स्टडी मटेरियल

मौर्यकाल (321-185 ई.पू.)

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मौर्य राजवंश के शासकों की सूची

मौर्यकाल के बारे में जानने के स़्त्रोत –

स्त्रोत-

साहित्यिक स्त्रोतपुरातात्विक स्त्रोत
बौद्ध साहित्य: दीप वंश, महावंश, दिव्यावदान, जातकचन्द्रगुप्त मौर्य के अभिलेख, अशोक के अभिलेख
जैन साहित्य – कल्पसूत्ररूद्रदामन अभिलेख
अन्य साहित्य: पुराण, मुद्राराक्षस, इण्डिका, कथासरित सागर, वृहत कथा मंजरीमृदभाण्ड, स्थापत्य कला आदि।

कौटिल्य/चाणक्य/विष्णुगुप्त का अर्थशास्त्र

यह मौर्यकालीन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में की हुई थी। यह राजनीति एवं लाक प्रशासन पर लिखी किताब है। यह गद्य एवं पद्य में महाभारत शैली में लिखी पुस्तक है। चाणक्य को भारत का मैकेयावेली भी कहते है।

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मेगास्थनीज की इण्डिका

इण्डिका के अनुसार भारतीय समाज

इण्डिका के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था

इण्डिका के अनुसार भारत की राजनीतिक दशा

मौर्यकालीन राजा

उत्पत्ति संबंधि विचार

  1. ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार, मौर्य वंश शूद्रों से संबंधित था।
  2. कथासरितसागर एवं वृहतकथामंजरी में, मौर्यो को शुद्र माना है
  3. बौद्ध एवं जैन ग्रंथों के अनुसार, मौर्य क्षत्रिय कुल के थे।
  4. यूरोपीय साहित्य में मौर्यो को सामान्य कुल का माना गया है।
  5. मान्य मत: अधिकतर विद्वानों ने मौर्यो को क्षत्रिय कुल का माना जाता था।

चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. – 298 ई.पू.)

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बिन्दुसार (298 ई.पू. – 272 ई.पू.)

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सम्राट अशोक (273 ई.पू. – 232 ई.पू.)

नोट – बौद्ध ग्रंथों में अशोक के दो पुत्र महेन्द्र व कुणाल तथा दो पुत्रियों संघमित्रा एवं चारूमती का उल्लेख मिलता है।

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मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण

  1. अशोक की शांति प्रियता एवं अहिंसा की नीति – हेमचन्द्र राय चौधरी
  2. अशोक की धार्मिक नीतियों के विरूद्ध ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया – हरिप्रसाद शास्त्री
  3. मौर्य प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीकृत होना व अधिकारियों का प्रशिक्षित न होना – रोमिला थापर
  4. अयोग्य व निर्बल उत्तराधिकारी
  5. राष्ट्रीय चेतना का अभाव
  6. प्रांतीय शासकों के अत्याचार एवं करो की अधिकता।
  7. मौर्यो के अत्याचारों एवं विदेशी विचारों के विरूद्ध पुष्यमित्र शुंग के द्वारा राज्य में की गयी क्रांति – निहार रंजन राय।

मौर्यकालीन प्रशासन

मौर्यकालीन प्रशासनिक अधिकारियों का क्रम

ग्रामिक (सबसे नीचे) – गोपा – स्थानिक – युक्त – रज्जुक – प्रादेशिक – विषयपति/समाहर्ता – महामात्य – प्रांतपति – राजा (सर्वोच्च अधिकारी)।

केन्द्रीय प्रशासन

प्रमुख तीर्थ (उच्च अधिकारी)

अर्थशास्त्र के चर्चित अध्यक्ष

प्रांतीय शासन/प्रशासन

मौर्य साम्राज्य पांच बड़े प्रांतों में विभाजित था।

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प्रांत एवं राजधानी

  1. उत्तरापथ – तक्षशिला
  2. दक्षिणापथ – सुवर्णगिरी (कर्नाटक)
  3. अवन्ति – उज्जयिनी
  4. कलिंग – तोसाली
  5. प्राची – पाटलिपुत्र

