कंप्यूटर डेटा के निरूपण के लिए बाइनरी भाषा का उपयोग किया जाता है। ये बाइनरी भाषा 0 और 1 से मिलकर बनी होती है। उपयोगकर्ता कम्प्यूटर को जो भी डेटा निर्देश इनपुट के रूप में सग्रहित करता है या कम्प्यूटर से जो भी आउटपुट आता है, वह अक्षर, संख्या, संकेत, ध्वनि या वीडियो के रूप होता है। इन सभी डेटा या निर्देशों को पहले बाइनरी भाषा में परिवर्तित करना पड़ता है अर्थात् डेटा को 0 और 1 के रूप में प्रस्तुत करना पड़ता है। यह प्रक्रिया डेटा निरूपण कहलाती है।
संख्या पद्धति के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न प्रकार की संख्याओं का समूह होता है, जिसका उपयोग कम्प्यूटर में किसी डेटा/निर्देश को प्रदर्शित करने के लिए करते हैं। कम्प्यूटर को डेटा या निर्देश भिन्न-भिन्न संख्या पद्धति में दिया जाता है तथा कम्प्यूटर अलग-अलग संख्या पद्धति में डेटा को निरूपित किया जाता है, किन्तु आन्तरिक रूप से किसी कार्य को करने के लिए कम्प्यूटर द्वारा बाइनरी भाषा का ही उपयोग किया जाता है।
संख्या पद्धति के प्रकार –
कम्प्यूटर सिस्टम द्वारा प्रयोग की जाने वाली संख्या पद्धति के मुख्यतः चार प्रकार होते है –
इस संख्या प्रणाली में केवल दो अंक ही मौजूद होते हैं- 0 (शुन्य) और 1 (एक)। जिससे इसका आधार 2 होता है। अतः यह द्वि-आधारी या बाइनरी संख्या प्रणाली कहलाती है। जिस प्रणाली में कम्प्यूटर की प्रमुख पद्धति बनती है, वह स्विच की तरह कार्य करती है। स्विच की केवल दो स्थितियाँ होती हैं- ऑन (ON) तथा ऑफ (OFF)। इसके अतिरिक्त कोई तीसरी स्थिति नहीं होती है। इस आधार पर कम्प्यूटर संख्या प्रणाली में 0 (शुन्य) का अर्थ ऑफ तथा 1 (एक) का अर्थ ऑन होता है। बाइनरी प्रणाली का आधार 2 होने के कारण उसके स्थानीय मान दाई ओर बाई ओर क्रमशः दोगुने होते जाते हैं अर्थात् 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 आदि।
ये संख्याएँ द्वि-आधार के घातों में क्रमशः 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26 आदि के रूप में लिखी जा सकती हैं। इसी प्रकार बाइनरी बिन्दु (Binary) के बाई ओर स्थानीय मान 2 की घातों के रूप में ही घटते हैं, जैसे- 2-1, 2-2, 2-3 . . . आदि
दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली संख्या पद्धति, दशमिक या दशमलव संख्या प्रणाली भी कहलाती है। इस संख्या प्रणाली में 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 ये दस संकेत मान (Symbol Value) रहते हैं। जिससे इस संख्या प्रणाली का आधार 10 होता है। दशमलव प्रणाली का स्थानीय मान (Positional Value) संख्या के दाई से बाई दिशा में आधार (Base) 10 की घात की वृद्धि के क्रम के रूप में होता है।
ऑक्टल संख्या प्रणाली में 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, और 7 इन आठ अंको का उपयोग किया जाता है। जिससे इसका आधार 8 होता है। इन अंकों के मुख्य मान दशमलव संख्या प्रणाली की तरह ही होते हैं। ऑक्टल संख्या प्रणाली इसलिए सुविधाजनक होती है, क्योंकि इसमें किसी भी बाइनरी संख्या को छोटे रूप में लिखा जा सकता हैं।
इस प्रणाली का प्रयोग मुख्यतः माइक्रो कम्प्यूटरों में किया जाता है। आधार 8 होने का कारण अष्टमिक संख्या प्रणाली में अंकों के स्थानीय मान दाई ओर से बाई और क्रमशः आठ गुने होते जाते हैं। अर्थात् 80, 81, 82, 83, . . . आदि तथा ऑक्टल बिन्दु दाई और क्रमशः 8-1, 8-2, 8-3, . . . आदि होते हैं।
हेक्सा-डेसीमल शब्द का निर्माण दो अक्षरों से मिलकर होता है- हेक्सा तथा डेसीमल। हेक्सा का अर्थ छ होता है तथा डेसीमल का अर्थ दस होता है। अतः इस संख्या प्रणाली में कुल सोलह (16) (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, A, B, C, D, E, F) अंक होते हैं। इसके मुख्य मान क्रमशः 0 से 15 तक होते हैं, परन्तु 10, 11, 12 आदि को दो अलग-अलग अंक नहीं समझा जाए, इसलिए अंकों 10, 11, 12, 13, 14 और 15 के स्थान पर क्रमशः A, B, C, D, E तथा F अक्षर के रूप में लिखा जाता हैं। इस प्रकार इस प्रणाली में दस अंक तथा छ‘ वर्णों का प्रयोग किया जाता है, जो निम्नलिखित है –
0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, A, B, C, D, E, F
हेक्सा – डेसीमल संख्या प्रणाली में अंकों के स्थानीय मान दाई ओर से बाई ओर 16 के गुणकों में बढ़ते है। जैसे 160, 161, 162, 163, … आदि इसी प्रकार हेक्सा-डेसीमल बिन्दु के बाद इसके स्थानीय मान 16 के गुणकों में घटते हैं, जैसे 16-1, 16-2, 16-3, 16-4, … आदि।
एक पद्धति से दूसरी संख्या पद्धतियों में परिवर्तन आवश्यक रुप से किया जाता है, क्योंकि उपयोगकर्ता (User) द्वारा इनपुट किया गया डेटा दशमलव संख्या पद्धति में रहता है। जिसके बाद कम्प्यूटर इस इनपुट किए गए डेटा को उस संख्या पद्धति में परिवर्तित कर देता है, जिसमे उसे समझने में आसानी हो। एक डिजिटल कम्प्यूटर सिस्टम में एक समय में तीन या चार संख्या पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। इसी कारण से संख्या पद्धतियों को आपस में परिवर्तित कराया जाता है।