स्टडी मटेरियल

माइटोकॉन्ड्रिया

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जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर अन्य सभी सजीव जंतु एवं पादप कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए दोहरी झिल्ली आबंध कोशिकांगों (organelle) को सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी प्रत्येक कोशिकाओं में पाई जाती हैं। माइटोकाण्ड्रिआन या सूत्रकणिका कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है।

श्वसन की प्रक्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में पूरी होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकतर ऊर्जा पैदा होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या ‘शक्ति गृह’ (पावर हाउस) कहते है।

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माइटोकोंड्रिया की खोज कोलिकर ने की तथा माइटोकोंड्रिया नाम बेन्डा ( 1897 ) ने दिया। माइटोकोंड्रिया की लम्बाई 1.5μ – 4μ तक तथा व्यास 0.5 से 1.0μ तक होता हैं।

माइटोकोंड्रिया दोहरी झिल्ली से घिरी हुई एक जीवित रचना होती हैं , माइटोकोंड्रिया में ऑक्सीश्वशन की क्रिया सम्पन्न होती हैं। माइटोकोंड्रिया जन्तुओ तथा पौधों की सभी जीवित कोशिकाओं में पायी जाने वाली रचनाएँ हैं , जो नीली – हरी शैवालों तथा बैक्टीरिया की कोशिकाओं में नहीं पायी जाती हैं। माइटोकोंड्रिया की क्रिस्टी की सतह व आंतरिक झिल्ली पर बहुत से छोटे (सूक्ष्म) कण पाए जाते हैं , जिन्हें F1 कण या ऑक्सीसोम्स कहा जाता हैं। F1 कण को इलेक्ट्रोन अभिगमन कण भी कहते हैं।

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माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य –