलस्वरूप बंगाल के राजा शशांक द्वारा राज्यवर्धन का वध हुआ।

राज्यवर्धन की बहन राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि वंश के शासक गृहवर्मन से हुआ था। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात ही देवगुप्त का आक्रमण कन्नौज पर हुआ और एक भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया।

युद्ध में गृहवर्मन मालवा के राजा देवगुप्त के हाथों मारा गया और उसकी पत्नी राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया गया।

सूचना मिलते ही राज्यश्री के ज्येष्ठ अग्रज राज्यवर्धन ने अपनी बहन को काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया

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राज्यवर्धन ने मालवा के शासक देवगुप्त को पराजित करके मार डाला, किंतु वह स्वयं देवगुप्त के सहायक और बंगाल के शासक शशांक द्वारा मारा गया।

इस समय राज्य में व्याप्त भारी उथल-पुथल से राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और उसने विन्ध्यांचल के जंगलों में शरण ली।

बाद में राज्यवर्धन के उत्तराधिकारी सम्राट हर्षवर्धन ने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी। हर्षवर्धन उसे कन्नौज वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया।

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