ब्रायोफाइटा (Bryophyta) वनस्पति जगत का एक बड़ा वर्ग है। इसके अन्तर्गत वे सभी पौधें शामिल हैं जिनमें वास्तविक संवहन ऊतक (vascular tissue) नहीं होते, जैसे – मोसेस (mosses), हॉर्नवर्ट (hornworts) और लिवरवर्ट (liverworts) आदि।
यह संसार के सभी भू-भाग में पाया जाता है, लेकिन यह मनुष्य के लिए किसी विशेष प्रयोग का नहीं है। वैज्ञानिक प्राय: इस एक मत पर ही है कि यह वर्ग हरे शैवाल से पैदा हुआ होगा। पौधों के वर्गीकरण में ब्रायोफाइटा का स्थान शैवाल (Algae) और टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) के बीच में आता है। ब्रायोफाइटा में लगभग 900 वंश और 23,000 जातियाँ हैं।
अधिकांश वैज्ञानिक ब्रायोफाइटा को तीन उपवर्गो में बांटतें हैं, वे निम्न है –
इस वर्ग में लगभग 225 वंश और 8,500 जातियाँ पाई जाती हैं। इसमें युग्मकोद्भिद (Gametophyte) चपटा और पृष्ठाधारी रूप से विभेदित होता है या फिर तने और पत्तियों जैसे आकार के होता है। पौधे के चाप काटने से अंदर के ऊतक या तो एक ही प्रकार के होते हैं, या फिर ऊपर और नीचे के ऊतक अलग अलग रूप के होते हैं और अलग अलग ही कार्य करते हैं। चपटे हिपैटिसी में नीचे के भाग से, जो मिट्टी या चट्टान से लगा होता है, पतले बाल जैसे मूलाभास या मूलाभास (rhizoid) निकलते हैं, जो जल और लवण सोखते हैं। इनके अतिरिक्त बैंगनी रंग के शल्कपत्र (scales) निकलते हैं, जो पौधे को मिट्टी से जकड़कर रखते हैं।
इस उपवर्ग को चार भागो में विभाजित किया जाता है, ये हैं :
इसमें 2 कुल होते है –
यह एक प्रमुख गण है, जिसमें चपटे पौधे पृथ्वी पर उगते हैं और ऊपर के ऊतक का रंग हरा होता हैं। इनमें हवा रहने का स्थान रहता है और ये मुख्यत: भोजन बनाते हैं तथा नीचे के ऊतक तैयार भोजन संचय करते हैं। इस गण में करीब 30 या 32 वंश तथा लगभग 400 जातियाँ पाई जाति हैं, जिन्हें पाँच कुल में रखा जाता हैं, ये कुल हैं :-
मुख्य वंश रिक्सिया (Riccia) और मार्केन्शिया (Marchantia), टारजिओनिया (Targionia), आदि हैं।
यह गण लगभग 190 वंश और 8,000 जातियों वाला गण है। ये पौधे अधिकांश गरम तथा अधिक वर्षावाले भूभाग में पाए जाते हैं और अधिकांश तने एवं पत्तियों वाले होते हैं। जंगरमैनिएलीज़ को दो उपगणों में विभाजित किया गया है :
इसमें पौधे बहुत ही सरल और पृष्ठाधरी रूप से विभेदित (dorsiventrally differentiated) होते हैं, परन्तु इसमें मध्यशिरा (mid rib) नहीं पायी जाती। इस उपवर्ग में एक ही गण ऐंथेसिरोटेलीज है, जिसके अंतर्गत पांच या छह वंश और लगभग 300 जातियाँ हैं। इनमें ऐंथोसिरोस (Anthoceros) और नोटोथिलस (Notothylas) प्रमुख वंश हैं। ये पौधे संसार के अनेक भागों में पाए जाते हैं। भारत में यह हिमालय की तराई तथा पर्वत पर और कुछ जातियाँ नीचे मैदान में भी पाई जाती हैं।
यह एक बृहत् उपवर्ग है, जिसके अंतर्गत लगभग 660 वंश और 14,500 जातियाँ हैं। इन्हें कभी कभी केवल मॉस या हरिता भी कहा जाता हैं। ये मिट्टी, पत्थर या चट्टान, जल, सूखती लकड़ी या पेड़ की डालियों पर और मकान तथा दीवार पर उगते हैं। मॉस की अनेक जातियों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जाता है :
इसमें एक ही वंश स्फैग्नम (Sphagnum) है, जिसके अंदर कुल 335 जातियाँ पाई जाती हैं। यह अधिकांश दलदली या छिछले तालाबों में काफी घने रूप से पाया जाता है। इसके मरने पर एक प्रकार का खास दलदल का निर्माण होता है, जिसे पीट (peat) कहते हैं। इसका आकार पतली रस्सी की तरह तथा रंग हरा होता है। इसमें से बहुत सी शाखाएँ निकलती हैं और तने पतली, छोटी पत्तियों से युक्त होती हैं।
इसमें केवल दो वंश ऐंड्रीया (Andrea) और न्यूरोलोमा (Neuroloma) हैं। ऐंड्रीया वंश काफी विस्तृत है और इसकी कुल 150 जातियाँ हैं। न्यूरोलीमा की सिर्फ एक ही जाति है।
इसमें लगभग 650 वंश तथा 14,000 जातियाँ हैं, जिन्हें लगभग 15 गणों में रखा जाता है। इस वर्ग के पौधे पृथ्वी के हर भाग में उत्तर से लेकर भूमध्यरेखीय वनों तक में, तालाब, झरने, दलदली मिट्टी, चट्टान, पेड़ के तने या शाखा पर, दीवार या मकान की छत पर, या अन्य नम स्थानों पर पाये जाते हैं। कुछ जातियाँ तो सूखे या कम प्रकाशित स्थानों पर भी उगती हैं। इनमें युग्मकोद्भिद दो प्रकार के होते हैं : पहला प्रोटोनिमा (Protonema), जो पतला होता है जैसा पृथ्वी में रहता है और कुछ शाखाओं में बंटा रहता है और दूसरा वह जिसकी प्रजनन शाखाएँ इन प्रोटोनिमा से निकल कर ऊपर हवा में आ जाती हैं और हरी पत्तियों से युक्त होती हैं।