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नेतृत्व – शंकराचार्य
उद्देश्य – हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना
परिणाम – काफी हद तक सफल रहा
भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत-
अलवर (लगभग 2वीं शताब्दी से 8वीं शताब्दी तक, दक्षिण भारत में)
नयनार (लगभग 5वीं शताब्दी से 10वी शताब्दी तक, दक्षिण भारत में)
आदि शंकराचार्य (788 ई से 820 ई)
रामानुज (1017 – 1137)
बासव (12 वीं शती)
माध्वाचार्य (1238 – 1317)
नामदेव (1270 – 1309 , महाराष्ट्र)
एकनाथ – गीता पर भाष्य लिखा, विठोबा के भक्त
सन्त ज्ञानेश्वर (1275 – 1296, महाराष्ट्र)
जयदेव (12वीं शताब्दी)
निम्बकाचार्य (13वीं शताब्दी)
रामानन्द (15वीं शती)
कबीरदास (1440 – 1510)
दादू दयाल (1544-1603 , कबीर के शिष्य थे)
गुरु नानक (1469 – 1538)
पीपा (जन्म 1425)
पुरन्दर (15वीं शती, कर्नाटक)
तुलसीदास (1532 – 1623)
चैतन्य महाप्रभु (1468 – 1533, बंगाल में)
शंकरदेव (1449 – 1569, असम में)
वल्लभाचार्य (1479 – 1531)
सूरदास (1483 – 1563, बल्लभाचार्य के शिष्य थे)
मीराबाई (1498 – 1563, राजस्थान में ; कृष्ण भक्ति)
हरिदास (1478 – 1573, महान संगीतकार जिहोने भगवान विष्णु के गुण गाये)
तुकाराम (शिवाजी से समकालीन, विठल के भक्त)
समर्थ रामदास (शिवाजी के गुरू, दासबोध के रचयिता)
त्यागराज (मृत्यु 1847)
रामकृष्ण परमहंस (1836 – 1886)
भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद (1896 – 1977)
भक्ति आंदोलन का उदय एवं विकास
हिन्दु जीवन का मूल उद्देश्य सोक्ष प्राप्त करना है। जिसके 3 मार्ग (कर्म, ज्ञान एवं भक्ति) हैं। कर्म का गीता में उल्लेख मिलता है। ज्ञान का प्रतिपादन उपनिषदों एवं दर्शन में मिलता है। भक्ति का सर्वप्रथम उल्लेख श्वेताश्वर उपनिषद में मिलता है। अतः मोक्ष प्राप्ति के लिए जो आन्दोलन चलाया गया इसे भक्ति आन्दोलन कहा गया। भारत में भक्ति आन्दोलन का इतिहास अत्यंत प्राचीन है भक्ति के बीज वेदों में विद्यमान हैं। मौर्योत्तर काल में भागवत एवं शैव पंथ भी भक्ति पर आधारित थे। इसी काल में ही गौतम बुद्ध की पूजा प्रारंभ हुई। मध्यकाल में शुरू हुआ भक्ति आन्दोलन, एक भक्ति आन्दोलन मात्र न होकर सुधारवादी आन्दोलन था।
भक्ति आंदोलन का प्रारंभ
भक्ति आन्दोलन का आरंभ भारत दक्षिण भारत में सातवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य हुआ। यह दो चरणों में पूर्ण हुआ इसका दूसरा चरण तेरहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक चला। दक्षिण भारत में शुरू हुए इस आन्दोलन के प्रवर्तक शंकराचार्य थे इनके उपरान्त तमिल वैष्णव संत अलवार एवं शैव संत नयनारो ने इस आन्दोलन का प्रचार प्रसार किया एवं लोकप्रिय बनाया।
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आन्दोलन की प्रकृति:
