बल वह बाहरी कारक हैं जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था को परिवर्तित करता है। जब कोई वस्तु किसी भी सीधे रास्ते पर गतिमान अथवा चल रही होती है तो उस वस्तु को रोकने के लिए या उसकी गति में और वृद्धि करने के लिए जिस कारक का प्रयोग होता है उसे ही बल कहा जाता है। बल एक सदिश राशि होती है, इसमें परिमाण और दिशा दोनों होते हैं।
1. घर्षण बल –
जब किसी स्थिर ठोस वस्तु पर कोई दूसरी ठोस वस्तु इस प्रकार रखी जाती है जिससे दोनों समतल पृष्ठ एक-दूसरे को स्पर्श करे, तो इस स्थिति में दूसरी वस्तु को पहली वस्तु पर खिसकने के लिए बल का प्रयोग करना पड़ता है l इस बल का मान एक निश्चित सीमा से कम होने पर दूसरी वस्तु पहली वस्तु पर नहीं खिसक सकती है l इस विरोधी बल को घर्षण (Friction) कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में – घर्षण एक प्रकार का बल होता है जो दो तलों के मध्य सापेक्षिक स्पर्शी गति के विरूद्ध होता है। घर्षण बल का मान दोनों तलों के मध्य अभिलम्ब बल पर निर्भर होता है।
घर्षण दो प्रकार के होते हैं:- स्थैतिक घर्णण और गतिज घर्षण
स्थैतिक घर्षण दो पिण्डों के संपर्क-पृष्ठ की समान्तर दिशा में आरोपित होता है, तथा गतिज घर्षण, गति की दिशा पर निर्भर नही होता है।
2. अभिकेन्द्रीय बल –
जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार रास्ते पर चलायमान होती है, तो उस पर कोई एक वृत्त के केंद्र पर बल आरोपित होता है, यह बल अभिकेंद्रीय बल कहलाता हैं। इस बल के बिना वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है। यदि कोई m द्रव्यमान का पिंड v से r त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर चल रहा है तो उस पर कार्यकारी वृत्त के केंद्र की ओर आवश्यक अभिकेंद्रीय बल f=mv2/r होता है।
किसी पिण्ड के तात्क्षणिक वेग के लम्बवत दिशा में गतिपथ के केन्द्र की ओर लगने वाला बल अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal force) कहलाता है। अभिकेन्द्र बल के कारण पिण्ड वक्र-पथ पर गति करती है (न कि रैखिक पथ पर)। उदाहरण के लिये वृत्तीय गति का कारण अभिकेन्द्रीय बल ही है।
3. चुम्बकीय बल –
किसी एक चुंबक के द्वारा दूसरे चुंबक पर या चुंबकीय पदार्थ पर लगाया गया आकर्षण या प्रतिकर्षण बल को चुंबकीय बल (Magnetic Force) कहा जाता है।
एक धारावाही चालक (तार) एक बल का अनुभव करता है जब इसे एक चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है। धारा आवेशित कणों का समूह है जो कि गति में है। इस प्रकार, प्रत्येक गतिमान आवेशित कण एक चुम्बकीय क्षेत्र में एक बल अनुभव करता है, जिसको लारेन्ज बल कहा जाता है।
4. गुरुत्वाकर्षण बल –
दो कणों के मध्य कार्य करने वाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का समानुपाती होता है तथा उनके मध्य की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। कणों के बीच कार्य करने वाले आपसी आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहा जाता है।
1. संतुलित बल –
यदि कोई भी वस्तु पर लगने वाले प्रत्येक बलों का परिणामी बल शून्य हो तो उस वस्तु पर लगने वाले बलों को संतुलित बल कहा जाता हैं।
2. असंतुलित बल –
यदि कोई भी वस्तु पर लगने वाले सभी बलों का परिणामी बल शून्य नहीं होता है तो उस वस्तु पर लगने वाले बलों को असंतुलित बल कहा जाता हैं।
कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की अपेक्षा में समय के साथ स्थान को बदलती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (motion) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में – यदि कोई वस्तु अपनी स्थिति अपने चारों ओर कि वस्तुओं की अपेक्षा परिवर्तित करती रहती है तो वस्तु की यह स्थिति गति कहलाती है। उदाहरण – नदी में चलती हुई नाव, वायु में उडता हुआ वायुयान आदि।
1. न्यूटन का प्रथम नियम (जडत्व का नियम): –
कोई वस्तु अपनी स्थिर अवस्था या एक सीध में एकरूप गति अवस्था में तब तक ही रहती है, जब तक बाहरी बल (external force) द्वारा उसकी विरामावस्था या गति अवस्था में कोई परिवर्तन न किया जाए। इससे वस्तु के विराम की अवस्था (Inertia) का पता चलता है अतः यह नियम विराम का नियम भी कहलाता हैं।
जड़त्व का नियम (Law of Inertia): जब तक कि उस वस्तु पर कोई बाह्य बल नहीं लगाया जाए तब तक कोई वस्तु यदि स्थिर अवस्था में है तो वह स्थिर अवस्था में ही रहेगी और यदि वस्तु एक समान गति की अवस्था में तो वह समान रूप से गतिशील ही रहेगी। वस्तु के विरामावस्था में रहने या एकसमान वेग से गतिशील रहने की प्रवृति या अपनी मूल अवस्था को बनाये रखने की प्रवृति को जड़त्व (Inertia) कहा जाता है।
गति के प्रथम नियम का समीकरण –
v = u + at
जहाँ-
v – वेग
u – प्रारंभिक वेग
a – त्वरण
t – समय
जड़त्व के कुछ उदाहरण –
2. गति का द्वितीय नियम (संवेग का नियम): –
वस्तु के संवेग (Momentum) में बदलाव की दर उस पर आरोपित बल के अनुक्र्मानुपाती (Directly proportional) होती है तथा संवेग का बदलाव आरोपित बल की दिशा में ही होता है अर्थात् यह उस दिशा में ही होता है जिस दिशा में बल लगाया जाता है। इस नियम के द्वारा बल का परिमाण या दो बलों का तुलनात्मक ज्ञान का पता चलता है, अतः यह नियम संवेग का नियम भी कहलाता है।
गति के प्रथम नियम का समीकरण –
F = m * a
जहाँ –
F – बल
m – किसी वस्तु का द्रव्यमान
a – त्वरण
गति के द्वितीय नियम के उदाहरण:-
3. गति का तीसरा नियम (क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम): –
प्रत्येक क्रिया की उसके समान एवं उसके विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है, यह नियम क्रिया-प्रतिक्रिया (Law of action and reaction) का नियम भी होता है।
क्रिया-प्रतिक्रिया नियम के उदाहरण:-