प्रकाश की किरणें जब तिर्यक रूप से आपतित होकर एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो दूसरे माध्यम में प्रकाश किरणों के पथ में परिवर्तन होता है। इस घटना को ‘प्रकाश का अपवर्तन‘ कहते हैं। वस्तुतः यह घटना माध्यम में परिवर्तन से प्रकाश की चाल में परिवर्तन होने से होती है।
अपवर्तन का नियम – (स्नेल का नियम) : –
आपतन कोण की ज्या और अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात किन्हीं दो माध्यमों के लिए नियत होता है। इस नियंताक को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनाक कहते है।
N21 = Sin i /Sin r
नोट:-
जब प्रकाश किरण एकवर्णी हो तो किन्हीं भी दो माध्यमों के लिए आपतन कोण की ज्या (Sine) और अपवर्तन कोण की ज्या (sine) में एक निश्चित अनुपात होता है। इस निश्चित अनुपात को ही पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं।
अपवर्तनांक के प्रकार –
पदार्थ का अपवर्तनांक –
प्रकाश की गति विभिन्न माध्यमों में भिन्न-भिन्न होती है। निर्वात में प्रकाश की गति तथा माध्यम में प्रकाश की गति का अनुपात उस पदार्थ का अपवर्तनांक कहा जाता है। अपवर्तनांक को ग्रीक में μ (म्यू) द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। किसी माध्यम का अपवर्तनांक जितना बड़ा होगा उस माध्यम में प्रवेश करती प्रकाश किरण उतनी ही अधिक मुड़ेगी। अतः कांच का अपवर्तनांक पानी के अपवर्तनांक से अधिक होता है।
प्रिज्म एक पारदर्शी वस्तु है जिसमें तीन आयताकार पक्ष और दो त्रिकोणीय छोर पाए जाते है। प्रिज्म का निर्माण शीशे के द्वारा होता है। शीशे का प्रिज्म में प्रकाश का अपवर्तन एक ग्लास स्लैब से भिन्न होता है क्योंकि शीशे के प्रिज्म में प्रकाश की वृतांत किरण प्रकाश की आकस्मिक किरण के समानांतर नहीं रहती है।
जब शीशे के प्रिज्म में प्रकाश की एक किरण प्रवेश करती है, तब यह दो बार मुड़ती है। पहले जब यह शीशे के प्रिज्म में प्रवेश करती है और दूसरा जब यह प्रिज्म से बाहर आती है तब मुड़ती है। इसका कारण यह है की प्रिज्म की अपवर्तित सतहे एक दूसरे के समानांतर नहीं होती हैं। इसके अलावा, प्रकाश की किरण प्रिज्म के माध्यम से गुजरने पर अपने आधार की ओर झुकती है।
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण –
श्वेत प्रकाश मे सात रंग होते हैं इसकी खोज 1665 में, इस्साक न्यूटन ने कि। उन्होंने खोजा कि अगर सफ़ेद प्रकाश की एक किरण शीशे के प्रिज्म से गुजरने के पश्चात, वह सात रंगों मे बँट जाती है। ये रंग हैं – लाल, नारंगी, पीला, हरा, ब्लू, इंडिगो और बैंगनी (VIBGYOR)।
श्वेत प्रकाश का स्पेक्ट्रम:-
जब कोई प्रकश की सफेद किरण एक शीशे के प्रिज्म के माध्यम से गुजरती है तो सात रंगों के पट्टी (बैंड) का निर्माण करती है, इसे श्वेत प्रकाश का स्पेक्ट्रम कहते है।
जब अपवर्तन पृथ्वी के वायुमंडल के कारण होता है तब वह वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है। जब प्रकाश की किरणें वायुमंडल मे प्रवेश करती है तो वहाँ हवा उपस्थित रहती है और हर हवा परत का तापमान भिन्न-भिन्न होता है। इन वायु परतो का ऑप्टिकल घनत्व भी भिन्न – भिन्न है।ठंडी हवा की परत प्रकाश किरणों के लिए एक ऑप्टिकली सघन (optically denser ) माध्यम है। जबकि गर्म हवा की परत प्रकाश किरणों के लिए ऑप्टिकली विरल (optically rarer) माध्यम है।
प्रकाश की वायुमंडलीय अपवर्तन के उदाहरण निम्न हैं: –
1. सितारो की टिमटिमाहट:
रात में तारे उनके प्रकाश में वायुमंडल अपवर्तित रहने के कारण जगमगाते है। जब सितारों की रोशनी पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेशित होती है, तब यह हवा के ऑप्टिकल घनत्व की भिन्नता के कारण अपवर्तित हो जाती है। इसलिए, तारे एक पल में उज्ज्वल और दूसरे में मंद दिखाई देते हैं।
