प्रथम विश्व युद्ध को ‘महान युद्ध’ भी कहा जाता है। यह युद्ध मुख्य शक्तियों और मित्र देशों के मध्य लड़ा गया। मित्र देशों में फ्राँस, रूस और ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली देश सम्मिलित थे। वर्ष 1917 के पश्चात संयुक्त राज्य अमेरिका भी (मित्र देशों की तरफ से) युद्ध में सम्मिलित हुआ। केंद्रीय शक्तियों में शामिल प्रमुख देशों में जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया आदि देश थे। प्रथम विश्व युद्ध में प्रमुख गठबंधन देश सम्मिलित थे – ब्रिटेन, फ़्रांस, अमेरिका, रूस, इटली।
वर्ष 1890 में जर्मनी के नए सम्राट विल्हेम द्वितीय ने एक अंतर्राष्ट्रीय नीति की शुरुआत की, जिसने जर्मनी को विश्व शक्ति के रूप में बदलने के प्रयास किये। इसके परिणामस्वरूप विश्व के अन्य देशों ने जर्मनी को एक उभरते हुए खतरे के रूप में देखा जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्थिति अस्थिर हो गई।
पुरे यूरोपियन राष्ट्रों ने आपसी सहयोग के लिये रक्षा समझौते किये। इन समझौतों का अर्थ था कि यदि यूरोप के किसी एक राष्ट्र पर शत्रु राष्ट्र की तरफ से हमला होता है तो उक्त राष्ट्र की रक्षा हेतु सहयोगी राष्ट्रों को सहायता के लिये आगे आना पड़ेगा।
त्रिपक्षीय संधि (Triple Alliance) – वर्ष 1882 की यह संधि जर्मनी को ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली से जोड़ने के लिए की गयी थी।
त्रिपक्षीय सौहार्द (Triple Entente) – यह ब्रिटेन, फ्राँस और रूस से जुड़ा हुआ था, जो वर्ष 1907 तक समाप्त हो गया।
इस प्रकार यूरोप में दो प्रतिद्वंद्वी समूह का निर्माण हो गया।
प्रथम विश्व युद्ध से पहले अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्से कच्चे माल की उपलब्धता की वजह से यूरोपीय देशों के बीच विवाद का विषय बन गए थे। जब जर्मनी और इटली इस उपनिवेशवादी दौड़ में सम्मिलित हुए तो उनके विस्तार के लिये बहुत कम संभावना रही थी। इसके परिणामस्वरुप इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति को अपनाया गया। इस नीति के अनुसार दूसरे देशो के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति को मजबूत किया जाए। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्द्धा और अधिक साम्राज्यों की इच्छा से यूरोपीय देशों के मध्य टकराव बढे जिसने समस्त विश्व को प्रथम विश्व युद्ध में धकेलने में सहायता की।
20वीं सदी के प्रारम्भ में ही विश्व में हथियारों की दौड़ चालू हो गई थी। वर्ष 1914 तक जर्मनी में सैन्य निर्माण में सर्वाधिक वृद्धि हुई। ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी दोनों ने इस समयावधि में अपनी नौ-सेनाओं में काफी वृद्धि हुई। सैन्यवाद की दिशा में हुई इस वृद्धि ने युद्ध में सम्मिलित देशों को और आगे बढ़ाया।
वर्ष 1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप ‘अगादिर का संकट‘ पैदा हुआ। हालाँकि इसका समाधान करने का प्रयास किया गया परंतु यह प्रयास असफल रहै। वर्ष 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज़ ‘इम्प रेटर’ बनाया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज़ था। इससे इंग्लैंड और जर्मनी के मध्य वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गयी।
जर्मनी और इटली का एकीकरण भी राष्ट्रवाद के आधार पर हुआ। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद की भावना अत्यधिक प्रबल थी। चूँकि उस समय बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंदर आता था, अतः जब तुर्की साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने स्वतंत्रता की मांग करना आरम्भ कर दिया।
प्रथम विश्व युद्ध के पहले ऐसी कोई भी संस्था नहीं थी जो साम्राज्यवाद, सैन्यवाद और उग्र राष्ट्रवाद का नियंत्रण कर अनेक राष्ट्रों के मध्य संबंधों को सुलझाने में सहायता कर सके। उस समय विश्व के लगभग सभी राष्ट्र अपनी मनमानी कर रहे थे जिसके परिणामस्वरूप यूरोप की राजनीति में एक प्रकार की अराजक की स्थिति उत्पन्न हो गयी।
प्रथम विश्व युद्ध में सम्मिलित होने वाले देशों का बहुत अधिक धन खर्च हुआ। जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन ने अपनी अर्थव्यवस्था से मिले हुए धन का लगभग 60% भाग युद्ध में खर्च कर दिया। देशों को करों में वृद्धि करनी पड़ी और अपने नागरिकों से धन भी उधार लेना पड़ा। उन्होंने हथियार खरीदने तथा युद्ध के लिये आवश्यक अन्य चीजों हेतु भी अपार धन खर्च किया। इस स्थिति ने युद्ध के बाद मुद्रास्फीति को जन्म दिया।
प्रथम विश्व युद्ध ने चार राजतंत्रों को खत्म कर दिया। रूस के सीज़र निकोलस द्वितीय, जर्मनी के कैसर विल्हेम, ऑस्ट्रिया के सम्राट चार्ल्स और ओटोमन साम्राज्य के सुल्तान को पद को त्यागना पड़ा।
विश्व युद्ध ने समाज को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। जन्म दर में गिरावट आयी क्योंकि लाखों युवा मारे गए (आठ मिलियन लोग मारे गए), लाखों लोग घायल हो गए। नागरिकों ने अपनी ज़मीनो को खो दिया और देश छोड़कर अन्य देशों में चले गए।
28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर के साथ प्रथम विश्व युद्ध आधिकारिक रूप से खत्म हो गया। वर्साय की संधि दुनिया को दूसरे युद्ध में जाने से रोकने का प्रयास थी।