स्टडी मटेरियल

भक्ति आन्दोलन (800 ई. से 1700 ई.)

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भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत-

भक्ति आंदोलन का उदय एवं विकास

हिन्दु जीवन का मूल उद्देश्य सोक्ष प्राप्त करना है। जिसके 3 मार्ग (कर्म, ज्ञान एवं भक्ति) हैं। कर्म का गीता में उल्लेख मिलता है। ज्ञान का प्रतिपादन उपनिषदों एवं दर्शन में मिलता है। भक्ति का सर्वप्रथम उल्लेख श्वेताश्वर उपनिषद में मिलता है। अतः मोक्ष प्राप्ति के लिए जो आन्दोलन चलाया गया इसे भक्ति आन्दोलन कहा गया। भारत में भक्ति आन्दोलन का इतिहास अत्यंत प्राचीन है भक्ति के बीज वेदों में विद्यमान हैं। मौर्योत्तर काल में भागवत एवं शैव पंथ भी भक्ति पर आधारित थे। इसी काल में ही गौतम बुद्ध की पूजा प्रारंभ हुई। मध्यकाल में शुरू हुआ भक्ति आन्दोलन, एक भक्ति आन्दोलन मात्र न होकर सुधारवादी आन्दोलन था।

भक्ति आंदोलन का प्रारंभ

भक्ति आन्दोलन का आरंभ भारत दक्षिण भारत में सातवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य हुआ। यह दो चरणों में पूर्ण हुआ इसका दूसरा चरण तेरहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक चला। दक्षिण भारत में शुरू हुए इस आन्दोलन के प्रवर्तक शंकराचार्य थे इनके उपरान्त तमिल वैष्णव संत अलवार एवं शैव संत नयनारो ने इस आन्दोलन का प्रचार प्रसार किया एवं लोकप्रिय बनाया।

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आन्दोलन की प्रकृति:

भक्ति आंदोलन विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ। किन्तु कुछ मूलभूत सिद्धांत ऐसे थे जो समग्र रूप से पूरे आन्दोलन पर लागू होते थे। धार्मिक विचारों के बावजूद जनता की एकता को स्वीकार किया एवं जाति प्रथा का विरोध किया। यह विश्वास स्पष्ट किया कि मनुष्य एवं ईश्वर के बीच तादात्म्य प्रत्येक मनुष्य के सद्गुणों पर निर्भर करता है न कि उसकी ऊंची जाति अथवा धन संपत्ति पर। इस विचार पर जोर दिया कि भक्ति ही आराधाना का उच्चतम स्वरूप है। इसी के आलोक में कर्मकाण्डों, मूर्ति पुजा, तीर्थाटन आदि की निंदा की। अतः मनुष्य की सत्ता को सर्वोपरि मानने वाला यह आन्दोलन मात्र भक्ति और भगवत भजन वाला सामान्य आन्दोलन नहीं था बल्कि इसके आगे जातिगत, सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों से मुक्ति की छटपटाहट से उपजा लोक सुधारवादी आंदोलन था।

भक्ति आन्दोलन की विशेषताएं

दक्षिण भारत के संत

  1. शंकराचार्य
  2. रामानुजाचार्य
  3. माधवाचार्य
  4. निम्बार्क
  5. अलवार संत
  6. नयनार संत

शंकराचार्य

रामनुज

दर्शन/विचार : रामानुज सगुण ईश्वर में विश्वास करते थे। इन्होंने भक्ति मार्ग को मोक्ष का साधन माना है। रामानुज का विशिष्टाद्वैतवाद का मत शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन के विरोध में प्रतिक्रिया थी। रामानुज के अनुसार ब्रह्मा, जीव तथा जगत तीनों में विशिष्ट संबंध है तथा तीनों सत्य हैं। रचनाएं: वेदांतसार, ब्रह्मसूच भाष्य, भगवद्गीता पर टीका एवं न्याय कुलिश की रचना की।दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन की शुरूआत रामानुज ने की थी। रामानुज को दक्षिण में विष्णु का अवतार मानते हैं।

