मानव शरीर में विषाणु या वायरस के कारण होने वाले रोगों को विषाणु जनित रोग (Viral Diseases or Viral Infection) कहते हैं।
रोगजनक – कोरोना वायरस।
लक्षण– बुखार, थकान, गले कि खराश, सुखी खासी, सांस लेने मे कठिनाई, नाक का बंध होना, बहती नाक आदि।
प्रसार – संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से तथा मरीज़, के खांसने से या छींकने से आती बूंदों के गिरने के स्थान या वस्तु के साथ संपर्क करने से।
उपचार – वैक्सीन लगवाना तथा मास्क का प्रयोग।
रोगजनक – राइनोवायरस।
लक्षण – खांसी, नाक बहना, नासिकामार्ग में अवरोध और गले की खराश।
प्रसार – छींकने से वायु में मुक्त बिंदुकणों द्वारा, संक्रमित व्यक्ति द्वारा किसी वस्तू को छूनें से।
उपचार – एस्पिरिन (Aspirin), एंटीहिस्टेमीन (Anti-histamines), नेजल स्प्रे (Nasal Spray)
लगभग 75 % मामलों में राइनोवायरस (Rhinovirus) तथा शेष में कोरोना वायरस (Corona Virus) द्वारा होता है।
रोगजनक – निस्यंदी विषाणु (Filterable Virus)
लक्षण – उल्टी के साथ सिरदर्द, अकड़न और पीठ दर्द, गर्दन में दर्द, मांसपेशियों में कोमलता या कमजोरी, हाथ और पैर में दर्द और जकड़न, गले में खरास, थकान।
उपचार – ओरल पोलियो वैक्सीन।
इसका प्रभाव केंद्रीय नाड़ी जाल पर होता है। इससे रीढ़ की हड्डी और आंत के कोशिकाएं ख़त्म हो जाती हैं। इसके इलाज़ के लिए बच्चों को पोलियोरोधी दवा दी जाती है। पोलियो के टीके की खोज जॉन साल्क ने की थी परन्तु वह इंजेक्शन द्वारा दी जाने वाली वैक्सीन थी। इसके बाद एल्बर्ट सेबीन ने 1957 में मुख से ली जाने वाली पोलियो ड्राप की खोज की।
रोगजनक – H.I.V (Human ImmunoDeficiency Virus)
लक्षण – हैजाथकानबुखार, सिरदर्द, मतली व भोजन से अरुचि, लसीकाओं में सूजन आदि।
प्रसार – यह रोग संभोग, इन्फेक्टेड रक्ताधान और इन्फेक्टेड इंजेक्शन की सुई के प्रयोग करने से फैलता है।
उपचार – रिबाबाइरीन, सुमारीन, साइक्लोस्पोरीन, अल्फ़ा-इंटरफेरॉन आदि दवाओं का इस्तेमाल।
अन्य नाम – हड्डीतोड़ बुखार।
रोगजनक – एडीज़ मच्छर।
लक्षण – बहुत तेज बुखार, सर, आँख, पेशी व जोड़ों में भयंकर पीड़ा।
उपचार – टायलेनोल या पैरासिटामोल।
रोगजनक – क्लामिड्या ट्रेकोमैटिस नामक वायरस।
लक्षण – हल्की खुजली और आंखों में जलन, पलकों खासकर ऊपरी पलक और लिम्फोमा नोड में सूजन, पलक के अंदर की ओर छोटी-सी सफेद गांठ, हल्का दर्द, लालिमा आ जाना।
उपचार – पेनीसिलीन और क्लोरोमाइसीटीन।
रोगजनक – न्यूरोट्रोपिक लाइसिसिवर्स (Neurotropic Lysaavirus) वायरस।
लक्षण – दर्द होना, थकावट महसूस करना, सिरदर्द होना, बुखार आना, मांसपेशियों में जकड़न होना, घूमना-फिरना ज्यादा हो जाता है, चिड़चिड़ा होना था उग्र स्वाभाव होना, व्याकुल होना।
प्रसार – यह रोग कुत्ते, बिल्ली, सियार और भेडि़ए के काटने या जख्म को चाटने से होता है।
उपचार – इंट्राडर्मल इंजेक्शन।
रेबीज के रोकथाम के लिए इसके टीके की खोज लुई पाश्चर ने की थी।
रोगजनक – नीसेरिया मेनिंगिटाइडिस वायरस।
लक्षण – उच्च बुखार या ठंड लगना, भ्रम होना, हाथ और पैर ठंडे होना, मांसपेशियों में गंभीर दर्द होना, गहरे बैंगनी चकत्ते दिखना, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता और गर्दन का अकड़ना।
उपचार – कॉर्टिकोस्टेरॉयड दवा।
रोगजनक – मम्पस वायरस।
लक्षण – बुखार,सिर दर्द, भूख न लगना, चबाने और निगलने में समस्या।
प्रसार – रोगी की लार से ही इस वायरस का प्रसार होता है।
उपचार – नमक के पानी से सिकाई या टेरामाइसिन का इंजेक्शन।
इस रोग से मनुष्य की लार ग्रंथि प्रभावित होती है। शुरुवात में सर दर्द, कमजोरी व झुरझुरी महसूस होती है। एक दो दिन बुखार रहने के बाद कान के नीचे स्थित पैरोटिड ग्रंथि में सूजन आ जाती है।
रोगजनक – वैरियोला नामक वायरस।
लक्षण – सर, पीठ, कमर और उसके बाद पूरे शरीर में भयंकर दर्द होना , तथा शरीर पर लाल दाने पड़ जाना।
उपचार – चेचक के टीके।
रोगजनक – हर्पीज वायरस।
लक्षण – लाल, उभरे दाने से आरंभ होना, दाने फफोलों में बदलना, मवाद से भरना, फूटना और खुरदरे पड़ना, प्रमुख रूप से चेहरे, खोपड़ी और रीढ़ पर दिखाई देना तथापि भुजाओं, टांगो पर भी यह होते हैं, तेज खुजली होना, कमर में तेज दर्द होना, सीने में जकड़न होना, हलका सा बुखार होना।
उपचार – एंटीबॉयोटिक का उपयोग करना।
रोगजनक – मोर्बिलीवायरस।
लक्षण – बुखार, खांसी, नाक बहने, लाल आँखें और मुंह के अंदर सफेद धब्बे होना, 3-4 दिन बाद शरीर पर लाल दाने पड़ जाना।
उपचार – MMR वैक्सीन।