- स्थापना – 1336 ई.
- संस्थापक – हरिहर और बुक्का।
- दक्षिण में स्वतन्त्र विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी।
हरिहर प्रथम (1336–1356 ई )
- हरिहर ‘संगम’ का पुत्र था।
- उसने अपने भाई बुक्का (प्रथम) के साथ मिलकर तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित अणेगोण्डी के आमने-सामने दो नगर ‘विजय नगर और विद्या नगर’ नामक नगर का निर्माण किया।
- हरिहर ने 18 अप्रैल, 1336 ई. को हिन्दू रीति से अपना राज्याभिषेक किया।
- उसके द्वारा स्थापित राज्य को शुरू में मदुरई और मैसूर के शासकों का सामना करना पड़ा था।
- हरिहर ने बदामी, उदयगिरी एवं गूटी में स्थित दुर्गों को शक्तिशाली बनाया।
- उसने मदुरा पर विजय पाई तथा होयसल राज्य को भी अपने राज्य में मिलाया। बहमनी राज्य (1346 ई. में स्थापित) से भी उसका संपर्ष हुआ।
- 1956 ई. में हरिहर की मृत्यु हो गई।
बुक्का प्रथम
- हरिहर का उत्तराधिकारी उसका भाई बुक्का प्रथम बना।
- बुक्का प्रथम ने 1377 ई. तक शासन किया।
- बुक्का प्रथम ने मदुरा को आपने राज्य में मिलाया।
- बुक्का प्रथमके शासन काल में विजयनगर और बहमनी राज्यों के मध्य तीन युद्ध (1360, 1365 तथा 1367 ई. में) हुए।
- बुक्का प्रथम ने ‘वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की।
- बुक्का प्रथमने अपने राज्य की सीमों में और अधिक वृद्धि की।
- बुक्का प्रथमके साम्राज्य की सीमाओं के अन्तर्गत दक्षिण भारत, रामेश्वरम्, तमिल व चेर प्रदेश भी आ गए थे।
हरिहर द्वितीय (1377–1404 ई )
- बुक्का प्रथम के उत्तराधिकारी हरिहर द्वितीय ने ‘महाराजाधिराज’ और ‘राजपरमेश्वर’ की उपाधियाँ धारण की।
- वह एक महान् विजेता था। उसने कनारा, मैसूर, कांची, त्रिचनापल्ली और चिंगलपट आदि प्रदेशों पर विजय प्राप्त की।
- 1300 ई. में बहमनी राजा फिरोजशाह को पराजित होकर सन्धि के फलस्वरूप विजयनगर साम्राज्य को काफी हर्जाना देना पड़ा।
- 1404 ई. में उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्रों में हुए उत्तराधिकार हेतु संघर्ष में उसका तीसरा पुत्र देवराय प्रथम सफल रहा।
- किन्तु कुछ ही समय पश्चात् बुक्का द्वितीय (हरिहर द्वितीय का पुत्र) ने गद्दी छीन ली व 1406 ई. तक शासन किया।
देवराय प्रथम (140-99 ई.)
- 5 नवम्बर, 1406 ई. को देवराय प्रथम राजा बना।
- देवराय प्रथम बहमनी शासकों से अनेक बार पराजय का सामना करना पड़ा।
- देवराय प्रथमने तुंगभद्रा नदी पर सिंचाई की सुविधा हेतु नहरें निकलवाई।
- देवराय प्रथमके शासन काल में इटली का यात्री निकोलो कोटी विजयनगर की यात्रा पर आया।
- 1492 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
- देवराय प्रथमके पश्चात् कुछ महीनों के लिए उसके पुत्र क्रमशः रामचन्द्र तथा वीर विजय राय गद्दी पर बैठे।
- डॉ. के.ए, नीलकण्ड शास्त्री का मत है कि, “मोटे तौर पर माना जा सकता है कि उसका(वीर विजय राय का) शासन काल पाँच वर्षों (1429-26 ई.) का था।
- संभवतः वह बहमनी शासक अहमदशाह से पराजित हुआ और उसे बहुत बड़ी रकम हर्जाने के रूप में देनी पड़ी।
देवराय द्वितीय (1426-46 ई.)
- देवराय द्वितीयने 1498 ई. में कोदविंद देश पर विजय प्राप्त की तथा केरल पर भी हमला करके इन्हें अपने साम्राज्य में मिलाया।
- महान् विजेता होने के साथ देवराय द्वितीय एक अच्छा प्रवन्धक और कला तथा साहित्य का संरक्षक भी था।
- देवराय द्वितीयने अपनी सेना में मुसलमानों को भर्ती किया, अच्छे अरबी घोड़ों का आयात किया व सैनिकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की।
- जहाँ सेना में सुधार हुआ वहाँ राज्य की अर्थव्यवस्था पर बोझ भी पड़ा।
- धार्मिक दृष्टि से वह उदार शासक था।
- उसने कवियों व साहित्यकारों को भी सरंक्षण दिया।
- तेलगू कवि श्रीनाथ विजयनगर के राजकवि थे।
- उसके शासन काल में फारस का प्रसिद्ध यात्री अब्दुरज्जाक विजयनगर आया था।
- 1446 ई. में इस महान शासक की मृत्यु हो गई।
मल्लिकार्जुन या प्रौढ़ देवराय (1446-66 ई.)
- देवराय के बाद पहले विजयराय द्वितीय नामक व्यक्ति सिंहासन पर बैठा और उसके शीघ्र ही बाद मई, 1447 ई. में उसका अपना पुत्र मल्लिकार्जुन राजा बना।
- मल्लिकार्जुन के काल में विजयनगर साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया।
- मल्लिकार्जुन उड़ीसा के गजपतियों और बहमनी सुल्तानों के आक्रमणों को नहीं रोक सका तथा उसे कई अपमानजनक सन्धियों पर हस्ताक्षर करने पड़े।
- सम्भवतः जुलाई, 1465 ई. में उसकी मृत्यु हुई।
- सैनिक दृष्टि से चाहे वह अयोग्य व असफल सिद्ध हुआ किन्तु उसने हिन्दू संस्कृति के प्रति अपने वंश के शासकों का प्रेम बनाए रखा।
- उसने मन्दिरों तथा ब्राह्मणों को अनुदान दिए।
वीरूपाक्ष द्वितीय (1465-85 ई.)
- वीरूपाक्ष द्वितीय को संगम वंश का अन्तिम शासक कहा जाता है।
- वह अत्यन्त विलासी शासक था और उसके शासन काल में विजयनगर साम्राज्य में आंतरिक विद्रोह और ब्राह्य आक्रमण दोनों तीव्र हो गए।
- ऐसी परिस्थितियों में चन्द्रगिरी के गवर्नर (सामन्त) सालुव नरसिंह ने विजयनगर साम्राज्य की रक्षा की।
- 1485 ई. में वीरूपाक्ष की उसके पुत्र ने हत्या कर दी।
- परिस्थतियों का लाभ उठाकर सालुव नरसिंह के सेनानायक नरसा नायक ने राजमहल पर कब्जा करके सालुव नरसिंह को सिंहासन पर बैठने हेतु निमन्त्रण दिया।
- इस घटना को विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में प्रथम बलापहार कहा जाता है।
- इसी के साथ संगम वंश का अन्त व सालव वंश का सिंहासन पर अधिकार हो गया।