पाचन वह प्रक्रिया है, जिसमें जटिल कार्बनिक पदार्थों (Complex organic material) को जल अपघटनीय एंजाइमों के द्वारा सरल कार्बनिक पदार्थों में बदला जाता है।
यह दो प्रकार का होता है-
जब पाचन की प्रक्रिया कोशिका केभीतर होती है, तो इसे अन्तःकोशिकीय पाचन (Intracellular digestion) कहते है। यह निम्न श्रेणी के जीवों में सम्पन्न होती है। जैसे अमीबा, पैरामिशियम, स्पंज आदि।
जब पाचन की प्रक्रिया कोशिका के बाहर होती है, तो इसे बाह्य कोशिकीय पाचन (Extracellular digestion) कहते है। यह उच्च श्रेणी के जीवों में पूरी होती है। जैसे एनेलिडा, मोलस्का, कोर्डेटा।
कुछ जीवों में दोनों प्रकार का पाचन (Intracelluar and Extracellular) पाया जाता है। जैसे सीलेन्ट्रेटा (Coelenterata), मुक्तजीवी प्लेटिहेल्मिनथिज (Platyhelminthes)।
पाचन तंत्र (Digestive System) के दो भाग होते हैं-
यह मुख से प्रारम्भ होकर गुदा तक फैली रहती है। इसमें निम्न अंग (Organs) होते है-
मुख होठों से घिरा हुआ छेद होता है। जो मुख गुहा में खुलता है। होठ ओरबीक्युलेरिस-ओरिस पेशियों का बना होता है।
मुखगुहा पृष्ठ सतह पर दो प्रकार के तालू , अधर सतह पर गले तथा दोनों ओर गाल की पेशियों से घिरा रहता है। इसमें दांत तथा जीभ स्थित होती हैं।
मानव द्विबारदंती होता है। मानव में चार प्रकार के दांत (Teeth) पाए जाते हैं-
ये भोजन का काटने (Bite) का कार्य करते है। शाकाहारी जीवों (herbivorous) में अधिक विकसित होते है। मानव में इनकी संख्याँ 8 होती है।
ये चीरने-फाड़ने का काम करते है। मांसाहारी जीवों (carnivorous) में अधिक विकसित होते है। मानव में इनकी संख्याँ 4 होती है।
ये भोजन को चबाने (Chewing) का काम करते है। मानव में इनकी संख्याँ 8 होती है।
ये भी भोजन को चबाने का (Chewing) कार्य करते है। मानव में इनकी संख्याँ 12 होती है। अंतिम चर्वणक (Last Molar) दांत को अकल दाढ़ (wisdom tooth) कहते है।
यह पेशीय संरचना है। जो एक संवेदी अंग (sensory organ) भी है। इस पर स्वाद का पता लगाने के लिए रस-कलिकाएँ होती है। जो चार प्रकार की होती हैं-
जीभ का पिछला भाग हायोइड अस्थि (Hyoid bone) से जुड़ा रहता है। तथा फ्रेनुलम लिंगुअल के द्वारा यह मुख गुहा की फर्श से जुड़ी रहती है।
यह श्वसन मार्ग तथा पाचन मार्ग का उभयनिष्ट है। ग्रसनी (Pharynx) तीन भागों में विभेदित होता है –
ग्रसनी ग्रसिका में खुलती है।
यह आमाशय तथा ग्रसनी को जोडती है। यह डायफ्राम को क्रास करते हुए आमाशय के अंदर खुलती है। इसमें क्रमानुकुंचन (Peristalsis) द्वारा भोजन आमाशय तक जाता है।
यह मनुष्य के शरीर में बायीं (Left) तरफ होता है। इसके तीन भाग होते हैं-
आमाशय की भित्ति में जठर ग्रंथि (Gastric Glands) पायी जाती है।
यह सबसे लम्बी तथा नलिकाकार (Tubular) संरचना है। इसके तीन भाग होते हैं-
इसका व्यास छोटी आंत से बड़ा होने के कारण इसको बड़ी आंत कहते है। इसका व्यास 4-6 cm होता है।
इसके तीन भाग होते हैं-
छोटी आंत का पश्च क्षुद्रान्त्र अन्धनाल (Caecum) में खुलता है। इसमें कोई पाचन नहीं होता लेकिन पशुओं के अन्धनाल में सेल्यूलोज का पाचन करने वाले एंजाइम पाए जाते है।
पश्च क्षुद्रान्त्र तथा अन्धनाल के जुड़ने वाले स्थान पर अंगुलीनुमा उभार पाया जाता है, जिसे कृमिरुपी परीशेषिका (Vermiform Appendix) कहते है। जो मनुष्य में एक अवशेषी अंग है।
यह बड़ी आंत (Large Intestine) का सबसे बड़ा भाग है। इसके चार भाग होते हैं-
1. आरोही वृहदांत्र (Ascending Colon)
2. अनुप्रस्थ वृहदांत्र (Transverse Colon)
3. अवरोही वृहदांत्र (Descending Colon)
4. सिग्मोइड वृहदांत्र (Sigmoid Colon)
सिग्मोइड वृहदांत्र (Sigmoid colon) मलाशय में खुलती है। जिसमें मल इक्कठा रहता है। इसका अंतिम भाग गुदानाल (Anal canal) कहलाता है। यह गुदा (Anus) द्वारा बाहर की तरफ खुलता है।
यह एक छिद्र है जिसके द्वारा मल को त्यागा जाता है। इनमें अवरोधनी पेशियाँ (sphinctor muscle) होती है। जिनके द्वारा गुदा छिद्र के बंद होने अथवा खुलने का नियंत्रण होता है।
इसमें भीतर की तरफ अनैच्छिक अवरोधनी (involuntary sphinctor) तथा बाहर की तरफ ऐच्छिक अवरोधनी (voluntary spinctor) होती है।