भक्ति आंदोलन विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ। किन्तु कुछ मूलभूत सिद्धांत ऐसे थे जो समग्र रूप से पूरे आन्दोलन पर लागू होते थे। धार्मिक विचारों के बावजूद जनता की एकता को स्वीकार किया एवं जाति प्रथा का विरोध किया। यह विश्वास स्पष्ट किया कि मनुष्य एवं ईश्वर के बीच तादात्म्य प्रत्येक मनुष्य के सद्गुणों पर निर्भर करता है न कि उसकी ऊंची जाति अथवा धन संपत्ति पर। इस विचार पर जोर दिया कि भक्ति ही आराधाना का उच्चतम स्वरूप है। इसी के आलोक में कर्मकाण्डों, मूर्ति पुजा, तीर्थाटन आदि की निंदा की। अतः मनुष्य की सत्ता को सर्वोपरि मानने वाला यह आन्दोलन मात्र भक्ति और भगवत भजन वाला सामान्य आन्दोलन नहीं था बल्कि इसके आगे जातिगत, सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों से मुक्ति की छटपटाहट से उपजा लोक सुधारवादी आंदोलन था।
भक्ति आन्दोलन की विशेषताएं
भक्ति मार्ग का महत्व
आडम्बरों, अंधविश्वासों तथा कर्मकाण्डों से दूर रहकर धार्मिक सरलता पर बल
जनसाधरण/लोक भाषाओं/क्षेत्रीय भाषाओं में प्रचार
ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण
मानवता वादी दृष्टिकोंण
समाज में व्याप्त जातिवाद, ऊंच नीच जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध
ईश्वर की एकता (एकेश्वरवाद) पर भक्ति आन्दोलन की विशेषताएं
भक्ति आन्दोलन से जुड़े प्रमुख संत
दक्षिण भारत के संत
शंकराचार्य
रामानुजाचार्य
माधवाचार्य
निम्बार्क
अलवार संत
नयनार संत
शंकराचार्य
जन्म: केरल में अल्वर नदी के तट पर कलादि ग्राम में (788ई.)
मृत्यु: बद्रीनाथ (820ई.)
उपाधि : परमहंस
दार्शनिक मत : अद्वैतवाद का प्रतिपादन
कार्य : नव ब्राह्मण धर्म की स्थापना
दर्शन/विचार : जगत को मिथ्या तथा ईश्वर को सत्य माना
ब्रह्म की प्राप्ति के लिए ज्ञान मार्ग पर बल दिया।
बौद्ध धर्म की महायान शाखा से प्रभावित होने के कारण इन्हें प्रच्छन्न बौद्ध कहा गया है।
प्रमुख रचनाएं : ब्रह्मसूत्र भाष्य, गीता भाष्य, उपदेश साहसी, मरीषापच्चम
शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ –
ज्योतिष पीठ- बद्रीनाथ, उत्तराखण्ड (विष्णु)
गोवरर्धन पीठ – पुरी, ओडीसा (बल भद्र व शुभद्रा)
शारदा पीठ – द्वारिका, गुजरात (कृष्ण)
श्रंगेरी पीठ – मैसूर, कर्नाटक (शिव)
कांचीपुरम पीठ – तमिलनाडु
रामनुज
जन्म : तिरूपति (आंध्र प्रदेश)
गुरु : यादव प्रकाश
दार्शनिक मत : विशिष्टाद्वैतवाद
सम्प्रदाय : वैष्णव सम्प्रदाय
दर्शन/विचार : रामानुज सगुण ईश्वर में विश्वास करते थे। इन्होंने भक्ति मार्ग को मोक्ष का साधन माना है। रामानुज का विशिष्टाद्वैतवाद का मत शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन के विरोध में प्रतिक्रिया थी। रामानुज के अनुसार ब्रह्मा, जीव तथा जगत तीनों में विशिष्ट संबंध है तथा तीनों सत्य हैं। रचनाएं: वेदांतसार, ब्रह्मसूच भाष्य, भगवद्गीता पर टीका एवं न्याय कुलिश की रचना की।दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन की शुरूआत रामानुज ने की थी। रामानुज को दक्षिण में विष्णु का अवतार मानते हैं।
