स्टडी मटेरियल

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885)

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अवधारणाएँ और नीतियाँ

  1. स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा
  2. सुरक्षा और घरेलू मामले
  3. विदेश नीति

काँग्रेस की नीतियों का विरोध-

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तथ्य

आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय के कारण

  1. भारत एवं उपनिवेशी शासन के हितों में विरोधाभास
  2. भारत का प्रशासनिक, राजनितिक एवं आर्थिक एकीकरण
  3. पाश्चात्य चिंतन तथा शिक्षा का प्रभाव
  4. प्रेस एवं समाचार-पत्र की भूमिका
  5. भारत के अतीत का पुनःअध्ययन
  6. मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का अम्युदय
  7. तत्कालीन विश्वव्यापी घटनाओं का प्रभाव
  8. अंग्रेज शासकों की प्रक्रियावादी नीतियां एवं जातीय अहंकार
  9. कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थाएं

कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थाएं-

वर्षसंगठन
1836बंगभाषा प्रकाशक सभा
1838जमींदारी एसोसिएशन
1843बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी
1851ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन
1866ईस्ट इंडिया एसोसिएशन
1867पूना सार्वजनिक सभा
1875इण्डियन लीग
1876कलकत्ता भारतीय एसोसिएशन
1884मद्रास महाजन सभा
1885बाम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन

भारतीय राष्ट्रवाद का पहला या आरंभिक चरण मध्यम दर्जे (नरमदल) का चरण (1885-1905) भी कहलाता है। नरमदल के नेता थे, डब्ल्यू.सी. बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, आर.सी. दत्ता, फीरोजशाह मेहता, जॉर्ज यूल आदि

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नरमपंथी नेताओं को ब्रिटिश सरकार में पूर्ण विश्वास था और उन्होंने पीपीपी मार्ग यानि विरोध, प्रार्थना और याचिका, को अपनाया था।

प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) के उद्देश्य

नरमपंथी राष्ट्रवादियों का योगदान

काम के नरमपंथी तरीकों से मोहभंग होने के कारण, 1892 के बाद कांग्रेस में चरमपंथ विकसित होने लगा। चरमपंथी नेता थे– लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिनचंद्र पाल और अरबिंदो घोष। पीपीपी मार्ग के बजाए इन्होंने आत्म– निर्भरता, रचनात्मक कार्य और स्वदेशी पर जोर दिया।

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प्रशासनिक सुविधा के लिए लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन (1905) की घोषणा के बाद, 1905 में स्वदेशी और बहिष्कार संकल्प पारित किया गया था।

बंगाल विभाजन एवं स्वदेशी आंदोलन (1905 ई. से 1906 ई.)

उग्र और क्रांतिकारी आंदोलन (1905 ई. से 1914 ई.)

कोमागाटा मारू घटना-

वर्ष 1914 में कामागाटू मारू नामक जहाज 376 भारतीयों को लेकर समुद्री रास्ते से कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया तट पर पहुंचा। इनमें 340 सिख, 24 मुसलमान, 12 हिंदू और बाकी ब्रिटिश थे। इस जहाज को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल गदर पार्टी के नेता गुरदीत सिंह ने किराए पर लिया था। 23 मई, 1914 को वैंकुवर के तट पर जहाज पहुंचा तो उसे दो महीने तक वहीं खड़ा रहना पड़ा क्योंकि कनाडा की सरकार ने अलग-अलग कानूनों का हवाला देकर भारतीयों को वहां प्रवेश की अनुमति नहीं दी। सिर्फ 24 भारतीयों को कनाडा सरकार ने वैंकूवर में उतरने दिया। शेष भारतीयों को दो महीने बाद जहाज के साथ भारत वापस भेज दिया गया। 1914 में पहला विश्व युद्ध आरंभ हुआ था।

होमरुल लीग आंदोलन (1915 ई. से 1916 ई.)

गांधीजी

रौलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड (1917 ई. से 1919 ई.)

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर, जब भारतीय जनता संवैधानिक सुधारो की उम्मीद कर रही थी तो ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी रौलेट एक्ट को जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया। रौलेट एक्ट के द्वारा सरकार को यह अधिकार प्राप्त हुआ कि, वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और दंड दिए बिना ही जेल में बंद कर सके। 1919 में रौलेट एक्ट के विरोध में गांधी जी ने पहली बार एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आंदोलन का आरंभ किया।

इस घटना में एक हजार से अधिक लोग मारे गए जिसमें युवा, महिलाएँ, बूढ़े, बच्चे सभी शामिल थे। यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास में जलियावाला हत्या कांड के नाम से प्रसिद्द है। इस घटना के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी तथा सर शंकरन नायर ने गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद से त्याग पत्र दे दिया।

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असहयोग आंदोलन (1920 ई.)

