उत्तर भारत के प्रमुख स्वतंत्र राज्य-
शर्की राजवंश के शासको के क्रम –
सन् 1297 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने इसे दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। बाद में दिल्ली सल्तनत के स्थायित्व तक दिल्ली से गुजरात में मुस्लिम सूबेदारों का नियुक्त होना जारी रहा। सन् 1401 में अंतिम सूबेदार जफर खां ने औपचारिक तौर पर दिल्ली सल्तनत की अधीनता छोड़ दी एवं अपने पुत्र तातार खां को नासिरूद्दीन मुहम्मद शाह की पदवी देकर सुल्तान के रूप में स्वतंत्र राज्य के सिंहासन पर बैठा दिया। सन् 1407 ई. में जफर खां ने अपने पुत्र सुल्तान नासिरूद्दीन मुहम्मद शाह को जहर दे दिया एवं सुल्तान मुजफ्फर शाह के नाम से गद्दी पर बैठा बाद में इसके पौत्र अलय खां ने इसे जहर दे दिया एवं अहमद शाह के नाम से गद्दी पर बैठा।
मालवा का नाम नर्मदा – चंबल के उपजाऊ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौतिक क्षेत्र में बसने वाले लोगों के नाम पर रखा गया। मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है। मालवा का उक्त नाम ‘मालव’ नामक जाति के आधार पर रखा इस जाति का उल्लेख सर्वप्रथम ई. पू. चौथी सदी में मिलता है, जब इस जाति की सेना सिकंदर से युद्ध में पराजित हुई थी। ये मालव प्रारंभ में पंजाब तथा राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थी, लेकिन सिकंदर से पराजित होकर वे अवन्ति व उसके आस-पास के क्षेत्रों में बस गये। उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा अवन्ति को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। दशार्ण की राजधानी विदिशा थी तथा अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी। कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये। इस प्रकार एक भौगोलिक घटक के रूप में ‘मालवा’ का नाम लगभग प्रथम ईस्वी सदी में मिलता है।