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पादपों में अलैंगिक जनन

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पादपों में अलैंगिक प्रजनन वह प्रक्रिया है जिसमें एकल जनक के द्वारा नए जीव का निर्माण किया जाता है कई एककोशिकीय और बहुकोशिकीय जीव अलैंगिक प्रजनन करते हैं। इसमें युग्मक या जनन कोशिकाओं का किसी भी प्रकार का योगदान नहीं होता है। इस प्रक्रिया में, जनक जीव का या तो विभाजन हो जाता है या फिर जनक जीव का एक भाग नया जीव बनाने के लिए अलग हो जाता है। इस प्रजनन में, जनक की कुछ कोशिकाएं समसूत्री कोशिका विभाजन से होकर गुजरती हैं, ताकि दो या अधिक नए जीव का निर्माण कर सकें। पादपों में अलैंगिक प्रजनन की कई विधियां होती है –

कायिक प्रवर्धन –

यह प्रचलित अलैंगिक जनन प्रक्रिया है। इस प्रकार का अलैंगिक प्रजनन सिर्फ पौधों में पाया जाता है। कायिक प्रवर्धन में, पुराने पौधों के हिस्से जैसे तना, जड़ और पत्ती के द्वारा नए पौधे को उगाने के लिए किया जाता है। पुराने पौधों में निष्क्रिय स्थिति में मौजूद अंकुर को जब अनुकूल स्थितियां जैसे नमी और ताप दिया जाता है, तब वे नए पौधों के रूप में उगने लगती हैं और विकसित होने लगती हैं। हरी घास, ब्रायोफाइलम (Bryophyllum), मनीप्लांट, आलू, प्याज, केला आदि के पौधों में कायिक प्रवर्धन पाया जाता है।

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कायिक प्रवर्धन में पादप के किसी भी को निकालकर या तोड़कर उससे पृथक कर लिया जाता है तथा फिर उन्हें आवश्यक निश्चित मिट्टी, हवा पानी आदि की मदद से उपजाऊ स्थान में नए पादपों के विकास की प्रक्रिया की जाती है। कायिक प्रवर्धन की भी अलग-अलग प्रकार की विधियाँ होती है जैसे – कलम लगाना, जड़ें लगाना, कतरन लगाना आदि।

मुकुलन-

शब्द अंकुर (Bud) का मतलब होता है- छोटा पौधा। मुकुलन की प्रक्रिया में एक छोटा अंकुर का विकास जनक जीव के शरीर पर होता है और नए जीव के निर्माण के लिए सही समय आने पर खुद को जनक जीव से पृथक कर लेता है।

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इसमें प्रमुख पादप पर एक नये छोटे पादप का विकास हो जाता है तथा धीमी गति से वृद्धि करता है तथा समय आने पर उस प्रमुख पादप से अलग होकर नए पादप के रूप में विकसित होता रहता है।

विखण्डन-

इसका मतलब है विभाजित होना। इसमें द्विविखण्डन बहुविखंडन सम्मिलित हैं। द्विविखण्डन में मुख्य कोशिका पूरी तरह विकसित होने के निकट पहुंचकर दो भागों में बंट जाती है तथा फिर स्वयं खत्म होकर दो नए पादपों का निर्माण करती है। बहुविखंडन में मुख्य कोशिका विभाजित कर बहुत से नए पादपों का निर्माण करती है। विखंडन के 2 प्रकार होते है –

द्विखंडन –

द्विखंडन में एकल जनक कोशिका सम्पूर्ण रूप से विकास होने वाले बिन्दु पर पहुँचकर दो भागों में विभाजित हो जाती है। इस प्रक्रिया में विभाजन के बाद जनक कोशिका समाप्त हो जाती है तथा दो नए पादपों का निर्माण होता है।

बहुविखंडन –

बहुविखंडन अलैंगिक प्रजनन की वह प्रक्रिया है, जिसमें कई नए पादपों का निर्माण के लिए जनक कोशिका विभाजित होती है। ऐसा प्रायः तब होता है जब पुटी (Cyst) का निर्माण एककोशिकीय जीव के आस–पास हो जाता है। इस पुटी (Cyst) के अन्दर जीव का नाभिक कई छोटे नाभिकों में टूट जाता है। जब अनुकूल परिस्थिति होती है, तब पुटी (Cyst)का विभाजन होता है और उसके अंदर की कई संतति कोशिकाएं (Daughter Cells) मुक्त हो जाती हैं।

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बीजाणु का निर्माण-

बीज व अणु से मिलकर बना शब्द बीजाणु का निर्माण होता है। इसके द्वारा ही नए पादप बनते हैं। सभी प्रकार के पादपों में बीजाणु का निर्माण होता है। बीजाणु (Spore) का निर्माण एककोशिकीय और बहुकोशिकीय, दोनों ही प्रकार के जीवों में होता है। यह प्रक्रिया पौधों में पायी जाती है। बीजाणु निर्माण में, जनक पौधा अपने बीजाणु पेटी (Spore Case) में सैंकड़ों प्रजनन इकाईयाँ उत्पन्न करता है, जिन्हें ‘बीजाणु’ कहा जाता हैं। जब पौधों की यह बीजाणु पेटी फटती है तो ये बीजाणु हवा, जमीन, भोजन या मिट्टी पर फ़ैल जाते हैं तथा नए पौधे को जन्म देते हैं।

पुनःजनन –

पुनःजनन का अर्थ है- दुबारा से पैदा होना। जब किसी पादप का कोई भाग (जैसे पत्ते, तना या टहनी) टूट कर उससे अलग हो जाता है तो प्राकृतिक रूप से इसपे स्वतः नई पैदावार होती है। पुनर्जनन प्रक्रिया प्रजनन की एक अलैंगिक विधि है। क्योंकि इसमें नई उत्पत्ति बिना किसी जनन क्रिया के होती है।

अलैंगिक जनन की प्रक्रिया में अगर जनक जीव का शरीर का कोई हिस्सा यदि कहीं से कट जाए , तो कटे हुए प्रत्येक हिस्से का फिर से जनन हो जाता है और अपने शरीर के हिस्से से पूरी तरह से एक नया जीव बना लेता है। ऐसा होने का कारण यह है की जब किसी जीव का शरीर पुनर्जनन से होकर गुजरता है तो उसमें कटान होता है और फिर कटे हुए शरीर के हिस्से की कोशिकाओ का तेजी से विभाजन होता हैं और कोशिकाओं का गोलक (Ball) का निर्माण कर लेती हैं। ये कोशिकाएं इसके बाद अपने अंगों और शरीर के हिस्सों के निर्माण के लिए उचित स्थानों पर पहुँच जाती हैं। पुनर्जनन पौधों और जानवरों दोनों में पाया जाता है।

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