सर्वोच्च न्यायालय ने 13 नवम्बर, 2019 को स्पष्ट किया कि भारत के मुख्य न्यायधीश का कार्यालय भी सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के दायरे में आता है। इस पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई द्वारा की गयी, इस पीठ में जस्टिस एन.वी. रमण, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता तथा जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे।
संसद ने 15 जून, 2005 को इस बिल को पारित किया था, यह अधिनियम 12 अक्टूबर, 2005 को लागू हुआ था। इस अधिनियम के तहत सरकारी विभागों को नागरिकों द्वारा मांगी गयी सूचना का जवाब निश्चित समय के भीतर देना पड़ता है। इसका पालन न करने पर सरकारी अधिकारियों पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। RTI अधिनियम का उद्देश्य पारदर्शिता का बढ़ावा देना व सरकारी विभागों की जवाबदेही सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के तहत RTI आवेदन पत्र को जवाब सरकारी विभाग को 30 दिन के भीतर देना होता है।
RTI के तहत आतंरिक सुरक्षा से सम्बंधित जानकारी, बौद्धिक संपदा इत्यादि जानकारी नहीं दी जा सकती। निर्णय लागू किये जाने तक कैबिनेट पेपर्स को भी RTI के दायरे से बाहर रखा गया है। कैबिनेट द्वारा किये गए विचार-विमर्श इत्यादि को भी RTI के दायरे से बाहर रखा गया है।
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