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मौर्य राजवंश के शासकों की सूची–
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य – 321-298 ईसा पूर्व (24 वर्ष)
सम्राट बिन्दुसार मौर्य – 298-271 ईसा पूर्व (28 वर्ष)
सम्राट अशोक महान – 269-232 ईसा पूर्व (37 वर्ष)
कुणाल मौर्य – 232 – 228 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
दशरथ मौर्य – 228 -224 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
सम्पति मौर्य – 224-215 ईसा पूर्व (9 वर्ष)
शालिशुक मौर्य – 215-202 ईसा पूर्व (13 वर्ष)
देववर्मन मौर्य – 202-195 ईसा पूर्व (7 वर्ष)
शतधन्वन मौर्य – 195-187 ईसा पूर्व (8 वर्ष)
ब्रहद्रथ मौर्य – 187-185 ईसा पूर्व (2 वर्ष)
मौर्यकाल के बारे में जानने के स़्त्रोत –
स्त्रोत-
साहित्यिक स्त्रोत
पुरातात्विक स्त्रोत
बौद्ध साहित्य: दीप वंश, महावंश, दिव्यावदान, जातक
चन्द्रगुप्त मौर्य के अभिलेख, अशोक के अभिलेख
जैन साहित्य – कल्पसूत्र
रूद्रदामन अभिलेख
अन्य साहित्य: पुराण, मुद्राराक्षस, इण्डिका, कथासरित सागर, वृहत कथा मंजरी
मृदभाण्ड, स्थापत्य कला आदि।
कौटिल्य/चाणक्य/विष्णुगुप्त का अर्थशास्त्र
यह मौर्यकालीन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में की हुई थी। यह राजनीति एवं लाक प्रशासन पर लिखी किताब है। यह गद्य एवं पद्य में महाभारत शैली में लिखी पुस्तक है। चाणक्य को भारत का मैकेयावेली भी कहते है।
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मेगास्थनीज की इण्डिका
मेगस्थनीज सेल्यूकस का राजदूत था जो चन्द्रगुप्त मौर्य के
वर्तमान में इसकी मूल प्रति उपलब्ध नहीं है। इसके उद्धरण विदेशी लेखकों जैसे एरियन, प्लूटार्क, प्लिनी, जस्टिन आदि के विवरणों से प्राप्त होते हैं।
मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त को सेण्ड्रोकोटस कहा है।
इण्डिका के अनुसार भारतीय समाज
व्यक्ति संपन्न थे, चोरी नहीं होती थी, घरों में ताले नहीं लगाए जाते थे।
अपराध कम था, न्यायालयों का प्रयोग कम होता था।
भारतीय लोग ब्याज नहीं लेते थे।
बहु विवाह प्रचलित (केवल धनी लोगों में) सती प्रथा का प्रचलन नहीं था।
जाति समाज का मूलाधार थी।
जाति व्यवस्था का पालन अनिवार्य था।
दास प्रथा प्रचलित नहीं थी।
भारतीय लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे।
इण्डिका के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था
कृषक धनी थे, अकाल नहीं पड़ता था, कृषि मुख्य व्यवसाय था।
पैतृक व्यवसाय का प्रचलन था।
मेगास्थनीज ने सोना खोदने वाली चींटियों का उल्लेख किया है।
भारतीय घोड़े तथा एक विशेष प्रकार के एक सींग वाले घोड़े का उल्लेख किया है उसका नाम कार्टजन था।
उसने एक नदी की चर्चा की है जिससे सोना निकलता था।
इण्डिका के अनुसार भारत में धर्म की स्थिति
ब्राह्मण धर्म की प्रधानता थी।
लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते थे।
हेराक्लि (श्री कृष्ण) एवं डायोनिसस (शिव) की पूजा की जाती थी।
इण्डिका के अनुसार भारत की राजनीतिक दशा
राजा अत्यंत शक्तिशाली था।
राजा की अंगरक्षक स्त्रियां थी।
अपराध कम होते थे तथा दण्डविधान कठोर था तथा शासकीय संपत्ति को नुकसान पहंचाने पर मृत्यु दण्ड का प्रावधान था।
राजा न्यायप्रिय था एवं राज्य शांत व सुखी था।
मौर्यकालीन राजा
उत्पत्ति संबंधि विचार
ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार, मौर्य वंश शूद्रों से संबंधित था।
कथासरितसागर एवं वृहतकथामंजरी में, मौर्यो को शुद्र माना है
बौद्ध एवं जैन ग्रंथों के अनुसार, मौर्य क्षत्रिय कुल के थे।
यूरोपीय साहित्य में मौर्यो को सामान्य कुल का माना गया है।
मान्य मत: अधिकतर विद्वानों ने मौर्यो को क्षत्रिय कुल का माना जाता था।
चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. – 298 ई.पू.)
