तुलुव वंश (1505-65 ई.)

  • स्थापना – 1505 ई.
  • संस्थापक – वीर नरसिंह
  • पतन- 1565 ई.

वीर नरसिंह (1505-09 ई.)

  • तुलुव वंश के संस्थापक वीर नरसिंह का समस्त शासन-काल आन्तरिक विद्रोहों व बाह्य आक्रमणों से प्रभावित था।
  • 1509 ई. में उसकी मृत्यु हो गई तथा उसका चचेरा भाई कृष्णदेव राय गद्दी पर बैठा।

कृष्णदेव राय 1509-30 ई. (विजयनगर साम्राज्य) 

  • कृष्णदेव राय को तुलुव वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है तथा कृष्णदेव राय की गणना विजयनगर साम्राज्य के सर्वश्रेष्ठ राजाओं में की जाती है।
  • 1513 ई. में उसने उड़ीसा के राजा गजपति प्रतापरुद्र को पराजित किया व 1514 ई. में उदयगिरी के किले पर अधिकार किया।
  • फिर उसने कोडविन्दु और कोडपल्ली पर अधिकार किया तथा 1520 ई. में बीजापुर को जीता और गोलकुण्डा के दुर्ग को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
  • इस प्रकार विजयनगर का प्रभाव लगभग सम्पूर्ण दक्षिण के राज्यों में सर्वोच्च हो गया।
  • कृष्णदेव राय ने पुर्तगाली शासक अलबुकर्क के अनुरोध पर उसे भट्टकल में दुर्ग के निर्माण की आज्ञा दे दी।
  • पुर्तगाली यात्री डोमिंगोस पाइस ने उसके व्यक्तित्व की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
  • 1529 ई. में कृष्णदेव राय की मृत्यु हो गई।
  • कृष्णदेव राय एक महान योद्धा व कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक तथा कला का संरक्षक भी था।
  • कृष्णदेव राय एक महान् विद्वान और कवि भी था।
  • कृष्णदेव राय ने तेलुगू में ‘आमुक्तमाल्यद’ नामक कविता लिखी।
  • अल्लसानी पेडना उसका राजकवि था।
  • कृष्णदेव राय ने गौपुर टावर का निर्माण करवाया।
  • कृष्णदेव राय ने नागलापुर नामक नगर बसाया तथा सिंचाई और पानी की व्यवस्था के लिए अनेक तालाब बनवाए।
  • कृष्णदेव राय के प्रसिद्ध दरवारी तेनालीराम कृष्ण ने “पाँडुरंग महात्म्य‘ की रचना की।
  • ‘पॉडुरंग महात्म्य’ की गणना पाँच महाकाव्यों में की जाती है।
  • कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात् विजयनगर साम्राज्य का विघटन आरम्भ हो गया।

अच्युतदेव राय (1529-42 ई.)

  • कृष्णदेव राय के पश्चात् उसका भाई अच्युतदेव राय राजा बना।
  • अच्युतदेव राय अत्यन्त दुर्बल व अयोग्य शासक था।
  • फलस्वरूप केन्द्रीय सत्ता कमजोर हो गई और अनेक प्रतिद्वंद्वी दल अस्तित्व में आ गए।
  • 1542 ई. में अच्युतदेव राय की मृत्यु हो गयी तथा उसका नाबालिक पुत्र वेंकेट प्रथम राजा बना तथा उसका मामा तिरूमल उसका संरक्षक बना।
  • थोड़े ही समय में अच्युतदेव के भतीजे सदाशिव, बीजापुर के शासक आदिलशाह और तिरूमल की सांठ-गाँठ के परिणामस्वरूप सदाशिव को विजयनगर का सिंहासन प्राप्त हुआ

सदाशिव राय (1542 -70 ई.)

  • सदाशिव राय के शासन काल में शासन की वास्तविक सत्ता रामराय के हाथों में रही।
  • सदाशिव रायने अपनी कूटनीति तथा शक्ति द्वारा अहमदनगर तथा बीजापुर में फूट उत्पन्न कर दी और 1552 ई. का रायचूर और मुद्गल दोनों पर अधिकार कर लिया।
  • 1560 ई. तक विजयनगर दक्षिण की सर्वोच्च शक्ति बन गया।
  • 1543 ई. में राम राय ने बीजापुर के विरुद्ध अहमदनगर और गोलकुण्डा से सन्धि की कालान्तर में उसने अहमदनगर के विरुद्ध बीजापुर तथा गोलकुण्ड एवं बीजापुर को सहयोग दिया, किन्तु उसकी यह नीति असफल रहीं।

तालीकोट का युद्ध

  • बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुण्डा तथा बीदर के संयुक्त मोर्चे ने 25 जनवरी 1565 ई. को विजयनगर पर आक्रमण कर दिया।
  • तालीकोट युद्ध को ‘तालीकोटा का युद्ध’, ‘राक्षसी तंगड़ी का युद्ध‘ अथवा ‘बन्नहट्टी का युद्ध‘ के नाम से भी जाना जाता है।
  • तालीकोट युद्ध में संयुक्त मार्च को विजय प्राप्त हुई तथा इसी पराजय के साथ विजयनगर साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया तथा दक्षिण में हिन्दू सर्वोच्चता का अन्त हो गया।
  • युद्ध के परिणामों के प्रतिकूल होने पर भी विजयनगर साम्राज्य लगभग सौ वर्ष तक अस्तित्व में रहा।
  • तिरूमल के सहयोग से सदाशिव ने पेनुकोंडा को राजधानी बनाकर शासन करना शुरू कर दिया तथा 1570 ई. के लगभग यहीं पर तिरूमल ने सदाशिव को अपदस्थ करके आरविडु वंश की स्थापना की।

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