2. तारे अपनी वास्तविक ऊंचाई से अधिक ऊंचे दिखाई देते हैं:
तारे से आने वाली प्रकाश जैसे ही पृथ्वी के वायुमंडल में आती है तो वह अपवर्तित हो जाती है। आकाश में अधिक ऊंचाई पर विरल/हल्की हवा पायी जाती है और पृथ्वी की सतह के निकट हवा सघन होती है। अतः जब तारे से आने वाली प्रकाश की किरण विरल हवा से सघन हवा में आती है तो उनमे ज्यादा झुकाव आ जाता है जिसके कारण आकाश में तारे अपनी वास्तविक ऊंचाई से अधिक ऊंचे दिखाई देते हैं।
3. अग्रिम सूर्योदय और विलंबित सूर्यास्त:
प्रकाश के अपवर्तन के कारण सूर्य को सूर्योदय से दो मिनट पहले और वास्तविक सूर्यास्त के दो मिनट बाद दिखाई देता है। सूर्योदय के समय सूर्य का प्रकाश कम घने हवा से अधिक घने हवा में प्रवेश करता है। इस प्रकार सूरज की रोशनी नीचे की तरफ अपवर्तित होती है और इस कारण सूर्य वास्तव मे जितना होता है उससे अधिक क्षितिज के ऊपर उठा दिखाई देता है।
प्रकाश को अनेक प्रकार के निलंबित कणों पर अनेक यादृच्छिक (random) दिशाओं में फेंके जाने पर उसके बँट जाने को प्रकाश का प्रकीर्णन कहा जाता है।
टिंडल प्रभाव (Tyndall effect)–
जब प्रकाश अपने रास्ते के कणों के कारण बँट जाता है, यह घटना टिंडल प्रभाव कहलाती है। जिस प्रकार सूरज की रोशनी एक कमरे के धूल के कणों के माध्यम से गुजरती हुई दिखाई देती है, जब सूरज की रोशनी एक कैनोपी घने जंगल आदि से होकर गुजरती है, यह टिंडल प्रभाव के कारण ही होता है ।
1859 में टिंडल ने खोज में यह पाया कि जब सफेद प्रकाश साफ तरल श्वेत प्रकाश से होकर गुजरती है जिसमे छोटे छोटे निलंबित कण है, तब श्वेत प्रकाश के नीले रंग का तरंग दैर्ध्य कम होने से तथा यह लाल रंग जिसका तरंग दैर्ध्य ज्यादा है, से ज्यादा बिखरता है अर्थात प्रकीर्णन ज्यादा होता है।
लेंस एक पारदर्शी माध्यम है जिसमें दो वक्रित (गोलाई) अथवा एक वक्रित एवं एक समतल सतह पायी जाती है। लेंस के मुख्यतः दो प्रकार होते है –
उत्तल लेंस –
इस प्रकार के लेंस किनारे पर पतले एवं मध्य भाग से मोटे होते हैं। उत्तल लैंस प्रकाश को अभिसरित (सिकोड़ता) करने का कार्य करते है अतः इसे अभिसारी लेंस भी कहा जाता है।
उत्तल लेंस के प्रकार –
उत्तल लेंस के उपयोग –
अवतल लेंस –
इस प्रकार के लेंस किनारे से मोटे एवं मध्य भाग से पतले होते हैं। अवतल लेंस प्रकाश को अपसरित (फैलाता) करते है अतः इन्हें अपसारी लेंस भी कहा जाता है।
अवतल लेंस के प्रकार –
अवतल लेंस के उपयोग–
वक्रता केन्द्र (C) – लेंस जिस गोले के भाग होते है उसका केन्द्र वक्रता केन्द्र कहलाता है।
वक्रता त्रिज्या (R)– लेंस जिस गोले के भाग होते है उसकी त्रिज्या वक्रता त्रिज्या कहलाती है।
प्रकाशिक केन्द्र- लेंस का मध्य बिंदु प्रकाशिक केंद्र कहलाता है।
मुख्य अक्ष– लेंस के वक्रता केन्द्र तथा प्रकाशिक केन्द्र से गुजरने वाली काल्पनिक सीधी रेखा।
मुख्य फोक्स (F) – यह वक्रता त्रिज्या का मध्य बिंदु होता है। लेंस के दो मुख्य फोकस होते है –
प्रथम मुख्य फोकस (F1) – मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु जिस पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब अन्नत पर प्राप्त होता है।
द्वितीय मुख्य फोकस (F2)– अन्नत पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब मुख्य अक्ष पर जिस बिन्दु पर प्राप्त होता है।
फोकस दुरी (f) – प्रकाशिक केन्द्र से मुख्य फोकस के बीच की दुरी फोकस दुरी कहलाती है उत्तल लेंस की फोकस दुरी धनात्मक (+) तथा अवतल लेंस की फोकस दुरी ऋणात्मक (-) मानी जाती है।