पुष्प, पौधों की वह संरचनाएं हैं जो यौन प्रजनन में शामिल होते हैं। अर्थात पुष्प आम तौर पर बाह्यदल और पंखुड़ियों जैसे गैर-आवश्यक भागों के अलावा यौन प्रजनन संरचनाओं से युक्त होते हैं।
पुष्प की दूसरी परिभाषा यह है कि यह सीमित विकास के साथ एक डंठल होते हैं। इन संरचनाओं को एंथोफिल कहा जाता है (पंखुड़ी और बाह्यदल) और इनमें अलग-अलग भाग होते हैं। पुष्प का हर भाग एक या एक से अधिक कार्यों में विशिष्ट होता है, जैसे कि युग्मकों का निर्माण करना, फलों और बीजों का फैलाव करना, परागण और सुरक्षा की अन्य संरचनाएं।
पुष्प के निम्न भाग होते है –
बाह्य दाल, पुष्प का सबसे बाहरी चक्र होता है। इनकी संरचना हरे रंग की छोटी पत्तीनुमा होती है जिन्हें बाह्य दल (sepals) के नाम से जाता हैं। जब ये जुड़े होते हैं तो इन्हें संयुक्त बाह्यदलीय (Gamosepalous) कहा जाता हैं तथा जब ये स्वतंत्र होते हैं तो इन्हें पृथक बाह्यदलीय (Polysepalous) कहा जाता है।
कुछ पुष्पों में यह रंगीन होकर परागण के लिए कीटों को आकर्षित करने का काम करता है। ये कली (Buds) की तथा उसके अन्य आन्तरिक भागों की सुरक्षा करते हैं। इनकी संख्या पुष्पों के आधार पर ही होती है।
दल चक्र, पुष्प का दूसरा चक्र कहलाता है जो बाह्य दलपुंज के अन्दर स्थित होता है। बाह्य दल चक्र के अंदर या ऊपर रंगीन पत्रों का एक चक्र होता है तथा इन रंगीन पत्रों को दल पत्र (petals) कहते हैं। यह प्रायः 2-6 दलों (Petals) का बना होता है। यह परागण हेतु कीटों को आकर्षित करता है। जब दल जुड़े होते हैं तो उन्हें संयुक्त दलीय (Gamopetalous) कहा जाता हैं तथा जब दल (Petals) स्वतंत्र होते हैं, तो उन्हें पृथक दलीय (Polypetalous) कहा जाता है।
दल के रंगीन होने के कारण कीटों को आकर्षित कर परागण में सहायता करते है।
पुंकेसर पुष्प का वास्तविक नर जनन भाग होता है। यह पुष्प का तीसरा चक्र है जो नर अंगों का बना हुआ होता है। इसमें बहुत लम्बी-लम्बी रचनाएँ पायी जाती हैं जिनको पुंकेसर (stamens) कहा जाता हैं। प्रत्येक पुंकेसर को 3 भागो में विभाजित किया जाता हैं – तन्तु (Filament), परागकोष (Anther) तथा योजी (Connective)।
जब पुंकेसर आपस में जुड़े हो तो ये तीन प्रकार के होते है –
पुंकेसर में एक द्विपालिक (bilobed) रचना होती है उसे परागकोश कहा जाता हैं। परागकोश पतले, लचीले तन्तु (filament) के सिरे पर स्थित होता है। परागकोश में चार कोष्ठ होते हैं जिन्हें परागपुट (pollen sacs) कहा जाता हैं। परागपुट में परागकणों की उत्पत्ति होती है।
परागकण ही वास्तविक नर युग्मक (male gamete) होते हैं। ये अति सूक्ष्म रचना होते हैं जो चारों ओर से एक कड़ी छिद्रयुक्त निर्जीव कवच या भित्ति द्वारा घिरी रहती है। इस भित्ति को बाह्यचोल (exine) कहा जाता हैं। इसके नीचे एक महीन भित्ति और होती है जिसे अत चोल (intine) कहा जाता हैं। ये भित्तियाँ परागकणों की सुरक्षा करती हैं। प्रत्येक परागकण का केन्द्रक (nucleus) दो केन्द्रकों में विभाजित हो जाता है। इनमें एक को जनन केन्द्रक और दूसरे को कायिक केन्द्रक (vegetative nucleus) या (tube nucleus) कहते हैं। जब परागकोश पूरी तरह से पक जाते हैं तब ये खंडित हो जाते हैं और परागकण प्रकीर्णन (dispersal) के लिए तैयार होते है।
जायांग मुख्य तीन भागों द्वारा बना होता है। आधार पर उभरा फूला भाग अण्डाशय कहलाता है। मध्य में लम्बा भाग वर्तिका तथा शीर्ष भाग वर्तिकाग्र कहलाता है। जो प्रायः चिपचिपा होता है जिस पर परागकण आकर चिपक जाते हैं। अण्डाशय में बीजाण्ड होते हैं तथा प्रत्येक बीजाण्ड में एक अण्ड कोशिका होती है। इस अण्डकोशिका में भी गुणसूत्रों की संख्या अगुणित haploid (n) होती है।
प्रत्येक अंडाशय में एक या एक से अधिक बीजांड मौजूद है जो चपटे गुद्दीदार बीजांडसन के द्वारा जुड़े रहते है। अंडाशय में दो या दो से अधिक अन्डप होने पर अंडाशय दो प्रकार का होता है –
बीजाण्ड का आकार अण्डाकार होता है। यह एक बीजाण्ड वृन्त (Funiculus) द्वारा बीजाण्डसन से जुड़ा हुआ होता है। जिस स्थान पर बीजाण्ड बीजाण्ड-वृन्त द्वारा लगा होता है उस हिस्से को हाइलम (Hilum) कहा जाता हैं। बीजाण्ड वृन्त आगे बढ़कर बीजाण्ड से मिलकर एक स्थान का निर्माण करता है, उस स्थान को रैफे (Raphe) कहा जाता हैं। बीजाण्ड के प्रमुख भाग को बीजीण्डकाय (nucellus) कहा जाता हैं, जो की दो आवरणों द्वारा ढका होता है- बाहरी अध्यावरण (Outer integument) एवं भीतरी अध्यावरण (Inner integument)l बीजाण्ड का जो भाग अध्यावरण से ढका नहीं होता है, उस स्थान को बीजाण्ड द्वार (Micropyle) कहा जाता हैं। बीजाण्ड द्वार के ठीक विपरीत हिस्से को कैलाजा (Chalaza) कहा जाता हैं।
बीजाण्ड के भीतर भ्रूणकोष (Embryosac) पाया जाता है। इस भ्रूणकोष के अंदर मादा युग्मक (अंडाणु) मौजूद होता है। भ्रूणकोष परिपक्व होकर निषेचन (Fertilization) के लिए तैयार होता है।