स्टडी मटेरियल

वैदिक काल

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।
Get it on Google Play

प्रमुख वैद –

वैदिक काल का समय निर्धारण

ऋग्वैदिक काल

  1. वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।
  2. ऋग्वैदिक समाज का आधार परिवार था।
  3. परिवार पितृ-सत्तात्मक होता था।
  4. ऋग्वैदिक काल में मूलभूत व्यवसाय कृषि व पशुपालन (मुख्य व्यवसाय – पशुपालन) था।

वैदिक कालीन वेद

वेदों की संख्या 4 है-

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।
  1. ऋग्वेद
  2. सामवेद
  3. यजुर्वेद
  4. अर्थवेद

नोट – ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद को वेद त्रयी कहा जाता है।

ऋग्वेद

सामवेद

यजुर्वेद

अथर्ववेद

आरण्यक

उपनिषद

यह भारतीय दार्शनिक विचारों का प्राचीनतम संग्रह है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

उपनिषदों को भारतीय दर्शन का स्त्रोत, जनक, पिता कहा जाता है।

वेदांग

  1. शिक्षा वेदायी पुरूष की नाक
  2. व्याकरण वेदायी पुरूष का मुख
  3. छन्द वेदायी पुरूष के पैर बताए गए हैं।
  4. कल्प सूत्र
  5. निरूक्त
  6. ज्योतिष

वेदों से संबंधित ब्राह्मण

वेदांगों की संख्या 6 है-

वेद – ब्राह्मण

वेदों से संबंधित उपनिषद

वेद – उपनिषद

वेदों से संबंधित अरण्यक

वेद – अरण्यक

वेदों से संबंधित उपवेद

वेद – उपवेद

ऋग्वैदिक राजनैतिक स्थिति

वैदिक काल के प्रमुख क्षेत्र

  1. सप्त सैंधव – सिंधु, रावी, व्यास, झेलम, चिनाब, सतलज, सरस्वती का क्षेत्र।
  2. ब्रह्मवर्त – दिल्ली के समीप का क्षेत्र।
  3. ब्रह्मर्षि – गंगा-यमुना का दोआन।
  4. आर्यावर्त – हिमालय से विन्ध्याचल पर्वत का क्षेत्र।
  5. दक्षिणापथ – विन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण का भाग।
  6. उत्तरापथ – विन्ध्याचल के उत्तर में हिमालय का प्रदेश।

तथ्य

अथर्ववेद के अनुसार राजा को आय का 1/16 वां भाग मिलता था।

ऐतरेय ब्राह्मण में पुत्री को “कृपण” कहा गया है। तथा दुःखों का स्त्रोत बताया है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

ऋग्वैदिक समाज

  1. पुरोहित
  2. राजन्य
  3. सामान्य

आभूषण

  1. कर्णशोभन – कान के आभूषण
  2. कुरीर – सिर पर धारण करने वाला आभूषण
  3. निष्क – गले का आभूषण
  4. ज्योचनी – अंगूठी

ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था

ऋग्वैदिक धर्म की स्थिति

  1. राजा – गोप्ता
  2. अतिथि – गोहंता/गोहन
  3. युद्ध – गविष्ट, गेसू, गम्य
  4. गाय – अघन्या
  5. लांगल – हल
  6. सीता – खेत में हल चलाने के बाद बनी नालियां/निसान
  7. बढ़ई – तक्षन
  8. नाई – वाप्ती
  9. मरूस्थल – धन्व
  10. अनाज – धान्य
  11. उर्वरा – जुते हुए खेत
  12. खिल्य – चारागाह
  13. बेकनाट – सूदखोर
  14. व्राजपति – चारागाह प्रमुख
  15. कुलप – परिवार का प्रधान
  16. स्पश -गुप्तचर