चन्द्रगुप्त मौर्य ने अंतिम नंद शासक घनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की स्थापना की।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनानी शासक सेल्युकस निकेटर को पराजित किया।
सेल्युकस ने मेगास्थनीज को अपने राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था।
अशोक की शांति प्रियता एवं अहिंसा की नीति – हेमचन्द्र राय चौधरी
अशोक की धार्मिक नीतियों के विरूद्ध ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया – हरिप्रसाद शास्त्री
मौर्य प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीकृत होना व अधिकारियों का प्रशिक्षित न होना – रोमिला थापर
अयोग्य व निर्बल उत्तराधिकारी
राष्ट्रीय चेतना का अभाव
प्रांतीय शासकों के अत्याचार एवं करो की अधिकता।
मौर्यो के अत्याचारों एवं विदेशी विचारों के विरूद्ध पुष्यमित्र शुंग के द्वारा राज्य में की गयी क्रांति – निहार रंजन राय।
मौर्यकालीन प्रशासन
राजा – यह प्रशासन का केन्द्र बिन्दु होता था तथा कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका का प्रमुख होता था।
चक्र/प्रांत – मौर्य साम्राज्य 5 बड़े प्रांतों में विभाजित था। सर्वोच्च अधिकारी: प्रांतपति (ये राजपरिवार के सदस्य होते थे व राजा के द्वारा नियंत्रित होते थे)
मण्डल – प्रांत मण्डलों में विभाजित होते थेे। सर्वोच्च अधिकारी: महामात्य।
विषय/आहार/जिला – मंडल जिलों में बंटे हुए होते थे। सर्वोच्च अधिकारी: विषयपति, अन्य अधिकारी: युक्त, रज्जुक एवं प्रादेशिक।
जिला व ग्राम का मध्यवर्ती स्तर – जिलों एवं ग्रामों के मध्य एक मध्यवर्ती स्तर होता था। सर्वोच्च अधिकारी: स्थानिक, अन्य अधिकारी: गोपा।
ग्राम – मौर्य प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। गांव/ग्राम का प्रधान ग्रामिक होता था।
जातिव्यवस्था का स्वरूप कठोर था, कोई भी व्यक्ति जाति से बाहर विवाह नहीं कर सकता था और न ही अपना पेशा बदल सकता था।
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अपवाद – दार्शनिक व ब्राह्मण।
स्त्रियों की दशा
स्त्रियों को पुनर्विवाह एवं नियोग की अनुमति थी।
अर्थशास्त्र के अनुसार विवाह की उम्र स्त्री के लिए 12 वर्ष पुरूष के लिए 16 वर्ष थी।
दहेज प्रथा इस समय चरम सीमा पर थी।
रूपाजीवा – ये स्वतंत्र रूप से वैश्यावृति करने वाली स्त्रियां थी।
स्त्रियां सम्राट की अंगरक्षिका नियुक्त कि जाती थी।
दास प्रथा
मेगास्थनीज ने भारत में दास प्रथा न होना बताया है। परन्तु बौद्ध साहित्य, कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं अशोक के अभिलेखों से दास प्रथा के प्रचलन की पुष्टि होती है।
अर्थशास्त्र में 9 प्रकार के दासों का उल्लेख किया गया है। दासों को कृषि, कारखानों, खदानों आदि में लगाया जाता था। महिला दास गृह कार्य एवं सेवा, सुश्रुसा आदि किया करती थी।
मौर्यकालीन शिक्षा केन्द्र
तक्षशिला, उज्जैन एवं वाराणसी मौर्य काल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे।
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शूद्रों की स्थिति
मौर्यकाल में शूद्रों का पतन प्रारंभ हुआ था।
पुराणों में शुद्रों को अनार्य माना जाता था परन्तु कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में शूद्रों को आर्य माना है तथा मलेच्छों से अलग माना है।
मौर्यकाल में शूद्रों को कृषि कार्यो में शामिल किया गया था।
कारण: कृषि कार्यो में अत्यधिक विस्तार तथा कृषिगत मजदूरों की आवश्यकता।