स्टडी मटेरियल

दक्षिण भारत के स्वतंत्र राज्य

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14वीं शताब्दी के प्रथम चरण में द्वारसमुद्र के होयसलों के अलावा लगभग संपूर्ण दक्षिण भारत को दिल्ली-सल्तनत में शमिल किया जा चुका था परन्तु मुहम्मद बिन तुगलक के काल में दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा विद्रोह हुए। इन विद्रोहों के दमन के लिए एवं सत्ता की मजबूती के लिए राजधानी दौलताबाद बनायी एवं विजित प्रको मुक्त कर सेनापति बनाकर दक्षिण के अभियान पर भेजा। हरिहर एवं बुक्का ने कंपिलि के विद्रोह को दबा दिया। इसी बीच में हरिहर एवं बुक्का देशों को प्रांतों में विभाजित किया।

1325 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई बहाउद्दीन गुर्शस्प ने कर्नाटक में विद्रोह कर दिया जिसे स्वयं मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण जाकर दबाया परन्तु बहाउद्दीन भाग कर कंपिलि के शासक के पास पहुंच गया। मुहम्मद बिन तुगलक ने कंपिलि को जीतकर सल्तनत में शामिल कर लिया। कंपिलि विजय अभियान में ही मुहम्मद बिन तुगलक कंपिलि राज्य से नामक दो भाइयों को बंदी बनाकर लाया था।

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विजयनगर के प्रमुख राजवंश –

संगम वंश (1336-1485 ई.)

संगम वंश के संस्थापक हरिहर बुक्का थे जो संगम नामक व्यक्ति के पुत्र थे। इन्होंने अपने पिता संगम के नाम पर अपने राज्य का नाम रखा था।

उसने अपने भाई बुक्का (प्रथम) के साथ मिलकर तुंगभद्रा नदी के दक्षिण तट पर स्थित अनेगोंडी के आमने सामने दो नगर ‘विजय नगर और विद्या नगर ‘ नामक नगरो का निर्माण किया ।

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सालुव वंश (1485 – 1505 ई. )

विजय नगर में फैली अराजकता को देखकर शक्तिशाली सामंत नरसिंह सालुव ने 1485 ईस्वी में सालुव वंश की स्थापना की। इसे प्रथम बलापहर भी कहते है। नरसिंह द्वारा नियुक्त नरसा नायक ने चोल, पंड्या, चेरो पर आक्रमण कर इन्हें विजयनगर की प्रभुसत्ता स्वीकार करने को मजबूर किया। 1505 ई. मे नरसा नायक के पुत्र वीर नरसिंह ने शासक की हत्या कर तुलुव वंश की स्थापना की। 

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तुलुव वंश (1505-1570 ई.)

वीर नरसिंह के इस तरह राजगद्दी पर अधिकार करने को विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में द्वितीय बलापहार की संज्ञा दी गयी। 

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तुलुव वंश के संस्थापक वीर नरसिंह का समस्त शासन-काल आन्तरिक विद्रोहों व बाह्य आक्रमणों से प्रभावित था.
1509 ई. में उसकी मृत्यु हो गई तथा उसका चचेरा भाई कृष्णदेव राय गद्दी पर बैठा

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आरविडु वंश (1570-1650 ई.)

1570 ई. में उसने तुलुव वंश के अंतिम शासक सदाशिव को करके आरविडु वंश की स्थापना की। तालीकोटा के युद्ध के बाद रामराय के भाई तिरुमाल ने वेनुगोंडा (पेनुगोंडा) को विजयनगर साम्राज्य की जगह अपनी राजधानी बनाया। 1570 ई. में तुलुव वंश के अंतिम शासक सदाशिव को सिहंसन से हटाकर अरवीडु वंश की स्थापना की।

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विजयनगर साम्राज्य

कंपिलि विजय के कुछ समय बाद दक्षिण भारत में अनेक विद्रोह हुए जैसे आंध्र में प्रोलाय एवं कपाय नायक नामक दो भाइयों ने विद्रोह कर दिया। मदुरा के तुगलक सूबेदार जलालुद्दीन अहसान ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। होयसलों ने भी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इसी स्थिति का लाभ उठाकर कंपिलि ने भी विद्रोह कर दिया। आंध्र, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र सभी जगह विद्रोह भड़क उठा।

दक्षिण भारत के विद्रोहों को दबाने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने हरिहर एवं बुक्का को मुक्त कर सेनापति बनाकर दक्षिण के अभियान पर भेजा। हरिहर एवं बुक्का ने कंपिलि के विद्रोह को दबाया। इसी बीच में हरिहर एवं बुक्का विधारण्य नामक नामक संत के संपर्क में आए। विधारण्य ने अपने गुरू विधातीर्थ की अनुमति से हरिहर एवं बुक्का पुनः हिन्दु धर्म में दीक्षित किया।

1336 ई. में हरिहर ने हम्पी हस्तिनावती राज्य की नींव रखी। इसी वर्ष उसने अनेगोण्डी के निकट विधारण्य एवं सायण की प्रेरणा से विजयनगर शहर की स्थापना एवं संगम वंश की स्थापना की।

तथ्य

विजयनगर को विद्यानगर या जीत का शहर भी कहा जाता है। यह वर्तमान में कर्नाटक राज्य के हम्पी में स्थित था। विजयनगर साम्राज्य के खण्डह तुंगभद्रा नदी पर स्थित है

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विजयनगर साम्राज्य (1336-1565ई.)

वंशसंगम वंशसालुव वंशतुलुव वंशआरावीडु वंश
संस्थापकहरिहर एवं बुक्का-1 नरसिंह सालुववीरनरसिंहतिरूमल्क

विजयनगर का प्रशासन

केन्द्रीय प्रशासन

प्रांतिय प्रशासन

  1. प्रान्त – विजयनगर साम्राज्य प्रांतों में बंटा था
  2. मण्डल (कमिश्नरी) – प्रांत मण्डलों में बंटा था
  3. कोट्टम/वलनाडु (जिले) – मण्डल, कोट्टमों में बंटा था
  4. नाडु (तहसील) – कोट्टम, नाडुओं में बंटा था
  5. मेलाग्राम (ग्रामों का समूह) – नाडु, मेलाग्रामों में बंटा था
  6. उर/ग्राम (प्रशासन की सबसे छोटी इकाई) – मेलाग्राम, उर एवं ग्रामों से मिलकर बना था

नायंकार व्यवस्था

स्थानीय प्रशासन

आयगार व्यवस्था

इस व्यवस्था के अनुसार, एक स्वतंत्र इकाई के रूप में प्रत्येक ग्राम को संगठित किया गया। इसके प्रशासन के लिए बारह शासकीय व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था। इस बारह शासकीय व्यक्तियों के समूह को आयगार कहा जाता था। इनकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी। ये पद आनुवांशिक था। आयगारों को वेतन रूप में लगान एवं कर मुक्त भूमि प्रदान की जाती थी।

विजयनगर साम्राज्य के कर

विजयनगर साम्राज्य के सिक्के

सोने के सिक्के – वराह (सर्वाधिक प्रसिद्ध) अन्य नाम: हूण या पगोडा कहा जाता था। अन्य सिक्के: प्रताप एवं फणम्

चांदी के सिक्के -तार।

विजय नगर साम्राज्य में समाज

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