स्टडी मटेरियल

अकबर (1556-1605 ई.)

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।
Get it on Google Play

अकबर का जन्म सिंध के अमर कोट में राजपूत राणा वीरसाल के घर में हुआ । अकबर का पूरा नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। पिता हुमायुं और माता हमीदा बानो बेगम थी।

अकबर का राज्याभिषेक बैरम खाँ की देखरेख में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कालानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी 1556 ई. को मिर्जा अबुल कासिम के द्वारा हुआ था। बैरम खां को अकबर के वजीर पद पर नियुक्त किया गया

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

अकबर के प्रमुख अभियान

मालवा विजय अभियान

यहाँ के शासक बाज बहादुर को 1561 ई. में अदहम ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने हरा दिया। 29 मार्च, 1561 ई. को मालवा की राजधानी ‘सारंगपुर’ पर मुग़ल सेनाओं ने अधिकार कर लिया।

अकबर की पहली विजय मालवा की विजय थी। मालवा के शासक बाज बहादुर ललित कलाओं (विशेषकर नृत्य और संगीत) के शौकीन थे। वह राज्य के मामलों के प्रति उपेक्षित था और खुद को उसकी प्रतिभाशाली मालकिन रूप माटी के साथ रोमांस में लीन रखता था। मालवा को जीतने के लिए अकबर ने अधम खान को निराश किया। बाज बहादुर ने अपनी राजधानी सारंगपुर से बीस मील आगे मुगल सेना का सामना किया, लेकिन वह हार गया और वह भाग निकला।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

read more

बंगाल विजय

read more

गोंडवाना का विजय अभियान 

read more

चित्‍तौड़ पर आक्रमण

1567 में मेवाड़ में चित्तौड़ के शासक राणा उदयसिंह पर आक्रमण किया गया तथा अंत में उस पर अधिकार कर लिया गया

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

चित्तोड़गढ़ की घेराबंदी (20 अक्टूबर 1567 – 23 फ़रवरी 1568) वर्ष 1567 में मेवाड़ राज्य पर मुगल साम्राज्य द्वारा किया गया सैनिक अभियान था। इसमें अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जयमल के नेतृत्व वाले 8000 राजपूतों और 40,000 किसानों की घेराबन्दी कर ली।

read more

कालिंजर पर आक्रमण

बुंदेलखंड में कालिंजर का किला रीवा के राजा रामचंद्र के अधीन था। 1569 में मजनूखां ककसाल को से जीतने के लिए भेजा गया। राजा रामचंद्र ने मुगल अधीनता स्‍वीकार कर ली।

राजा ने बिना किसी लड़ाई के मुगलों के किले को आत्मसमर्पण कर दिया क्योंकि वह चित्तौड़ और रणथंभौर के भाग्य का पता लगाने के लिए आए थे और प्रतिरोध की निरर्थकता का एहसास कर सकते थे।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

रणथम्भोर पर आक्रमण

1568 ई. में रणथम्‍भौर पर चौहान राजपूतों के हाड़ा वंश का राज्‍य था। फरवरी, 1569 मे अकबर की तोपों की मार के सम्‍मुख रणथम्‍भौर की दीवारें नहीं ठहर सकी

जोधपुर और बीकानेर पर आक्रमण

जोधपुर के राजा मालदेव का पुत्र चन्‍द्रसेन अकबर की शरण में आ गया था, परन्‍तु यह मित्रता अधिक समय नहीं चली।

मेवाड़ के लिए हल्दीघाटी का युद्ध

अकबर ने अपनी कुशल नीति के द्वारा अधिकांश राजपूतों को अपने पक्ष में कर लिया था। अब वह राणा की स्‍वंतत्रता, प्रमुखता, श्रेष्‍ठता को कैसे सहन कर सकता था। अतः उसने सोचा कि राणा स्‍वंय नहीं झुका तो उसे आक्रमण से झुकाना चाहिये। 

read more

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

गुजरात पर आक्रमण

मुजफ्फरशाह के एक सरदार इत्‍माद खां ने अकबर को गुजरात में हस्‍तक्षेप करने को प्रोत्‍साहित किया अतः अकबर ने 1572 ई. में आक्रमण किया। 

read more

कश्मीर पर आक्रमण

अकबर ने कश्‍मीर पर आक्रमण करने के लिऐ राजा भगवानदास को भेजा। जिस समय अकबर ने कश्‍मीर पर आक्रमण किया उस समय कश्‍मीर का राजा युसुफ खां था जो की अत्‍यन्‍त अत्‍याचारी और धर्मान्‍ध था। भगवान दास युसुफ खां को पराजित कर कश्‍मीर को काबूल प्रान्‍त का भाग बनाकर अपने अधीन कर लिया। 