स्थानीय प्रशासन

मौर्यकाल में जिलों को विषय कहा जाता था। जिले का सर्वोच्च अधिकारी/प्रशासक विजय पति होता था।

जिले में अन्य तीन अधिकारी नियुक्त होते थे –

ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी। परन्तु कुछ गांव को मिलाकर कोटियों का निर्माण होता था जो जिला एवं गांव के मध्यवर्ती स्तर का ध्योतक थी।

जिलाकोटियां/मध्यवर्ती स्तर →ग्राम
स्थानिक द्रोणमुखखार्वटिकसंग्रहण
विषयपति800 ग्रामों का समूह400 ग्रामों का समूह200 ग्रामों का समूह10 ग्रामों का समूहअधिकारी-ग्रामिक
इसका अधिकारी स्थानिक होता था।इसका अधिकारी गोपा होता था।

कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत

इसके अनुसार राज्य के 7 अंग थे –

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राजा (सिर), मंत्री (आंख), मित्र (कान), कर/कोष (मुख), सेना (मस्तिष्क), राज्य (जांघ), दुर्ग (बाहें)।

न्याय प्रशासन

सम्राट न्याय प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था तथा सबसे नीचे ग्राम था।

ग्राम – संग्रहण – द्रोणमुख – स्थानिक – जनपद – पाटलिपुत्र का केन्द्रीय न्यायालय

न्यायालयों का प्रकार

धर्मस्थीय न्यायालय

केटक शोधन न्यायालय

गुप्तचर प्रणाली

राजस्व प्रशासन

राजस्व प्रशासन विस्तृत एवं अत्यधिक केन्द्रीकृत था।

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कृषि पर कर की मात्रा

मौर्यकालीन कर

मौर्यकालीन राजस्व आय के नाम

मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था

कृषि

उधोग-धन्धे एवं व्यापार

मौर्यकालीन बन्दरगाह

  1. पूर्वी तट पर – ताम्रलिप्ति बन्दरगाह।
  2. पश्चिमी तट पर – भडौच तथा सोपारा।
  3. एग्रोनोमोई – यह मार्ग निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारी था।
  4. सार्थवाह – यह व्यापारियों का नेता होता था।
  5. भारत का निर्यात – हाथीदांत, कछुए, सीपी, मोती, रंग, नील, बहुमूल्य लकड़ी।
  6. भारत का आयात – रेशम (चीन से), मोती (ताम्रपर्णी से), चमड़ा (नेपाल से), मदिरा (सीरिया से), घोड़े (पश्चिमी एशिया से)

मौर्यकालीन मुद्रा

तथ्य

मयूर, पर्वत एवं अर्द्धचन्द्र की छाप वाली आहत रजत मुद्राएं मौर्य साम्राज्य में मान्य थी।

मौर्यकालीन समाज

कौटिल्य ने वर्णश्रम व्यवस्था को सामाजिक संगठन का आधार बताया है।

इस काल में मेगास्थनीज के अनुसार 7 जातियां थी-

  1. दार्शनिक, 2. किसान, 3. चरवाहे, 4. शिल्पी/कारीगर, 5. योद्धा, 6. निरीक्षक 7. अमात्य/सभासद

जातिव्यवस्था का स्वरूप कठोर था, कोई भी व्यक्ति जाति से बाहर विवाह नहीं कर सकता था और न ही अपना पेशा बदल सकता था।

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अपवाद – दार्शनिक व ब्राह्मण।

स्त्रियों की दशा

दास प्रथा

मेगास्थनीज ने भारत में दास प्रथा न होना बताया है। परन्तु बौद्ध साहित्य, कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं अशोक के अभिलेखों से दास प्रथा के प्रचलन की पुष्टि होती है।

अर्थशास्त्र में 9 प्रकार के दासों का उल्लेख किया गया है। दासों को कृषि, कारखानों, खदानों आदि में लगाया जाता था। महिला दास गृह कार्य एवं सेवा, सुश्रुसा आदि किया करती थी।

मौर्यकालीन शिक्षा केन्द्र

तक्षशिला, उज्जैन एवं वाराणसी मौर्य काल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे।

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शूद्रों की स्थिति