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माधवाचार्य
निम्बार्क
जन्म : बैल्लारी जिला (मद्रास)
सम्प्रदाय : सनक सम्प्रदाय
दार्शनिक मत : द्वैताद्वैतवाद
कार्य क्षेत्र: वृंदावन
दर्शन/विचार : ये सगुण भक्ति के समर्थक थे। कृष्ण को शंकर का अवतार मानते थे। इन्होंने द्वैतवाद एवं अद्वैतवाद दोनों सिद्धांतों को मिलकर द्वैताद्वैतवाद का प्रतिपादन किया।
निम्बार्क को सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है।
निम्बार्क ने दस श्लोकी सिद्धांत रत्न की रचना की थी।
अलवार संत
अलवार संत एकेश्वरवादी थे
ये विष्णु की भक्ति एवं पूजा से मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास रखते थे।
अलवार संत (कुल 12 संत)
पल्लव देश
चेर देश
पाण्डय देश
चोल देश
पोप गई
कुलशेखर (चेर देश के एकमात्र संत)
नम्मालवार
तोण्डरदिपपोडि
भूत्तार
…
मधुरकवि
तियप्पान
पेयालवार
…
पेरियालवार
तियमंगई
तिरूमलिराई
…
अण्डाल
अलवारों में एक मात्र महिला
नयनार संत
नयनार संत शिव भक्त थे इनकी संख्या 63 बतायी जाती है।
नयनारों के भक्तिगीतों को देवारम नामक संकलन में संकलित है।
प्रमुख नयनार संत : निरूनावुक्करशु, तिरूज्ञान संबंदर, सुन्दरमूति एवं मणिक्कावाचार
उत्तर भारत के संत
रामानंद
सूरदास
चैतन्य
वल्लभाचार्य
मीराबाई
दादूदयाल
मलूक दास
रामानंद
जन्म : इलाहाबाद
संप्रदाय : रामानंदी संप्रदाय एवं श्री संप्रदाय
कार्यक्षेत्र : बनारस
गुरू : राघवानंद
दर्शन/विचार : ये प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ईश्वर की आराधना के द्वारा महिलाओं के लिए खोला। रामानंद प्रथम संत थे जिन्होंने हिन्दी भाषा में अपने विचारों को प्रचारित किया
रामानंद ने बाह्य आडम्बरों का विरोध करते हुए ईश्वर की सच्ची भक्ति तथा मानव प्रेम पर बल दिया।
रामानंद भक्ति आन्दोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत की ओर लेकर आए।
रामानंद के शिष्य : धन्ना, पीपा, रैदास, कबीर, पद्मावती
सूरदास
जन्म : रूनकता (आगरा)
गुरु : वल्लभाचार्य
रचनाएं : सूरसागर, साहित्य लहरी, सूरसरावली
ये भक्ति आन्दोलन की सगुणधारा के कृष्णमार्गी शाखा के प्रमुख थे।
सूरदास ने वल्लभाचार्य से वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षा ग्रहण की।
सूरदास को पुष्टिमार्ग का जहाज कहा गया है।
सूरदास मुगल शासक अकबर के समकालीन थे।
रैदास(रविदास)
जन्म : वाराणसी
उपाधि : संतों का संत
रविदास, रामानंद के शिष्य थे। ये कबीर के समकालीन थे।
रैदास ने ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रचार किया एवं अवतारवाद का विखण्डन किया। इन्होंने रैदास की स्थापना की।
वल्लभाचार्य
जन्म : वाराणसी
उपाधि : जगतगुरू, महाप्रभु, श्रीमदाचार्य
दार्शनिक मत : शुद्ध अद्वैतवाद
संप्रदाय : रूद्र सम्प्रदाय