कश्मीर के तत्कालीन शासक युसुफ खान ने 1581 ई. में अपने बेटों को अकबर पर इंतजार करने के लिए भेजा था, लेकिन खुद ने अदालत में अपनी उपस्थिति से बचा लिया था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

read more

पानीपत का दूसरा युद्ध (5 नवंबर, 1556)

पानीपत का दूसरा युद्ध अकबर के वजीर व संरक्षक बैरम खां एवं मोहम्मद आदिल शाह सूर के वजीर हेमू के बीच हुआ। इसमें हेमू पराजित हुआ एवं मारा गया।

हेमू के पास अकबर से कहीं अधिक बड़ी सेना तथा 1,500 हाथी थे।

प्रारंभ में मुगल सेना के मुकाबले में हेमू को सफलता प्राप्त हुई, लेकिन दुर्भाग्य से एक तीर हेमू की आंख में घुस गया और उसने युद्ध का पासा पलट दिया। बाद में हेमू को गिरफ्तार कर उसकी हत्या कर दी गई ।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

read more

तिलवाडा का युद्ध

अकबर का संरक्षक बैरम खां अकबर के वयस्क होने के बाद भी शासन की बागडोर स्वंय अपने पास रखना चाहता था इसी कारण बैरम खां ने अकबर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। दोनों के बीच तिलवाडा नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमें बैरम खां पराजित हुआ। अकबर ने बैरम की विधवा से विवाह कर लिया एवं बैरम का पुत्र अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना था।

पर्दाशासन

पर्दाशासन की घटना अकबर से जुड़ी हुई है। 1560-62 ई. के बीच अकबर शासन में अकबर की परिवार की महिलाएं प्रभावशाली रही थी। इसी कारण इस काल को पर्दाशासन कहा गया है।

अकबर का राजत्व सिद्धांत

अकबर द्वारा साम्राज्य विस्तार

मालवा अभियान (1561 ई.)

गढ़ कटंगा अभियान (1564 ई.)

गढ़ कटंगा, गोंडवाना प्रदेश था जो जबलपुर के पास का क्षेत्र था। यहां के राजा की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी रानी दुर्गावती राज कर रही थी। अकबर साम्राज्य में कडा (इलाहाबाद) के सुबेदार आसफ खां ने दमोह के पास रानी दुर्गावती को पराजित किया।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

पराजित होने के बाद रानी दुर्गावती ने बंदी बनाए जाने के भय से स्वयं को छुरा घोंप कर आत्महत्या कर ली। गढ़ कटंगा पर भी अकबर का राज्य स्थापित हो गया।

राजस्थान अभियान

अकबर की राजपूत नीति : यह नीति दमन, सहयोग एवं समझौते पर आधारित थी जो अलग अलग तीन चरणों में विभाजित थी। अकबर की राजपूत नीति का उद्देश्य साम्राज्य के स्थायित्व के लिए राजपूतों की सहानुभूति प्राप्त करना था।

प्रथम चरण, 1572 तक था इस समय दमन की नीति को अपना कर राजपूतों पर आधिपत्य स्थापित करने पर बल था। द्वितीय चरण 1572-78 तक था इस चरण में राजपूतों से माम्राज्य विस्तार में सहयोग प्राप्त करने की नीति प्रभावी थी। इस चरण में राजपूत शक्तियों के बीच शक्ति संतुलन स्थापित करना भी उद्देश्य शामिल था। तृतीय चरण 1578 के बाद का काल था। इस नीति में हिन्दु एवं मुस्लिम धर्म के कारण उत्पन्न हुए विरोधों का निराकरण वैवाहिक संबंधों द्वारा किए जाने की झलक मिलती है।

