वर्गिकी (Taxonomy) वर्गीकरण का विज्ञान है, जो जीवों की व्यापक विविधता के अध्ययन को सरल बनाता है और जीवों के विभिन्न समूहों के बीच आंतरिक सम्बन्धो को समझने में हमारी सहायता करता है। पादप जगत में प्रथम स्तर का वर्गीकरण पादप शरीर के अंतर, परिवहन के लिए विशेष ऊतकों की उपस्थिति, बीज धारण करने की क्षमता और बीज के फलों के भीतर पाये जाने पर निर्भर करता है।
पादप वर्गिकी (Plant Taxonomy) के अन्तर्गत पृथ्वी पर मिलने वाले पौधों की पहचान तथा पारस्परिक समानताओं व असमानताओं के आधार पर उनका वर्गीकरण होता है। विश्व में अब तक विभिन्न प्रकार के पौधों की लगभग 4.0 लाख जातियाँ ज्ञात है जिनमें से लगभग 70% जातियाँ पुष्पीय पौधों की है।
विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों तथा उनके क्रियाकलापों के अध्ययन को वनस्पति विज्ञान कहते हैं। तथा थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा जाता है।
थैलोफाइटा (Thallophyta) पहले पादप जगत के एक प्रभाग (division) के रूप में मान्य था लेकिन अब वह वर्गीकरण प्रभावहीन हो गया है। थैलोफाइटा के अन्तर्गत कवक, शैवाल और लाइकेन शामिल थे। कभी-कभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और मिक्सोमाइकोटा (Myxomycota) को भी इसमें सम्मिलित कर लिया जाता था। इनके जनन तंत्र स्पष्ट नहीं होते हैं। इसलिये इन्हें क्रिप्टोगैम (cryptogamae) भी कहा जाता हैं। अब ‘थैलोफाइटा’ को शैवाल, बैक्टीरिया, कवक, लाइकेन आदि असंगत जीवों का समूह माना जाता है। इस समूह में वे पादप आते हैं जिनका शरीर सुपरिभाषित (well-differentiated) नहीं होता।
ब्रायोफाइटा (Bryophyta) वनस्पति जगत का एक बड़ा वर्ग है। इसके अन्तर्गत वे सभी पौधें शामिल हैं जिनमें वास्तविक संवहन ऊतक (vascular tissue) नहीं होते, जैसे – मोसेस (mosses), हॉर्नवर्ट (hornworts) और लिवरवर्ट (liverworts) आदि।
यह संसार के सभी भू-भाग में पाया जाता है, लेकिन यह मनुष्य के लिए किसी विशेष प्रयोग का नहीं है। वैज्ञानिक प्राय: इस एक मत पर ही है कि यह वर्ग हरे शैवाल से पैदा हुआ होगा। पौधों के वर्गीकरण में ब्रायोफाइटा का स्थान शैवाल (Algae) और टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) के बीच में आता है। ब्रायोफाइटा में लगभग 900 वंश और 23,000 जातियाँ हैं।
टेरिडोफ़ाइटा फर्न किस्म के पौधे हैं। इनमें कुछ पौधे आज भी पाए जाते हैं, पर एक समय, 35 करोड़ वर्ष पूर्व, डिवोनी युग में इनका बाहुल्य और साम्राज्य था, जैसा इनके फाँसिलों से ज्ञात होता है और ये संसार के हर भाग में फैले हुए थे। कोयले के फॉसिलों में ये विशेषतः रूप से पाए जाते हैं। टेरिडोफाइटा ही कोयला क्षेत्र की उत्पत्ति के कारण हैं। ये कुछ सेंटीमीटर से लेकर 30 मीटर तक ऊँचे होते थे।
लगभग सात करोड़ वर्षों तक पृथ्वीतल पर इनका आधिपत्य रहा था। बाद में जलवायु के परिवर्तन से इनका पतन होना आरंभ हुआ और विशेषत: इनके बड़े-बड़े पेड़ अब बिलकुल लुप्त हो गए हैं। इनका स्थान क्रमश: विवृतबीज (gymnosperm) और आवृतबीज (angiosperm) कोटि के पौधों ने ले लिया है, पर आज भी छोटे कद के कुछ टेरिडोफाइटा पाये जाते है।
संवहनी पौधों में फूलवाले पौधों को, जिनके बीज नंगे होते हैं, अनावृतबीजी हैं। इनके पौधे मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं। एक तो साइकस की तरह मोटे तने वाले होते हैं, जिनके सिरे पर एक झुंड में लंबी पत्तियाँ निकलती हैं और मध्य में विशेष प्रकार की पत्तियाँ होती हैं। इनमें से जिनमें परागकण बनते हैं उन्हें लघुबीजाणुपर्ण (Microsporophyll) तथा जिनपर नंगे बीजाणु लगे होते हैं उन्हें गुरुबीजाणुपर्ण (Megasporophyll) कहते हैं। इस समूह को साइकाडोफाइटा (Cycadophyta) कहते हैं। अनावृतबीजी पौधों का दूसरा मुख्य प्रकार है कोनिफेरोफाइटा (Coniferophyta), जिसमें पौधे बहुत ही बड़े और ऊँचे होते हैं। संसार का सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा पौधा सिक्वॉय (Sequoia) भी इसी में शामिल है।
आवृतबीजी पौधों में बीज बंद रहते हैं और इस प्रकार यह अनावृतबीजी से भिन्न हैं। इनमें जड़, तना, पत्ती तथा फूल भी होते हैं। एक बहुत ही बृहत् और सर्वयापी उपवर्ग है। इस उपवर्ग के पौधों के सभी सदस्यों में पुष्प लगते हैं, जिनसे बीज फल के अंदर ढकी हुई अवस्था में बनते हैं। ये वनस्पति जगत् के सबसे विकसित पौधे हैं। मनुष्यों के लिये यह उपवर्ग अत्यंत उपयोगी है। बीज के अंदर एक या दो दल होते हैं। आवृतबीजी पौधों में दो वर्ग हैं –