सन 1891-1897 तक के अपने प्रयोगो द्वारा सन 1898 में जे.जे. थॉमसन ने यह बताया की परमाणु एक समान आवेशित गोला (त्रिज्या लगभग 10−10m) होता है, जिसमे धनावेश बराबर रूप से वितरित रहता है। इस पर इलेक्ट्रॉन इस प्रकार लगे होते हैं कि उससे एक स्थिर व स्थायी वैद्युत व्यवस्था प्राप्त होती है। इसे इलेक्ट्रॉन की खोज के तुरंत ही बाद, और परमाणु नाभिक की खोज से पहले बनाया गया था। इस प्रस्तावित मॉडल को थॉमसन ने मार्च 1904 में उस समय की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘फिलॉस्फिकल मैग्जीन‘ में प्रकाशित कराया था।
इस परमाणु मॉडल को कई नाम दिए गए है जैसे:- प्लम-पुडिंग मॉडल (Plum-pudding model), रेज़िन-पुडिंग मॉडल, तरबूज मॉडल आदि। इस मॉडल का नाम तरबूज मॉडल इसलिए रखा गया क्योंकि इस मॉडल में परमाणु का धनावेश या तरबूज जैसा माना गया है और इलेक्ट्रॉन इसमे प्लम अथवा बीज की तरह मौजूद है।
इस मॉडल की ख़ास बात यह है कि इसमे परमाणु का द्रव्यमान पूरे परमाणु पर समान रूप से बंटा हुआ माना गया है। परन्तु यह मॉडल भविष्य के परमाणु के प्रयोगो के संगत नहीं पाया गया। यह परमाणु मॉडल रदरफोर्ड के प्रकीर्णन को नहीं समझा सका। इसलिए इसे रद्द कर दिया गया। यह मॉडल परमाणु की विद्युत उदासीनता को पूर्णतया स्पष्ट करता था। थॉमसन को सन 1906 में भौतिकी में गैसों की विद्युत चालकता पर सैद्धान्तिक व प्रायोगिक जांच के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस परमाणु मॉडल के सिद्धान्त का खंडन अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने अपने सन 1911-1919 तक के परमाणु मॉडल के प्रयोगो के आधार पर किया।
थॉमसन के मॉडल के बाद दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा परमाणु के सम्बन्ध में और नए प्रयोग व खोज करने से दूसरे तथ्य प्रस्तुत किये गए। इस कारण से थॉमसन के मॉडल की बहुत सी कमियाँ सामने आईं, जिनमें से कुछ हैं-