स्टडी मटेरियल

आंते (intestines)

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मानव शरीर रचना विज्ञान में, आंत (या अंतड़ी) आहार नली का ही एक हिस्सा होती है जो पेट से गुदा तक फैली होती है, तथा मनुष्य और अन्य स्तनधारियों में, यह दो भागों में (छोटी आंत और बड़ी आंत के रूप में) पायी जाती है। मनुष्यों में, छोटी आंत को आगे फिर पाचनांत्र, मध्यांत्र और क्षुद्रांत्र में बांटा गया है, जबकि बड़ी आंत को अंधात्र और बृहदान्त्र में विभाजित किया गया है।

संरचना

आंत्र क्षेत्र को मोटे तौर पर दो भिन्न-भिन्न भागों, छोटी और बड़ी आंत में बांटा जा सकता है। एक वयस्क व्यक्ति में भूरे- बैंगनी रंग की छोटी आंत का व्यास लगभग 35 मिलीमीटर (1.5 इंच) और औसत लंबाई 6 से 7 मीटर (20-23 फुट) होती है। गहरे लाल रंग की बड़ी आंत छोटी और अपेक्षाकृत मोटी होती है, जिसकी लंबाई औसत रूप से लगभग 1.5 मीटर (5 फुट) होती है। आकार और उम्र के अनुसार व्यक्तियों में अलग अलग आकार की आंतें होंगी।

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ल्यूमेन (अवकाशिका) वह गुहा है जहां से पचा हुआ भोजन गुजरता है तथा जहां से पोषक तत्व का अवशोषण होता हैं। दोनों आंतें संपूर्ण आहार नली के साथ सामान्य संरचना का भाग हैं और कई परतों से बनी है। ल्यूमेन के अंदर से बाहर की ओर आने पर यह किरण सदृश प्रतीत होती है, कोई चीज मुकोजा (ग्रंथिल ऐपीथीलियम और पेशीय मुकोजा), उप मुकोजा, पेशीय बाहरी भाग (आंतरिक भाग गोलाकार और बाह्य भाग लंबबत बना हुआ) तथा अंत में सेरोसा से होकर गुजरती है।

ग्रंथिल एपीथीलियम में आहार नली की पूरी लंबाई के साथ गॉबलेट कोशिकाएं पायी जाती हैं। ये गुप्त श्लेष्मा भोजन के मार्ग को चिकना करने के साथ-साथ इसे पाचक एंजाइम से सुरक्षा करती है। माइक्रोविली दीर्घ रोम के एपीथीलियम पर मौजूद होते हैं तथा आगे सतही क्षेत्र को बढ़ाते हैं जिस पर अवशोषण की क्रिया हो सकती है।

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अगली परत पेशीय मुकोसा की होती है जो कि कोमल मांसपेशी की परत होती है जो आहार नली के साथ सतत क्रमाकुंचन और कार्यप्रणाली के चरम बिंदु पर सहायता करती है। उपमुकोसा में तंत्रिकाएं (उदाहरण के लिए, मेसनर का प्लेक्सस, रक्त नलिका और श्लेषजन सहित लोचदार फाइबर होती है जो बढ़ी हुई क्षमता के साथ बढ़ती है लेकिन आंत के आकार को बनाए रखती है।

इसके आसपास पेशीय एक्सटर्ना है जिसमें मांसपेशियां अनुदैर्ध्य और चिकनी होती हैं जो पुनः सतत क्रमाकुंचन व पची हुई सामग्री को आहार नली से बाहर निकालने में मदद करती हैं। पेशियों की दो परतों के बीच में अयुरबेच का प्लेक्सस होता है।

अन्त में सेरोसा होता है जो खुले संयोजक टिश्यू से बना होता है तथा श्लेष्मा में आवृत होता है जिससे अन्य टिश्यू से आंत के रगड़ने से घर्षण क्षति को रोका जा सके। इन सबको उचित स्थान पर बनाए रखना आंत्रयोजनी होता है जो कि आंत को उदरकोष्ठ में रोकता है तथा व्यक्ति के शारीरिक रूप से सक्रिय होने पर इसे वितरित होने से रोकता है

रोग

विकार

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