स्टडी मटेरियल

नगर निकाय शासन व्यवस्था

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नगरीय शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में मूल संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया था, परन्तु इसे अनुसूची 7 की राज्य सूची में सम्मिलित किया गया तथा सम्बन्ध में क़ानून केवल राज्यों में नगरीय शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में क़ानून का निर्माण किया गया था। इन क़ानूनों के तहत नगरीय शासन व्यवस्था के संचालन के लिए निम्नलिखित निकायों का गठन करने के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया था –

नगर निगम –

नगर निगम विभिन्न स्थानीय सरकारों के प्रशासन संगठन का नाम होता है। यह किसी नगर परिषद या ज़िले, ग्राम, बस्ती या अन्य स्थानीय शासकीय निकायों के अंतर्गत काम करता है। कानूनी तौर पर नगर निगम की स्थापना तब की जाती है जब किसी नगर, बस्ती या ग्राम को स्वशासन का अधिकार प्रदान किया जाता है। यह एक कानूनी लिखित पारित कर किया जाता है, जो नगरीय अधिकारपत्र (municipal charter) कहलाता है, जिसमें प्रशासन संचालन व उच्चतम नगर अधिकारियों के चुनाव या नियुक्ति की विधि स्पष्ट की जाती है।

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नगर निगम के लिए योग्यता –

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नगरपालिका –

किसी राज्य के स्थानीय शहरी शासन में जनता की भागीदारी को बढ़ने के लिए 74वें संविधान संसोधन के रूप में शहरी स्थानीय शासन को सशक्त बनाया गया जिसे भाग 9 (क) में नगरपालिकाएं कहा गया था और यह ही सामान्य रूप में नगरपालिका कहलाती है

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नगरपालिका का गठन –

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नगर पंचायत

नगर पंचायत सरकार की स्थाई इकाई होती है यह सभी गांवों पर समान रूप से कार्य करती हैं अतः इसे प्रशासनिक ब्लॉक भी कहा जाता हैं। ग्राम पंचायत और जिला परिषद के बीच की मजबूत कड़ी होती है और अलग-अलग राज्यों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है जैसे आंध्र प्रदेश में इसे मंडल प्रजा परिषद और गुजरात में तालुका पंचायत तथा कर्नाटक में मंडल पंचायत कहलाती है। किसी भी ग्राम सभा में 200 या उससे अधिक की जनसंख्या का होना आवश्यक है क्योंकि हर गांव में एक प्रधान होता है। इस आधार पर एक हजार आबादी वाले गांवों में 10 पंचायत सदस्य और 3000 की आबादी वाले गांव में 15 सदस्य होते हैं।

साल में लगभग 2 बार ग्राम सभा की बैठक होना आवश्यक होता है जिसकी सूचना 15 दिन पहले दी जाती है। ग्रामसभा की बैठक बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान के पास होता है। बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या के 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक होती है।
ग्राम पंचायत द्वारा बनाये किए गए सभी भावी योजनाओं को इकट्ठा करके पंचायत समिति उनका वित्तीय प्रबंध का समाज कल्याण और क्षेत्र विकास को ध्यान में रखते हुये लागू करवाती है तथा वित्त पोषण के लिए उनका क्रियान्वयन करती है।

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