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् आत्मनिर्णय की भावना को बल मिला इसके साथ ही रौलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, पंजाब में मार्शल ला तथा खिलाफत के विवाद आदि घटनाओं से अंग्रेजों के प्रति भारतीय दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन आया। जनता इन घटनाओं के लिए सरकार से खेद प्रकट करने की अपेक्षा कर रही थी। इसके विपरीत परिस्थितियो में आंदोलन के एक और चक्र के प्रारंभ के लिए वह तैयार थी। 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन, जिसकी अध्यक्षता विजय राघवाचारी कर रहे थे, में असहयोग आंदोलन का अनुमोदन कर दिया गया।

सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमनात्मक नीति का सहारा लिया आंदोलन के स्वरुप में स्थान परिवर्तन के साथ-साथ भिन्नता आई। 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा नामक गाँव में तीन हजार किसानो के एक कांग्रेसी जुलूस पर पुलिस ने गोली चलाई। किसानो की भीड़ ने थाने पर हमला करके थाने में आग लगा दी जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए। गांधीजी चूँकि हिंसा में विश्वास नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय किया।

साइमन आयोग

नेहरु रिपोर्ट (1928)

सविनय अवज्ञा आंदोलन

गाँधी इरविन समझौता

पूना समझौता (1932 ई.)

16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने साम्र्पदायिक पंचाट की घोषणा की जिसमें दलितो सहित 11 समुदायों को पृथक निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया। इसके तहत मुसलमान केवल मुसलमानो द्वारा, सिख केवल सिक्खों द्वारा तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय केवल अपने समुदाय द्वारा चुने जा सकते थे।

दलितों के लिए की गई पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था का गांधीजी ने विरोध किया। गांधीजी, जो उस समय यरवदा जेल मे बंदी थे, ने इसे भारतीय एकता तथा राष्ट्रवाद पर चोट की संज्ञा दी। उन्होंने इस निर्णय को वापस ना लिए जाने की स्थिति मे 20 सितंबर, 1932 को आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।

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26 सितंबर 1932 को राजेंद्र प्रसाद व मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से गांधी जी और अंबेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ। इस समझौते के तहत् दलित वर्ग के लिए एक पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था वापस ले ली गयी, लेकिन दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 और केन्द्रीय विधायिका में कुल सीटों की 18% तक कर दिया गया। पूना समझौते के सांप्रदायिक निर्णय द्वारा हिंदुओं से हरीजनो को पृथक करने के सरकारी प्रयास को विफल कर दिया गया।

1937 का चुनाव और प्रांतो में कांग्रेसी मंत्रिमंडल

अगस्त प्रस्ताव (1940 ई.)

क्रिप्स मिशन 1942 ई.

1941 में सुदूर पूर्व में जापान द्वारा ब्रिटेन की पराजय तथा मार्च 1942 में जापान की भारतीय सीमा पर दस्तक, इन दो घटनाओं से ब्रिटिश युद्धकालीन मंत्रिमंडल के रुख में नरमी आ गई। भारत में संवैधानिक प्रतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमंस के नेता तथा युद्धकालीन मंत्रिमंडल के एक सदस्य स्टेफर्ड क्रिप्स को एक घोषणा के मशविरा के साथ भारत भेजा गया।

मार्च 1948 में यह मशविरा कार्यकारी परिषद् तथा भारतीय राजनेताओं के सम्मुख रखा गया।लगभग सभी पार्टियों तथा वर्गो के असंतोष को देख यह घोषणा केवल सभी भारतीयों की युद्ध मे सहायता प्राप्त करने का एक उपाय मात्र था। इसमे भारतीय समस्या के समाधान के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया था।

भारत छोड़ो आंदोलन 1942

क्रिप्स मिशन की असफलता के साथ 1942 में भारतीय नेताओं द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई और भारत छोड़ों का संकल्प गांधी जी ने तैयार किया। गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया था।14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने वर्धा में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अंग्रेजो को भारत से चले जाने के लिए कहा गया था, तथा यह कहा गया कि यदि यह अपील स्वीकृत नहीं होती है तो कांग्रेस एक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने के लिए बाध्य हो जाएगी।