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माधवाचार्य

निम्बार्क

अलवार संत

अलवार संत (कुल 12 संत)

पल्लव देशचेर देशपाण्डय देशचोल देश
पोप गईकुलशेखर (चेर देश के एकमात्र संत)नम्मालवारतोण्डरदिपपोडि
भूत्तारमधुरकवितियप्पान
पेयालवारपेरियालवारतियमंगई
तिरूमलिराईअण्डालअलवारों में एक मात्र महिला

नयनार संत

उत्तर भारत के संत

  1. रामानंद
  2. सूरदास
  3. चैतन्य
  4. वल्लभाचार्य
  5. मीराबाई
  6. दादूदयाल
  7. मलूक दास

रामानंद

सूरदास

रैदास(रविदास)

वल्लभाचार्य

विट्ठलनाथ

कबीरदास

चैतन्य महाप्रभु

मीराबाई

तुलसीदास

दादू दयाल

सिक्ख संप्रदाय

  1. गुरू नानक: सिक्ख धर्म के संस्थापक थे।
  2. गुरू अंगद: गुरूमुखी लिपि के जनम
  3. गुरू अमरदास: गुरू प्रसाद हेतु 22 गद्दियों का निर्माण किया।
  4. गुरू रामदास: अमृतसर के संस्थापक थे।
  5. गुरू अर्जुनदास: गुरू ग्रंथ साहिब का संकलन, स्वर्ण मंदिर का निर्माण , इनको जहांगीर ने फांसी दी।
  6. गुरू हरगोविन्द: अकाल तख्त की स्थापना की।
  7. गुरू हरराय: मुगलों के उत्तराधिकार युद्ध में भाग लिया।
  8. गुरू हरिकृष्ण: अल्प वयस्क अवस्था में मृत्यु हुई।
  9. गुरू तेग बहादुर: औरंगजेब ने फांसी दी।
  10. गुरू गोविन्द सिंह: खालसा सेना की स्थापना की।

गुरू नानक देव

प्रमुख मत एवं प्रवर्तक

मत प्रवर्तक
अद्वैतवाद शंकराचार्य
विशिष्टाद्वैतवादरामनुज
द्वैताद्वैतवादनिम्बार्क
शुद्धाद्वैतवाद वल्लभाचार्य
द्वैतवादमाधवाचार्य
भेदाभेदवादभास्कराचार्य
शैव विशिष्टा द्वैतवादश्री कंठ

संत एवं उनके संप्रदाय

संत संप्रदाय
रामानुजाचार्यश्री संप्रदाय
माधवाचार्य ब्रह्म संप्रदाय
वल्लभाचार्यरूद्र संप्रदाय
तुकारामबारकरी संप्रदाय
रामदास धरकरी संप्रदाय
माधवाचार्यहरियाली संप्रदाय
निम्बार्कसनक संप्रदाय
गुरू नानकसिक्ख संप्रदाय
जगजीवन साहबसतनामी संप्रदाय
शंकराचार्यस्मृति/स्मार्त संप्रदाय

निर्गुण एंव सगुण ब्रह्म से संबंधित संत

सगुण ब्रह्म उपासकनिर्णुण ब्रह्म उपासक
निम्बार्काचार्यकबीरदास
रामानुजाचार्यदादू दयाल
माधवाचार्यरामानंद
सूरदासरैदास
मीराबाईगुरूनानक
वल्लभाचार्य
महाप्रभु
तुलसीदास

निर्गुण भक्ति : इसके अनुसार ईश्वर निराकार है, उसका कोई रूप रंग नहीं है। इसमें मूर्तिपूजा एवं अवतारवाद को स्थान नहीं है।

सगुण भक्ति : इसके अनुसार ईश्वर शरीरधारी है। वह रंग, रूप, आकार, दया, क्रोध आदि गुणों से युक्त है। इसमें मुर्तिपूजा एवं अवतारवाद को स्थान दिया गया है।