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राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था : राज्य स्तरीय

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राजस्थान भारत का एक राज्य है, जहाँ अन्य भारतीय राज्यों की तरह संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था है। सम्पूर्ण राज व्यवस्था संवैधानिक व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका द्वारा संचालित की जाती है। राजस्थान में एक सदनीय व्यवस्थापिका का प्रावधान है, जिसे विधानसभा कहा जाता है। राजस्थान में व्यवस्थापिका का दूसरा सदन विधान परिषद् नहीं है।

विधान मंडल : राज्य की समस्त विधायी शक्ति विधान मंडल में होती है। भारत के प्रत्येक राज्य में विधान मंडल का निर्माण राज्यपाल एवं राज्य के एक या दो सदनों से होता है। राय के ये सदन विधानसभा एवं विधान परिषद् कहलाते है। राजस्थान में विधान मंडल राज्यपाल एवं एक सदन (विधानसभा) से मिलकर बना हुआ है।

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भारत में केवल सात राज्यों में विधान मंडल का निर्माण राज्यपाल एवं दो सदन मिलकर करते है। उन राज्यों के नाम इस प्रकार है:

  1. जम्मू कश्मीर
  2. उत्तर प्रदेश
  3. बिहार
  4. कर्नाटक
  5. महाराष्ट्र
  6. आंध्रप्रदेश
  7. तेलंगाना
  8. राज्यपाल

    स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राजस्थान में राजप्रमुख का पद होता था, जो 1 नवम्बर 1956 के बाद में राज्यपाल के पद में परिवर्तित हो गया। एकीकरण के पश्चात् 1 नवम्बर 1956 को राजस्थान का वर्तमान स्वरुप सामने आया।

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    राजस्थान के प्रथम राज प्रमुख 30 मार्च 1949 को महाराजा सवाई मानसिंह बनाये गए। ये राजस्थान के इकलौते राज प्रमुख भी हैं।
    1 नवम्बर 1956 (राजस्थान के एकीकरण) के पश्चात् राजस्थान के प्रथम राज्यपाल गुरुमुख निहाल सिंह बने।

    राज्यपाल का संवैधानिक स्वरुप

    राज्यपाल उस राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।
    राज्यपाल में राज्य की सभी कार्यपालिका एवं विधायी शक्तियां निहित होती है।
    राज्यपाल राज्य का प्रथम व्यक्ति होता है।
    संविधान के अनुछेद 153 में प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल की व्यवस्था की गयी है।
    राज्यपाल की नियुक्ति केंद्रीय मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    राज्यपाल को उस राज्य का मुख्यन्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलाता है।

    राज्यपाल की योग्यताएं

    राजपाल की न्यूनतम आयु 35 अनिवार्य है।
    व्यक्ति किसी भी सरकारी पद या राजनैतिक पद पर नहीं होना चाहिए।
    वह भारत का नागरिक होना चाहिए। उस राज्य का होना अनिवार्य नहीं है।

    राज्यपाल की कार्यपालिकायी शक्तियां

    वह राज्य की कार्यपालिका का प्रधान होता है।
    विधान सभा में राज्यपाल बहुमत वाले दल के नेता को मुख्यमंत्री चुनता है।
    बहुमत न होने पे वह स्वविवेक से उस दाल के नेता को मुख्यमंत्री चुनता है जो विधानसभा में बहुमत हासिल कर लेगा।
    राज्यपाल मुख्यमंत्री एवं मंत्री परिषद् को गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
    राज्यपाल राज्य के समस्त विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति करता है, एवं स्वयं समस्त विश्वविद्यालयों का पड़ें कुलपति होता है।
    राज्यपाल राज्य के लिए राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करता है।
    राज्यपाल एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए विधानसभा में एक सदस्य को मनोनीत कर सकता है।
    राज्यपाल लोकायुक्त की नियुक्ति करता है।
    राज्य की संवैधानिक असफलता की स्थिति में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देता है, उस प्रतीवेदन के आधार पर अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।

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    राजस्थान में अब तक कुल 4 बार राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है –

    1. 13 मार्च से 26 अप्रैल 1967
    2. 30 अप्रैल से 21 जून 1977
    3. 17 फरवरी से 5 जून 1980
    4. 15 दिसंबर 1992 से 3 दिसंबर 1993
    5. राज्यपाल की विधायी शक्तियां