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पूरे देश मे कारखानो, स्कूल और कॉलेजों मे हड़तालें और कामबंदी हुई, जिन पर लाठीचार्ज और गोलियां चलाई गयीं। बार बार की गोलीबारी और दमन से क्रुद्ध होकर जनता ने अनेक जगहो पर हिंसक कार्यवाही भी की। जनता ने पुलिस थानों, डाकखानों, रेलवे स्टेशनों आदि ब्रिटिश शासन के तमाम प्रतीको पर हमले किए। उत्तरी और पश्चिमी बिहार और पूर्वी संयुक्त प्रांत, बंगाल में मिदनापुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा उड़ीसा के कुछ हिस्से आन्दोलन के प्रमुख केंद्र रहे, जिसमे बलिया, तामलुक, सतारा आदि स्थानों पर समानांतर सरकारों की स्थापना की गई, जो प्रायः दीर्घजीवी सिद्ध नहीं हुई।

सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज

विदेशों में भारतीय संगठन

संगठनसंस्थापकवर्षदेश
इण्डिया हाउसश्यामजी कृष्ण वर्मा1904लंदन (इंग्लैण्ड)
अभिनव भारतवी.डी.सावरकर 1906 लंदन (इंग्लैण्ड)
ग़दर पार्टीलाला हरदयाल1907सेन फ्रांसिस्को (अमेरिका)
इंडियन इंडिपेंडेंस लीगलाला हरदयाल1914बर्लिन (जर्मनी)
इंडियन इंडिपेंडेंस लीग एंड गवर्नमेंटराजा महेंद्र प्रताप1915काबुल (अफगानिस्तान)
इंडियन इंडिपेंडेंस लीगरास बिहारी बोस1942टोकियो (जापान)

शिमला समझौता तथा वेवेल योजना

अक्टूबर 1940 में लॉर्ड लिनलिथगो के स्थान पर लार्ड वेवेल भारत के वायसराय तथा गवर्नर बने। उन्होंने भारतीय संवैधानिक गतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से एक विस्तृत योजना बनाई, जो उनके नाम पर वेवेल योजना के नाम से जानी जाती है। वेवेल योजना की घोषणा 14 जून, 1945 को की गई। योजना के मुख्य प्रावधान निंलिखित थे-

  1. ब्रिटिश शासन राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करके भारत को स्वशासन के लक्ष्य की ओर अग्रसर करना चाहता है।
  2. वायसराय कार्यकारिणी परिषद का गठन इस तरह किया जाए कि, वायसराय तथा प्रधान सेनापति को छोडकर शेष सदस्य भारतीय हों।
  3. कार्यकारी परिषद में हिंदू तथा मुसलमान सदस्यो की संख्या बराबर होगी।
  4. विदेश विभाग भारतीय सदस्यो के हाथ में होगा।
  5. एक ब्रिटिश उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी, जो भारतीय वाणिज्य तथा दूसरे हितो की देखभाल करेगा।
  6. नई कार्यकारिणी परिषद 1935 के अधिनियम के तहत कार्य करेगी।
  7. भारत सचिव शक्ति को सीमित किया जाएगा, जबकी वायसराय के वीटो के अधिकार को बरकरार रखा जाएगा।

कैबिनेट मिशन योजना 1946

अंतरिम सरकार का गठन (1946 ई.)

जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में उनके 11 सहयोगियो के साथ 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया। इसमें मुस्लिम लीग के सदस्य शामिल नहीं हुए।

मुस्लिम लीग ने कांग्रेस लीग की समानता पर बल दिया। ऐसा न करने पर उसने कैबिनेट मिशन योजना को ठुकरा दिया। आरंभ में मुस्लिम लीग सरकार में शामिल नहीं हुई थी, परन्तु वायसराय के प्रयासों से वह 26 अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल हुई। सरकार में उसके 5 सदस्य थे – लियाकत अली, गजनफ़र अली, चंद्रीगर, अब्दुल, खनश्तर, तथा योगेंद्र नाथ मांडल।

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एटली की घोषणा

माउंटबेटन योजना (जून 1947)

तथ्य

ग्रैंड ओल्ड मेन ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध दादा भाई नौरोजी तीन बार 1886 ई., 1893 ई., 1906 ई. में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।

भारतीय क्रांति की माँ (मदर ऑफ इंडियन रेवोलुशन) के नाम से मैडम कामाजी प्रसिद्ध हैं। बाल गंगाधर तिलक को फादर ऑफ इंडियन अनरेस्ट (भारतीय अशांति के पिता) वैलेंटाइन शिरोल ने कहा।

1932 के सांप्रदायिक पंचाट (कम्युनल अवार्ड) की घोषणा प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने की थी।

व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले सत्याग्रही विनोबा भावे थे।

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जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया एवं श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ने भूमिगत होकर भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन किया था।

4 मार्च 1931 के गांधी इरविन समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका तेज बहादुर सप्रू, डॉ जयंकर व भोपाल के नवाब ने अदा की।