राजस्थान पर अभियान के कारण

घटनाक्रम

  1. सन् 1562 ई. में अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाला कच्छवाह शासक भारमल (आमेर) राजस्थान का पहला राजपूत शासक था।
  2. सन् 1562 ई. में ही मेडता पर अधिकार किया गया।
  3. सन् 1568 ई. में लगभग 4 महीने की घेराबंदी के बाद मेवाड का विनाश किया, मेवाड़ ने आधिपत्य स्वीकार नहीं किया।
  4. सन् 1569 ई. में रणथम्भौर पर अधिकार किया।
  5. सन् 1570 ई. में मारवाड़, बीकानेर एवं जैसलमेर के राजाओं ने मुगल आधिपत्य स्वीकार कर लिया।
  6. क्षेत्रीय स्वतंत्र राज्यों में केवल मेवाड़ ही स्वतंत्र था जिसने अकबर का आधिपत्य स्वीकार नहीं किया।

हल्दीघाटी का युद्ध

1570 ई. तक मेवाड़ के अलावा राजस्थान के सभी राजपूत राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी। 1568 ई. में मेवाड़ को अधीन करने के लिए अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया 4 महीने की घेराबन्दी के बाद भी जब चित्तौड़ का राजा उदयसिंह बाहर नहीं आया तो अकबर ने कत्लेआम का आदेश दिया इससे 30,000 से अधिक लोग मारे गये। किले में रसद की कमी हो गयी। राजा उदयसिंह किले की सुरक्षा जयमल और फत्ता के हाथों में सौंपकर गुप्त रास्ते से परिवार के साथ पास वाली पहाड़ी में चले गये परन्तु अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

1572 ई. में महाराणा प्रताप का राज्यारोहण हुआ। महाराणा ने मेवाड़ के कुछ हिस्सों पर अधिकार कर लिया। अकबर ने कई दूत मण्डली महाराणा प्रताप के दरबार में भेजी। अकबर का स्पष्ट आदेश था कि महाराणा प्रताप अकबर की अधीनता स्वीकार कर ले परन्तु महाराणा ने दूतों के साथ स्पष्ट रूप में अवमानना संदेश भेजा अब अकबर के पास शक्ति प्रयोग के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचा था।

अकबर द्वारा भेजी गयी दूत मण्डली का क्रम

अकबर का गुजरात अभियान

सन् 1572 ई. में अंत में अकबर गुजरात पहुंचा। सबसे पहले अहमदाबाद पर कब्जा किया फिर दक्षिण गुजरता एवं सूरत पर कब्जा किया। अकबर ने गुजरात में खान ए आजम अजीज कोका को सुबेदार नियुक्त किया।

अकबर का बंगाल अभियान

अन्य अभियान

अकबर के नवरत्न –

  1. बीरबल – इनका जन्म काल्पी में हुआ था। बचपन का नाम महेशदास था। आमेर के राजा भारमल के पुत्र भगवान दास ने इन्हें अकबर तक पहुंचाया था। अकबर ने इन्हें कविराज एवं राजा की उपाधि तथा 2000 का मनसब प्रदान किया। ये अकबर के न्याय विभाग के सर्वोच्च अधिकार थे। दीन ए इलाही धर्म स्वीकार करने वाले एकमात्र हिन्दु राजा बीरबल थे। इनकी मृत्यु युसुफजई कबीले के साथ होने वाले संघर्ष में हुई।
  2. अबुल फजल – इन्होंने आइन ए अकबरी, अकबरनामा की रचना की। अबुल फजल दीन ए इलाही धर्म के मुख्य पुरोहित थे। इनकी हत्या शहजादा सलीम ने करवाई।
  3. तानसेन – ये ग्वालियर के थे। अकबर ने इन्हें कण्ठा भरण वाणी विलास की उपाधि दी। इनके समय ध्रुपद गायन शैली का विकास हुआ। इन्होंने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था।
  4. अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना – ये बैरम खां का पुत्र था। इनका पालन पोषण स्वयं अकबर ने किया था। इन्होंने बाबरनामा का फारसी में अनुवाद किया था।
  5. मानसिंह – ये आमेर के राजा भारमल के पौत्र तथा भगवान दास के पुत्र थे। अकबर के मेवाड़ (हल्दीघाटी), काबुल, बंगाल एवं बिहार के अभियानों में मुख्य भुमिका निभायी।
  6. टोडरमल – इसका जन्म अवध के सीतापुर में हुआ। अकबर से पहले ये शेरशाह सूरी के यहां नौकरी करते थे। अकबर के शासन में दहशाला (भूमि सुधार) की व्यवस्था दी। इन्होंने दीन-ए-इलाही धर्म को स्वीकार नहीं किया था।
  7. फैजी – अकबर ने इन्हें राजकवि के पद पर आसीन किया था। इन्होंने गणित की प्रसिद्ध पुस्तक लीलावती का फारसी में अनुवाद किया।
  8. हकीम हुमाम – ये अकबर के रसोईघर का कार्य संभालते थे।
  9. मुल्ला-दो-प्याजा – ये अरब के रहने वाले थे। ये अपनी बुद्धिमानी व वाकपटुता के कारण नवरत्नों में शामिल थे।

