एक शुद्ध रूप (Pure Form) होते है इनको हीरे की खानों से प्राप्त किया जा सकता हैं। ये खानें मुख्यतः दक्षिण अफ्रीका (South Africa), ब्राजील (Brazil), अमेरिका (America), रूस (Russia) एंव भारत (India) में ही पाई जाती हैं। विश्व के समस्त हीरों का लगभग 95 प्रतिशत हीरा दक्षिण अफ्रीका से प्राप्त किया जाता है।
भारत में हीरा दक्षिण में गोलकुंडा की खानों में होता है। मध्यप्रदेश (Madhay Pradesh) में पन्ना, आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) में वजरा कारुर में भी हीरे की खानें मौजूद हैं। विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर (Kohinoor) हीरा गोलकुंडा की खान के अंदर से ही निकला था। हीरों के वजन का मापन कैरेट में किया जाता है। एक कैरेट का मान 0.2053 ग्राम होता है।
हीरे के गुण
हीरे की संरचना
हीरों में सिर्फ कार्बन परमाणु पाए जाते हैं, प्रत्येक कार्बन चार अन्य कार्बन परमाणुओं से एकल सहसंयोजक बंधों से जुड़ा होता है। इसमें परमाणु SP3 संकरण होता है तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु समचतुष्फ़लक (Icosahedral) के केंद्र पर उपस्थित होता है तथा अन्य चार कार्बन परमाणु समचतुष्फ़लक (Icosahedral) के कोनों पर स्थित होते हैं ।
इस संरचना में प्रत्येक C-C बंधों की लम्बाई 1.54A होती है इस तरह हीरे की संरचना में प्रबल सहसंयोजक बंधों का त्रिविम जाल का निर्माण होता है। इसी कारण हीरा बहुत ज्यादा कठोर होता है।
हीरे का गलनांक भी उच्च (3843K) होता है। कार्बन के चारों संयोगी इलेक्ट्रॉन बंध में हिस्सा लेते हैं जिसके कारण हीरा विद्युत् का अचालक होता है।
हीरे के उपयोग
ग्रेफाईट शब्द का निर्माण ग्रेफो (Grapho) से हुआ है जिसका अर्थ होता है- लिखना। ग्रेफाइट को शुरू में सीसे का अपररूप (Allotrope) मान कर प्लुम्बेगो (Plumbago) अथवा कालासीसा कहा जाता था।
इसीलिए लिखने वाली पेन्सिल को आज भी सीसा पेन्सिल (Lead Pencil) कहते है जबकि पेन्सिल में सीसा नहीं ग्रेफाईट होता है, जो की कार्बन का अपररूप है तथा एक अधातु (Non-Metal) है।
प्रकृति में ग्रेफाईट काफी मात्रा में पाया जाता है। अमेरिका (America), इटली (Italy), श्रीलंका (Sri Lanka), साइबेरिया (Siberia), नेपाल (Nepal), कनाडा (Canada), चेकोस्लोवाकिया (Czechoslovakia) और भारत (India) में इसकी खानें हैं।
भारत में इसकी खानें उड़ीसा (Orissa), राजस्थान (Rajasthan), बंगाल (Bangal), कश्मीर (Kashmir) और दक्षिण भारत (South India) में हैं।
ग्रेफाईट के गुण
ग्रेफाईट की संरचना
ग्रेफाइट में सभी कार्बन परमाणु SP2 संकरण होता है तथा तीन दूसरे कार्बन परमाणुओं से एकल संयोजी बंधों से जुड़ा रहता है। सभी कार्बन परमाणु का एक इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है जिसके कारण ग्रेफाइट विद्युत् का चालक (Conductor) होता है।
ग्रेफाइट में C-C बंधों की लम्बाई 1.42A होती है। प्रत्येक कार्बन परमाणु अन्य तीन कार्बन परमाणुओं से जुड कर षट्कोणीय वलय का निर्माण करके एक ही तल पर उपस्थित रहते हैं ।
ग्रेफाइट की ये सभी वलय (Ring) संरचनाए परस्पर मिलकर एक परत संरचना का निर्माण करती है। दो परतों के बीच आकर्षण बल दुर्बल (Weak Attraction force) होने के कारण एक परत दूसरी परत पर आसानी से फिसल जाती है। इसीलिए ग्रेफाइट नर्म और चिकना (Soft and smooth) होता है।
ग्रेफाईट के उपयोग
यह कार्बन का एक क्रिस्टलीय अपररूप होता है। सर्वप्रथम इसकी खोज सन 1985 में हुई है। फुलरीन के अणु में 60, 70 या अधिक संख्या में कार्बन परमाणु मौजूद हैं ।
फुलरीन की संरचना
फुलरीन के अणुओं की संरचना गोल गुंबद (Round dome) की तरह होती है। इसीलिए अमेरिका के प्रसिद्ध वास्तुकार बकमिनसटर फुलर ने इसका नाम फुलरीन रखा था। इनमें C60 फुलरीन सबसे ज्यादा स्थायी है। C60 को बकमिन्स्टर फुलरीन कहा जाता हैं ।
फ़ुटबाल के समान आकृति के कारण C60 को बकी वाल भी कहा जाता हैं। C60 की संरचना में 32 फलक मौजूद होते हैं, जिसमें 20 फलक षट्कोणीय तथा 12 फलक पंचकोणीय हैं।
फुलरीन के गुण
कार्बन के तीनों अपररुपों में ग्रेफाइट (Graphite) सबसे अधिक व फुलरीन (Fullerene) से कम स्थायी है।
फुलरीन के उपयोग
फुलरीन 60 के क्षार तत्वों के साथ यौगिक उच्च तापीय अतिचालकता प्रदर्शित (High Temprature Superconductivity) करते हैं। ये यौगिक तकनीकी दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं ।