28 सितम्बर को विश्व भर में विश्व रेबीज दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसका उद्देश्य रेबीज बिमारी तथा इसकी रोकथाम के बारे जागरूकता फैलाना है। इस दिवस का उद्देश्य जानवरों व इन्सानों पर रेबीज के प्रभाव तथा रेबीज के रोकने के तरीकों के बारे में जागरूकता फैलाना है।
विश्व रेबीज दिवस ग्लोबल अलायन्स फॉर रेबीज कण्ट्रोल की पहल है, इसकी शुरुआत 2007 में रेबीज की रोकथाम पर जागरूकता फैलाने के की गयी थी। 28 सितम्बर को प्रतिवर्ष विश्व रेबीज दिवस के रूप में मनाया जाता है, रेबीज दिवस फ़्रांसिसी केमिस्ट व माइक्रोबायोलॉजिस्ट लुइस पाश्चर की मृत्यु वर्षगाँठ पर मनाया जाता है।
लुइस पाश्चर ने अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर रेबीज के लिए पहले टीके का आविष्कार किया था।
रेबीज एक वायरल बिमारी है, इसके कारण गर्म रक्त वाले जीवों के मस्तिष्क के सूजन (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस) होती है। यह एक जूनोटिक बिमारी है अर्थात यह एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में फैलती है, यह आमतौर पर कुत्तों के काटने अथवा संक्रमित जानवरों से खरोंच लगने के कारण होता है। रेबीज वायरस केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे मस्तिष्क में रोग उत्पन्न होता है और अंत में रोगी की मृत्यु होती है। घरेलु कुत्ता रेबीज वायरस का प्रमुख स्त्रोत होता है। रेबीज के कारण होने वाली 95% मौतें कुत्तों के कारण होती हैं। रेबीज के प्रमुख लक्षण रौशनी व पानी से डर है। पालतू जानवरों को टीके लगाने से रेबीज को नियंत्रित किया जा सकता है।
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