अकबर के शासनकाल की प्रमुख घटनाएं –

समयघटनाएं
1562 ई.दास प्रथा का अंत
1563 ई.तीर्थ यात्रा कर समाप्त
1564 ई.जजिया कर समाप्त
1567 ई.मनसबदारी व्यवस्था प्रारंभ
1571 ई.फतेहपुर सीकरी की स्थापना
1575 ई.इबादत खाने का निर्माण
1579 ई.दहसाला प्रणाली की घोषणा
1580 ई.साम्राज्य को सूबों में विभाजित किया(दक्षिण विजय के बाद सूबों की संख्या 15 हो गयी)
1582 ई.दहसाला प्रणाली लागू एवं दीन ए इलाही की घोषणा
1583 ई.इलाही संवत् की स्थापना

अकबर की धार्मिक नीति

सुलह-ए-कुल नीति

सुलह-ए-कुल का अर्थ सभी धर्मों को महत्व देना, आदर करना एवं धार्मिक सहिष्णुता से है। सूफभ् संतों ने सुलह-ए-कुल नीति पर जोर दिया था। यह धार्मिक कट्टरता को कम करती है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

मजहर घोषणा पत्र

मजहर घोषणा पत्र वह दस्तावेज था जो समस्त धार्मिक मामलों में अकबर को धार्मिक मामलों का अंतिम व्याख्याकार घोषित करता था। इस पत्र से अकबर ने ‘सुल्तान ए आदिल’ या ‘इमाम ए आदिल’ की उपाधि धारण की। इस दस्तावेज को लाने का उद्देश्य उलेमाओं के विरोध को कम करना एवं राजत्व की गरिमा को बढ़ाना था। इसका प्रारूप शेख मुबारक ने तैयार किया था।

तौहीद-ए-इलाही/ दीन-ए-इलाही

सरकार की बागडोर संभालते ही अकबर धार्मिक मामलों में उदार रहा 1563 ई. में हिन्दुओं से वसूला जाने वाला तीर्थ कर समाप्त कर दिया। इसी संदर्भ में जजिया को समाप्त कर दिया। अकबर ने राज-काज में उदार धार्मिक नीति का अनुसरण किया परन्तु व्यक्तिगत आचरण में वह एक रूढ़िवादी मुसलमान था।

धार्मिक मामलों में अकबर बचपन से जिज्ञासु था। अपनी इसी जिज्ञासा के कारण अकबर ने इबादत खाना (फतेहपुर सीकरी) खोला एवं सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों को समझने की कोशिश की। आरंभ में इबादत खाने में केवल मुसलमान भाग ले सकते थे एवं चर्चा का दिन बृहस्पतिवार निश्चित था। 1578 ई. के बाद अकबर ने इबादत खाने के दरवाजे हिन्दु, जैन, बौद्ध, यहूदी, पारसी एवं ईसाइयों के लिए भी खोल दिए। परन्तु इबादत खाने का जो उद्देश्य था ‘सत्य की खोज’ के स्थान पर अपने-अपने धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करने लगे अतः अकबर ने 1582 में इबादत खाने को बंद कर दिया।

इबादत खाने की बहसों को निरर्थक नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसके दो महत्वपूर्ण परिणाम निकले –

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

इस प्रकार इबादतखाने की बहसों ने एक नए उदार और सहिष्णु राज्य के उदय में तथा दी ए इलाही धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

दीन ए इलाही

दीन-ए-इलाही के सिद्धांत

इबादत खाने में आमंत्रित धर्माचार्य