ये मुख गुहा में खुलती है इनकी उत्पत्ति एक्टोडर्म (Ectoderm) से होती है। मानव में इनकी संख्या तीन जोड़ी होती है। जो निम्न हैं-
1. कर्णपूर्व लार ग्रंथि (Parotide Gland):- यह कानों के आगे की ओर होती है।
2. अधोजम्भ लार ग्रंथि (Sub-Maxillary or Sub-Mandibular Gland):- Maxilla तथा Mandibul जबड़े (जम्भ) को कहा जाता है। यह जबड़े के नीचे स्थित होती है।
3. अधोजिह्वा लार ग्रंथि (Sub-Lingual Gland):- Lingual शब्द जीभ (जिह्वा) के लिए उपयोग में लिया जाता है। यह जीभ के नीचे स्थित होती है। मानव में तीनो प्रकार की लार ग्रंथियों द्वारा प्रतिदिन 1-1.5 लिटर लार (Saliva) स्रावित होती है।
यह लारग्रंथि द्वारा स्रावित रस है। लार का pH 6.8 होता है। लार में पानी, लवण, श्लेष्मा (mucin), लाइसोजाइम (lysozyme), एमिलेज या टाइलिन (Amylase/Ptyalin) तथा thyocyanate होता है।
मुखगुहा में लार मिले हुए भोजन को बोलस (Bolus) कहा जाता है।
यह आमाशय की भित्ति (Wall) में पायी जाती है। इसमें निम्न प्रकार को कोशिकाएँ होती हैं –
1. गॉब्लेट कोशिका (Goblet cell) :- ये श्लेष्मा (Mucous) का स्त्राव करती है। यह आमाशय की भित्ति को HCl से बचाता है।
2.अम्लजन कोशिका (Oxyntic cell) :- ये केवल फंडस भाग में स्थित होती है। ये HCI स्त्रावित करती है। इनको parietal cells भी कहते है।
3. मुख्य कोशिका (Chief Cells) :- ये कोशिकाएँ निष्क्रिय पाचन एंजाइम (digestive enzyme) का स्त्रवण करती है, जिन्हें जाइमोजन्स कहते है। जैसे पेप्सिन तथा रेनिन।
यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है इसकी उत्पत्ति एन्ड़ोडर्म से होती है। यकृत (Liver) का वयस्क मनुष्य में भार लगभग 1.2-1.5 किलोग्राम होता है।
यह हरे रंग की थैली है। जो यकृत पर पायी जाती है। इनमें पित (Bile) जमा तथा सांद्रित होता है। पित (Bile) का ग्रहणी में स्राव भी पित्ताशय (Gall Bladder) ही करता है। यह चूहे, ऊंट तथा घोड़े में अनुपस्थित होता है।
पित्तरस (Bile) एक हल्के पीले-हरे रंग का तरल है। इसमें कोई पाचक एंजाइम नहीं होता। यह वसा का पायसीकरण (Emulsification) करता है।
पित्त रस में निम्न रसायन होते हैं-
कभी-कभी किसी विकार के कारण पित्ताशय को काट कर हटा दिया जाता है जो कोलेसायस्टेकटोमी (Choleysestectomy) कहलाता है।
अग्नाशय ग्रहणी के C आकर के भाग में स्थित होती है। इसका अंतिम सिरा प्लीहा को छूता है। यह बहि: स्त्रावी (Exocrine) और अत:स्त्रावी (Endocrine), दोनों ही ग्रन्थियों की तरह कार्य करती है। इसलिए इसे मिश्रित ग्रंथि (Mixed gland) भी कहते है।
यह यकृत के बाद शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है। इसके द्वारा बहि: स्त्रावी ग्रंथि (Exocrine Gland) के रूप में अग्न्याशयी रस (Pancreatic juice) का स्राव होता है।
यह छोटी आंत की भित्ति के म्युकोसा झिल्ली में गॉब्लेट तथा ब्रूस बॉर्डर की कोशिकाएँ पाई जाती है। ये इसके द्वारा आंत्ररस (Intestinal juice) स्रावित होता है। जिसे सक्कस एंटेरिकस कहते है।
मानव में भोजन के पाचन की शुरुआत मुख गुहा से हो जाती है। भोजन का पाचन मुख गुहा से छोटी आंत्र तक होता है। विभिन्न प्रकार के एंजाइम भोजन के घटकों को उनके छोटे एवं सरल कार्बनिक इकाइयों में बदल देते है। बड़ी आंत में भोजन का कोई पाचन नहीं होता।
मलाशय में मल एकत्र होता है, और निश्चित समय पर मलाशय की भित्तियों से संवेग (impulses) उत्पन्न होते है। जो सवेदी तंत्रिका के माध्यम से मेरुरुज्जू (spinal cord) तक जाते हैं, वहाँ से संवेग प्रेरक तंत्रिका द्वारा मलाशय में पहुँचते है। और गुदा की अवरोधिनी पेशियों (sphincter Muscle) में विस्तार कर देते जिससे मलत्याग (defecation) की इच्छा होती है जब मस्तिष्क के द्वारा भेजे गये संवेग से अवरोधिनी पेशियां (sphincter muscle) ढीली होती है तो मलत्याग होता है।
भोजन के पाचन तथा अवशोषण के पश्चात् अपशिष्ट आंत्र में बच जाता है, मल (stool/ Feces) कहलाता है। मल में भोजन का अपच्य भाग, आंत्र की श्लेष्मल झिल्ली के टुकड़े, जीवाणुओं आदि उपस्थित होते है। मल का पिला रंग पित्त वर्णक बिलीरुबिन तथा बिलीवरडीन (Bilirubin and biliverdin) के कारण होता है।