वल्लभाचार्य वैष्णव धर्म के कृष्ण मार्गी शाखा के दूसरे महान संत थे।
वल्लभाचार्य को शासक कृष्ण देवराय ने संरक्षण प्रदान किया।
वल्लभाचार्य ने शुद्ध अद्वैतवाद का प्रतिपादन किया। ये कृष्ण के उपासक थे। श्री नाथ जी के रूप में उन्होंने कृष्ण भक्ति पर बल दिया।
वल्लभाचार्य ने भक्तिवाद के पुष्टिमार्ग की स्थापना की।
वल्लभाचार्य ने सगुण भक्ति मार्ग को अपनाया।
विट्ठलनाथ
ये वल्लभाचार्य के पुत्र एवं उत्तराधिकारी थे। इन्होंने कृष्ण भक्ति को लोकप्रिय बनाया।
अष्टछाप : ये 8 कवियों का समूह था। इसकी स्थापना विट्ठलनाथ ने की थी। इसमें शामिल कवि: 1. कुंभनदास 2. सूरदास 3. कृष्णदास 4. परमानंद दास 5. गोविन्द दास 6. क्षितिस्वामी 7. नंद दास 8. चतुर्भुजदास।
विट्ठलनाथ अकबर के समकालीन थे।
कबीरदास
जन्म : वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु : संतकबीर नगर (उत्तर प्रदेश)
गुरू : रामानंद
शिष्य : दादू दयाल एवं मलूक दास
कबीर सुल्तान सिकन्दर लोदी के समकालीन थे।
कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे।
कबीर के एकेश्वरवाद को अपनाया। कबीर ने आत्मा एवं परमात्मा को एक माना है। कबीर ने मूर्तिपूजा का खण्डन किया था।
कबीर हिन्दु-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। कबीर की विचारधारा विशुद्ध अद्वैतवादी थी।
कबीरदास के सिद्धांतों को उनके शिष्य धर्मदास ने बीजक में संकलित किया।
चैतन्य महाप्रभु
जन्म : पश्चिम बंगाल
वास्तविक नाम : विश्वम्भर
बचपन का नाम : निमाई
गुरू : केशव भारती
वृन्दावन को तीर्थस्थल के रूप में स्थापित करने के लिए चैतन्य ने 6 गोस्वामियों को भेजा।
चैतन्य वैष्णव धर्म के कृष्ण मार्गी शाखा से संबंधित थे।
चैतन्य ने भक्ति की कीर्तन प्रणाली की शुरूआत की
बंगाल में उनके अनुयायी उन्हें भगवान विष्णु एवं कृष्ण के अवतार मानते थे
चैतन्य ने गोसाई संघ की स्थापना की।
इन्होंने वृंदावन में राधा और कृष्ण को अध्यात्मिक स्वरूप प्रदान किया।
चैतन्य महाप्रभु के दार्शनिक सिद्धांत को अचिन्त्य भेदाभेद के नाम से जाना जाता है।
मीराबाई
जन्म : मेडता (राजस्थान) के कुदवी ग्राम में
गुरू : रैदास
पति: भोज राज
मीराबाई अपने इष्टदेव कृष्ण की भक्ति पति के रूप में करती थी।
मीराबाई की तुलना प्रसिद्ध सूफी महिला रबिया से की जाती है।
मीराबाई के भक्ति गीत को पदावली कहा जाता है।
मीराबाई ने गीतगोविन्द पर टीका लिखी थी।
मीरा बाई के पिता का नाम भोजराज (राणा सांगा के पुत्र) था। मीरा बाई की मृत्यु द्वारका (गुजरात) में हुई।
तुलसीदास
जन्म : बांदा जिला (उत्तर प्रदेश)
तुलसीदास मुगल शासक अकबर के समकालीन थे
तुलसीदास ने सगुण ब्रह्म को अपनाया
तुलतीदास ने शैव और वैष्णव धर्म सम्प्रदाय के बीच एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया।
तुलसीदास ने अकबर काल में अव धी भाषा में रामचरित मानस की रचना की।
तुलसीदास ने श्रीराम को अपना इष्ट माना एवं उनकी भक्ति में लीन रहे।