      राज्यपाल को किसी भी समय विधानसभा का अधिवेशन बुलाने और उसे भांग करने का अधिकार प्राप्त है।
      कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता जब तक राज्यपाल उस ओर अपनी स्वीकृति नहीं दे देता।
      राज्यपाल द्वारा जारी अधयादेश६ माह तक कानून की भाटी प्रभावी होता है।
      वित्तीय विदेयक राज्यपाल की अनुमति के बाद ही विधान मंडल में प्रस्तुत किये जाते है।
      पंचायतों व नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थितियों की समीक्षा के लिए राज्यपाल हर 5 वर्ष में वित्त आयोग का गठन करता है।
      राज्यपाल मृत्युदंड को स्थगित नहीं कर सकता। यह अधिकार सितफ राष्ट्रपति के पास है। शेष दण्ड को वह निलंबित या स्थगित कर सकता है।

      विधानसभा

      किसी भी राज्य की विधान सभा में न्यूनतम ६० एवं अधिकतम ५०० सदस्य हो सकते है। राजस्थान की विधान सभा में कुल २०० सदस्य हैं।
      विधानसभा सदस्य उनके क्षेत्र से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा निर्वाचित होते है।
      विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
      विधानसभा में एक वर्ष में कम से कम २ बैठक होना अनिवार्य है। और इनके मध्य 6 माह से अधिक अंतर नहीं हो सकता।
      विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव सदस्य अपने में से किसी सदस्य के बमत के आधार पर करते हैं। बिलकुल इसी तरह उपाध्यक्ष का ही चुनाव किया जाता है।
      विधानसभा द्वारा राज्यसूचि एवं समवर्ती सूचि में कानून बनाये जाते हैं।
      राष्ट्रपति एवं राज्यसभा सदस्यों के चुनाव में विधानसभा सदस्य भाग लेते है। इसलिए ये चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव है।

      राज्य मंत्री परिषद्

      राज्यों में मंत्री परिषद् का उल्लेख अनुच्छेद 163, 164, व 167 में है।
      मंत्री परिषद् का प्रमुख मुख्यामंत्री होता है।

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      मन्त्रितों के कुल तीन वर्ग है:

      1. केबिनेट मंत्री
      2. राज्य मंत्री
      3. उपमंत्री

      केबिनेट मंत्री महत्वपूर्ण विभागों के प्रभारी होते हैं। केबिनेट स्तर के मंत्रियों के समूह को मंत्रिमंडल कहा जाता है। केबिनेट मंत्रियों के सहायता के लिए राज्य मंत्री नियुक्त किये जाते है। एवं राज्य मंत्रियों की सहायता के लिए उपमंत्री होते हैं। कई बार राज्य मंत्रियों को स्वतंत्र विभाग भी दिया जाता है।
      मंत्री परिषद् का आकर संविधान के अनुसार कुल विधायकों की संख्या का 15% (91वां संविधान संसोधन) होता है। राजस्थान में अधिकतम मंत्रियों की संख्या 30 है जो 200 का 15% है।
      मंत्रिमंडल सचिवालय : का प्रशासनिक प्रमुख मुख्य सचिव तथा राजनीतिक प्रमुख मुख्यमंत्री होता है।

      राजस्थान उच्च न्यायालय

      संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार हर राज्य में एक उच्च न्यायालय की स्थापना की गयी है।
      राज्य के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्यन्यायाधीश एवं राज्य के राज्यपाल के परामर्श से होती है।
      उच्च न्यायालय के अतिरिक्त सभी अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल करता है।
      उच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बना रह सकता है।
      उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंपते हैं।
      उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को केवल अक्षमता एवं अनाचार के आरोप में संसद के महाभियोग राष्ट्रपति के आदेश से पदमुक्त किया जा सकता है।

      राजस्थान में राजस्थान उच्च न्यायालय की स्थापना 1949 में जोधपुर में की गयी। तथा उसकी एक खंड पीठ जयपुर में स्थापित की गयी। वर्तमान में राजस्थान उच्च न्यायालय में 50 न्यायाधीश नियुक्त किये गए है।
      राजस्थान उच्च न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश श्री कमलकांत वर्मा थे।
      राजस्थान में जिला स्टार पर दीवानी मामलों के लिए जिला न्यायलय एवं फौजदारी मामलों के लिए सेशन कोर्ट है।

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