विधान सभा भारत के राज्यों के अंतर्गत लोकतन्त्र की निचली प्रतिनिधि सभा कहलाती है। यह विधान मण्डल का एक अंग होता है। इसके सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर मतदान के द्वारा किया जाता है जिसमें 18 वर्ष से ऊपर के सभी भारतीय नागरिक मतदान करके सदस्यों का चुनाव करते हैं। विधान सभा का नेता मुख्यमंत्री होता है जिसे बहुमत दल के सभी सदस्य या कई दल संयुक्त रुप से चुनते हैं।
राज्य का विधान सभा में 500 से अधिक और कम से कम 60 सदस्य राज्य में क्षेत्रीय चुनाव क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव करके चुने जाते हैं। क्षेत्रीय चुनाव का सीमांकन इस प्रकार होना चाहिए है कि प्रत्येक चुनाव क्षेत्र की जनसंख्या और इसको आबंटित सीटों की संख्या के बीच अनुपात जहां तक व्यावहारिक हो पूरे राज्य में एक समान हो। संविधान सभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है जब तक कि इसे पहले भंग न किया जाए।
विधान सभा का गठन अनुच्छेद 170 के तहत किया जाता है। जहां संसद सदस्य राष्ट्रपति या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेते हैं (अनुच्छेद 99), वहीं राज्य विधानसभा सदस्य राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेते हैं (अनुच्छेद 188)
राज्य के प्रत्येक क्षेत्र को विधानसभा क्षेत्र में बाँटा जाता है और लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव का आयोजन निर्वाचन आयोग के द्वारा प्रत्येक पांच वर्ष में किया जाता है। हालाँकि राज्यों के आकार और जनसँख्या के आधार पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग विधानसभा सीटें हैं और इन्ही विधानसभा सीटों से राष्ट्रीय पार्टियों, क्षेत्रीय पार्टी और निर्दलीय पार्टियों के प्रतिनिधि चुनाव में भाग लेते है। उत्तर प्रदेश को भारत के सबसे बड़े राज्य का दर्जा प्राप्त है, जहाँ विधानसभा सीटों की कुल संख्या 404 है।
अनुच्छेद 173 के अंतर्गत विधानसभा सदस्य के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निर्धारित की गई है –
अनुच्छेद 190 के अंतर्गत सदस्यता समाप्त हो सकती है –
संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है इस निश्चित समय से पूर्व भी राज्यपाल के द्वारा विधानसभा को खंडित किया जा सकता है। आपात काल की स्थिति में संघीय संसद कानून बनाकर किसी राज्य विधानसभा की अवधि को अधिक से अधिक एक समय में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। आपात स्थिति की समाप्ति के पश्चात जब बढ़ाई हुई अवधि केवल 6 माह तक लागू रह सकती है।
एक राज्य के राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह राष्ट्रपति के पास विचाराधीन किसी विधेयक को आरक्षित कर सकता है। सम्पत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण, उच्च न्यायालय की स्थिति और अधिकारों को प्रभावित करने वाले उपायों और अंतर राज्यीय नदी या नदी घाटी विकास परियोजना में बिजली वितरण या पानी के भंडारण, वितरण और बिक्री पर कर आरोपण जैसे विषयों पर विधेयकों को अनिवार्यत: इस प्रकार आरक्षित किया जाए। राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन के बिना, अंतर-राज्यीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाने वाले किसी विधयेक को राज्य विधान मंडल में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।