वर्तमान नदियों के ऋग्वैदिक नाम

ऋग्वैदिक देवियां

अदिति, ऊषा, पृथ्वी, आपः, रात्रि, अरण्यानी, इला।

ऋग्वैदिक यज्ञ

उत्तर वैदिक काल

इसका समय 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक का माना जाता है। इसमें क्षेत्रगत राज्यों का उदय होने लगा (कबीले आपस में मिलकर राज्यों का निर्माण करने लगे)। तकनीकि दृष्टि से लौह युग की शुरूआत हुई। सबसे पहले लोहे को 800 ई.पू. के आसपास गंगा, यमुना दोआब में अतरंजी खेडा में हासिल किया गया। उत्तरवैदिक काल के वेद अथर्ववेद में लोहे के लिए श्याम अयस एवं कृष्ण अयस जैसे शब्द का प्रयोग किया गया।इस काल में वर्णव्यवस्था का उदय हुआ।

उत्तर वैदिक राजनीतिक व्यवस्था

उत्तरवैदिक सामाजिक व्यवस्था

वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म पर आधारित न होकर जन्म आधारित पर हो गया। इस समय लोग स्थायी जीवन जीने लगे। चारों वर्ण – पुरोहित, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र स्पष्टतः स्थापित हो गए। यज्ञ का महत्व बढ़ने लगा और ब्राह्मणें की शक्ति में अपार वृद्धि हुई। ऐतरेय ब्राह्मण में चारों वर्णो के कार्यो का उल्लेख मिलता है। इस काल में तीन आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ एवं वानप्रस्थ की भी स्थापना हुई।

नोट – चौथा आश्रम ‘संन्यास’ महाजनपद काल में जोडा गया था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

जावालोपनिषद में सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है। स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार प्राप्त था। बाल विवाह का प्रचलन नहीं था। विधवा विवाह,नियोग प्रथा के साथ अन्तःजातीय विवाह का प्रचलन था तथा स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आयी।

उत्तरवैदिक आर्थिक स्थिति

उत्तरवैदिक धार्मिक स्थिति

धर्म का स्वरूप बहुदेववादी तथा उद्देश्य भौतिक सुखों की प्राप्ति था। प्रजापति, विष्णु तथा रूद्र महत्वपूर्ण देवता के रूप में स्थापित हुए। सृजन के देवता प्रजापति का सर्वोच्च स्थान था तथा पूषण सूडों के देवता थे। यज्ञ का महत्व बढ़ा एवं जटिल कर्मकाण्डों का सम्मिलित आवेश हुआ। मृत्यु की चर्चा सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में मिलती है। सर्वप्रथम मोक्ष की चर्चा उपनिषद में मिलती है। पुनर्जन्म की अवधारणा सर्वप्रथम वृहदारण्यक उपनिषद में मिलती है।

आश्रम व्यवस्था

आश्रम आयु कार्य पुरूषार्थ
ब्रह्मचर्य आश्रम 0-25 वर्ष ज्ञान प्राप्ति धर्म
गृहस्थ आश्रम 26-50 सांसारिक जीवन अर्थ व काम
वानप्रस्थ आश्रम 51-75 वर्ष मनन/चिंतन/ध्यान मोक्ष
सन्यास आश्रम 76-100 मोक्ष हेतु तपस्या मोक्ष

नोट – गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि इस आश्रम में मनुष्य त्रिवर्ग (पुरूषार्थो) – धर्म,अर्थ एवं काम का एक साथ उपयोग करता है।

इसी आश्रम में त्रि-ऋण से निवृत होता है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।
  1. ऋषि ऋण – ग्रंथों का अध्ययन
  2. पितृ ऋण – पुत्र प्राप्ति
  3. देव ऋण – यज्ञ करना

नोट – शूद्र मात्र गृहस्थ आश्रम को ही अपना सकते थे अन्य आश्रमों को नहीं।

वर्ण व्यवस्था

नोट – उत्तरवैदिक काल में शुद्रों को गैर आर्य माना जाता था।

विवाहों के प्रकार

नोट – ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्य विवाह व प्रजापत्य विवाह ब्राह्मणों के लिए मान्य थे।

गन्धर्व विवाह केवल क्षत्रियों में होता था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

असुर विवाह केवल वैश्य और शूद्रों में होता था।