यौगिक में परमाणु तथा पदार्थ में अणु को आपस में बांधने के लिए जो कारक अथवा बल जिम्मेदार होते हैं, उन्हें बंध (Bond) कहा जाता हैं तथा इस प्रक्रिया को बंधन (Bonding) कहा जाता है।
पॉलिंग के अनुसार,” एक रासायनिक बंध दो परमाणुओं के बीच लगने वाला वह बंधन बल है जिसकी ताकत के कारण बना परमाणुओं का झुंड इतना स्थायी होता है कि वह स्वतंत्र इकाई (अणु) माना जा सके” सरल अर्थों में अणु में मौजूद परमाणुओं के बीच लगने वाला आकर्षण बल बंध कहलाता है तथा किसी अणु मे परमाणु जितने रासायनिक बंध का निर्माण करता है उसे उसकी संयोजकता (valancy) कहा जाता है।
दो परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉन की स्थांतरण से बने बंध को electrovalent bond कहा जाता हैं। इस विद्युत संयोजक का निर्माण बंधन और ऋण आवेश के द्वारा होता हैं, द्रवनांक और क्वथनांक ज्यादा होता है, विद्युत आकर्षण बल से जुड़े होते हैं, ठोस अवस्था में विद्युत का कुचालक होते हैं विद्युत संयोजक बंध की कोई दिशा नहीं होती है अर्थात ये दिशाहीन होते हैं, जल में घुलनशील होते हैं, परंतु कार्बनिक घोल में घुलनशील नहीं होते हैं तथा बहुत ही तेजी से रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेते हैं।
ऐसा रसायनिक बंधन जिसका निर्माण दो परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉन के साझेदारी से होता है उन्हें सहसंयोजक बंध (co-valent bond) कहा जाता हैं। जब दो परमाणुओं के बीच विद्युत ऋनात्मकता का अंतर काफी कम या शून्य के बराबर हो तो इस प्रकार के बंध का निर्माण होता है। जल अमोनिया तथा मीथेन के परमाणु सहसंयोजक बंध से सम्बद्ध होते हैं, इन तीनों का यौगिक बंधन कोण 105°, 109° तथा 109.28° होता है। सहसंयोजक बंध के चार प्रकार होते हैं –
– एकल सहसंयोजक बंध (Single covalent bond)–
जब दो परमाणुओं के मध्य एकल जोड़ा इलेक्ट्रॉन साझा हो तो उन्हें एकल सह संयोजक बंध कहा जाता हैं जैसे- हाइड्रोजन अणु का निर्माण होना इत्यादि।
– द्वि सहसंयोजी बंध (Dual covalent bond)–
जब किसी बांध को बनाने में दो इलेक्ट्रॉन की साझीदारी हो तो द्वि सहसंयोजी बंध बनता है जैसे ऑक्सीजन अणु का निर्माण होना इत्यादि।
– त्रिक सहसंयोजक बंध (Triple covalent bond) –
जब एक बंध क निर्माण करने में 3 इलेक्ट्रॉन की साझेदारी हो तो ट्रिपल इलेक्ट्रो बांड कहते हैं जैसे नाइट्रोजन अणु का निर्माण होना।
– ध्रुवीय सहसंयोजक बंध (Polar covalent bond)–
जिस बंध का निर्माण असामान परमाणु के बीच होता है उसे ध्रुवीय सहसंयोजक बंध कहा जाता है।
सहसंयोजक बंध कमजोर बंध होने की वजह से इसके द्रवनांक और क्वथनांक निम्न होते हैं जल में अघुलनशील और कार्बनिक घोल में घुलनशील होते है। सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) में विद्युत एवं सहसंयोजक बंध मौजूद होते हैं।
एक ही परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन युग्म की साझेदारी से जिस बंध का निर्माण होता है उन्हें उपसहसंयोजक बंध कहा जाता हैं। जो परमाणु इलेक्ट्रॉन को देता है उन्हें दाता और जो ग्रहण करता है उन्हें ग्राही कहा जाता हैं।
अक्रिय गैसें ऑर्गन, निऑन, रेडॉन और क्रिप्टन के परमाणु के बह्यतम कक्षा में इलेक्ट्रॉन की संख्या 8 होती है जबकि अपवाद स्वरुप हीलियम में सिर्फ 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं। अक्रिय गैस अस्थाई प्रवृत्ति की होती है। रासायनिक अभिक्रिया में भाग नहीं लेते हैं और ना ही कोई बंधन बनाते हैं।
कोई भी परमाणु को अक्रिय गैस की इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तीन प्रकार से प्राप्त होते है –
परमाणु का समूह जिनमें आवेश हो उन्हें आयन (ion) कहा जाता है। आयन के दो प्रकार होते हैं-
धन आयन –
धनायन में इलेक्ट्रॉन का त्याग तथा ऋण आयन में इलेक्ट्रॉन का ग्रहण होता है। धन आयन धातु से बने होते हैं, धनायन का आकार इनके परमाणु से छोटा होता है
ऋण आयन –
ऋण आयन अधातु से बने होते हैं और इनका आकार परमाणु से बड़ा होता है। धातु तत्व के परमाणु को विद्युत धनात्मक तत्व और अधातु तत्व के परमाणुओं को विद्युत ऋणात्मक तत्व कहा जाता हैं।
लुईस अष्टक सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक तत्व अपने संयोजी कोश में 8 इलेक्ट्रॉन प्राप्त करके अधिक स्थायित्व अर्थात निकटतम अक्रिय गैस का विन्यास (configuration) प्राप्त करने की प्रवत्ति रखता है जिस कारण यह बंध का निर्माण करता है।
ब्रह्माण्ड में मौजूद प्रत्येक System अपने स्थितिज ऊर्जा को कम करके ज्यादा स्थायी होने की प्रवृति रखता है। बंध निर्माण में परमाणुओं की स्थितिज ऊर्जा में कमी आ जाती है अर्थात बन्धित परमाणु (Bonded atom), आबंधित परमाणु की तुलना में अधिक स्थाई होता है क्योंकि इसकी ऊर्जा भी कम होती है।
ऊर्जा में होने वाली वाली यह कमी बंध निर्माण की वजह से होती है तथा इस प्रक्रिया में निकलने वाली ऊर्जा को बंधन ऊर्जा (Bond energy) कहा जाता है।