ऐसे पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया में स्वयं अपरिवर्तित रहते हैं परन्तु अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित कर देते है, उत्प्रेरक (Catalyst) कहलाते है।
जब रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक अभिकारक और उत्पाद तीनों ही एक समान भौतिक अवस्था में रहते हैं, तो ऐसे उत्प्रेरक को समांगी उत्प्रेरक कहा जाता हैं।
NO(g)
2SO2(g) + O2(g) – 2SO3(g)
( सल्फरडाई आक्साइड सल्फरट्राइआक्साइड )
जब रासायनिक अभिक्रया में अभिकारक व उत्प्रेरक की भौतिक अवस्थाये अलग-अलग होती है, तो उस उत्प्रेरक को विषमांगी उत्प्रेरक कहा जाता है।
Ni(s)
वनस्पति तेल(l) + H2(g) – वनस्पति घी(s)
सूक्ष्म विभाजित निकल (Ni) धातु उत्प्रेरक की मौजूदगी में वनस्पति तेलों का हाइड्रोजनीकरण करके वनस्पति घी बनाया जाता है यहां तेल द्रव अवस्था में H2 गैसीय अवस्था में निकल तथा घी ठोस अवस्था में है।
वे पदार्थ जो रसायनिक अभिक्रियों के वेग में वृद्धि कर देते धनात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं।
उदाहरण- उत्प्रेरक की अनुपस्थिति में हाइड्रोजन परक्साइड के अपघटन के लिए सक्रियण ऊर्जा का मान 76kJ प्रति मोल है। यदि उपरोक्त अपघटन कोलाइडी Pt (प्लैटिनम) की उपस्थिति में करते हैं तो सक्रियणऊर्जा का मान 50kJ प्रतिमोल रह जाता है। अपनी उपस्थिति में सम्पूर्ण रासायनिक अभिक्रिया की क्रियाविधि परिवर्तित कर देते है जिसकी सक्रियण ऊर्जा का मान कम होता है।
वे उत्प्रेरक जो रसायनिक अभिक्रिया का वेग में कमी कर देते हैं ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाते है। ऋणात्मक उत्प्रेरक को मंदक या निरोधक भी करते हैं।
उदाहरण – हाइड्रोजन परोक्साइड का अपघटन ग्लिसरॉल की उपस्थिति में कम हो जाता है।
रासायनिक अभिक्रिया में बना उत्पाद खुद ही उस अभिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करे, अर्थात् अभिक्रिया के वेग परिवर्तन कर दे तो निर्मित उत्पाद को स्वतः उत्प्रेरक कहा जाता है।
उदाहरण- एस्टर के जल अपघटन की दर प्रारम्भ में कम होती है परन्तु कुछ समय बाद तीव्र हो जाती है क्योंकि अभिक्रिया में उत्पन्न CH3COOH द्वारा जनितआयन उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
कुछ अभिक्रियाओं में एक अभिक्रिया का वेग उसके साथ होने वाली दूसरी अभिक्रिया के प्रेरण से तीव्र हो जाता है। इस स्थिति में अभिक्रिया प्रेरित उत्प्रेरक कहलाती है।
उदाहरण- सोडियम सल्फेट का वायु से तीव्र गति से ऑक्सीकरण होता है। सोडियम आर्सेनाइट का ऑक्सीकरण नहीं होता है। दोनों पदार्थो को मिला दिया जाए तो दोनों वायु द्वारा ऑक्सिकृत हो जाते हैं।
जैव रासायनिक अभिक्रिया की गति को बढ़ाने में जो एंजाइम काम में लिए जाते हैं उन्हें जैव उत्प्रेरक कहा जाता हैं। इन्हें साधारणतया एन्जाइम भी कहा जाता है। एंजाइम जटिल कार्बोनिक यौगिक होते हैं जो कि अलग अलग जैव रासायनिक क्रियाओं के लिए विशिष्ट होते है।
उदाहरण – माल्टोज एंजाइम की उपस्थिति में ग्लूकोस में परिवर्तित होता हैं।
कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिन्हे अभिक्रिया मिश्रण में उत्प्ररेक के साथ मिला देने पर उत्प्रेरक की क्रियाशीलता पर प्रभाव डालते है। ये दो प्रकार के होते है।
– उत्प्रेरक वर्धक (Catalyst Promoter) –
वे पदार्थ जो अभिक्रिया मिश्रण में उत्प्रेरक के साथ मिलाने पर उत्प्रेरक की क्रियाशीलता में वृद्धि कर देते है, उन्हें उत्प्रेरक वर्धक कहलाते है।
– उत्प्रेरक विष (Catalyst Poison) –
वे पदार्थ जो अभिक्रिया मिश्रण में मिलाने पर उत्प्रेरक की क्रियाशीलता में कमी कर देते हैं, उत्प्रेरक विष कहलाते है।
औद्योगिक तथा रासायनिक क्रियाक्षेत्र में उत्प्रेरक बहुत ही उपयोगी साबित हुए हैं। नाइट्रोजन का स्थिरीकरण उत्प्रेरित क्रियाओ का एक सरल उदाहरण है। पेड़ पौधों के लिए स्थायी नाइट्रोजन की उपलब्धि नाइट्रेट या अमोनिया के रूप में होती है। नाइट्रोजन के ये दोनों ही रूप उत्प्रेरको की सहायता से निर्मित होते रहते हैं।
द्वितीय महायुद्ध के समय लगभग समस्त विश्व में मोटर आदि वाहनों को चलाने में जो ईधन काम में लाया जाता था वह सब उत्प्रेरकों की सहायता से ही तैयार किया जाता था। उत्प्रेरण द्वारा पेट्रोलियम से बहुत से ऐसे पदार्थ बनाए जाते थे जो ईधन के रूप में काम में लाए जाते थे। इसके अतिरिक्त उत्प्रेरित क्रियाओं का अन्य महत्व भी है, उदाहरण के लिए ब्यूटाडाईन तथा स्टाईरीन से संश्लिष्ट रबर का निर्माण करने, गंधकाम्ल के निर्माण, तथा सूक्ष्म खंडित निकल की उपस्थिति में वानस्पतिक तेलों के हाइड्रोजनीकरण द्वारा वनस्पति घी के निर्माण में इत्यादि।