20 मार्च, 2020 को निर्भया गैंग रेप के चार दोषियों को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।
सितंबर 2013 में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने इन दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। बाद में उन दोषियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में कई उपचारात्मक और दया याचिका दायर की गई थी। 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने मौत की सजा को बरकरार रखा। हाल ही में, 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाओं में लेने से इनकार कर दिया।
संविधान का अनुच्छेद 145 सर्वोच्च न्यायालय को अपने नियमों को लागू करने की अनुमति देता है। इस अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय अपनी कार्यवाहियों को नियंत्रित करता है, इसके द्वारा संभाले गए मामले, उच्च न्यायालयों को हस्तांतरित किए जाने वाले मामले, जमानत देने, एक बेंच में बैठने के लिए न्यायाधीशों की संख्या आवंटित करने आदि की शक्तियाँ हैं। इस शक्ति के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने अभियुक्तों की याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया।
इस अधिनियम को निर्भया अधिनियम भी कहा जाता था। इस अधिनियम के द्वारा बलात्कार और यौन उत्पीड़न के आरोपियों की सजा में कई बदलाव किये गये। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973, भारतीय साक्ष्य अधिनियम जैसे अन्य कानूनों में भी संशोधन किया गया।
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