थैलोफाइटा (Thallophyta) पहले पादप जगत के एक प्रभाग (division) के रूप में मान्य था लेकिन अब वह वर्गीकरण प्रभावहीन हो गया है। थैलोफाइटा के अन्तर्गत कवक, शैवाल और लाइकेन शामिल थे। कभी-कभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और मिक्सोमाइकोटा (Myxomycota) को थैलोफाइटा (Thallophyta) पहले पादप जगत के एक प्रभाग (division) के रूप में मान्य था लेकिन अब वह वर्गीकरण प्रभावहीन हो गया है।
थैलोफाइटा के अन्तर्गत कवक, शैवाल और लाइकेन शामिल थे। कभी-कभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और मिक्सोमाइकोटा (Myxomycota) को भी इसमें सम्मिलित कर लिया जाता था। इनके जनन तंत्र स्पष्ट नहीं होते हैं। इसलिये इन्हें क्रिप्टोगैम (cryptogamae) भी कहा जाता हैं। अब ‘थैलोफाइटा’ को शैवाल, बैक्टीरिया, कवक, लाइकेन आदि असंगत जीवों का समूह माना जाता है। इस समूह में वे पादप आते हैं जिनका शरीर सुपरिभाषित (well-differentiated) नहीं होता।
थैलोफाइटा को निम्न भागो में बांटा गया है –
शैवाल (Algae)-
शैवाल या एल्गी (Algae) पादप जगत का सबसे सरल जलीय जीव है, जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करता है। शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) कहते हैं।
शैवाल प्रायः हरितलवक युक्त (cholorophyllous), संवहन ऊतक रहित (Non vascular) स्वपोषी (Autotrophic) होते हैं। इनका शरीर शूकाय सदृश (Thalloid) होता है। ये ताजे जल, समुद्री जल, गर्म जल के झरनों, कीचड़ एवं नदी, तालाबों में पाए जाते हैं। कुछ शैवालों में गति करने के लिए फ्लेजिला (Flagella) होते हैं। बर्फ पर पाये जाने वाले शैवाल को क्रिप्टोफाइट्स (Cryptophytes) तथा चट्टानो पर पाये जाने वाले शैवाल को लिथोफाइट्स (Lithophytes) कहा जाता हैं।
लाइकेन (Lichen)-
लाइकेन से आच्छादित वृक्ष लाइकेन (Lichen) निम्न श्रेणी की ऐसी छोटी वनस्पतियों का एक समूह है, जो विभिन्न प्रकार के आधारों पर उगे हुए पाए जाते हैं। इन आधारों में वृक्षों की पत्तियाँ एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएँ प्रमुख हैं। यद्यपि ये अधिकतर धवल रंग के होते हैं, तथापि लाल, नारंगी, बैंगनी, नीले एवं भूरे तथा अन्य चित्ताकर्षक रंगों के लाइकेन भी पाए जाते हैं। इनकी वृद्धि की गति मंद होती है एंव इनके आकार और बनावट में भी पर्याप्त भिन्नता रहती है।
जीवाणु (Bacteria) –
जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है तथा इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सब जगह पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं।
साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में 4 करोड़ जीवाणु कोष तथा 1 मिलीलीटर जल में 10 लाख जीवाणु होते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग 5X1030 जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे – हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि।
आद्योद्भिद (Protophyta)
आद्योद्भिद (प्रोटोफ़ाइटा) ऐसे एककोशिकीय या बहुकोशीय जीव हैं जो पौधों की तरह अपना भोजन तरल रूप में ही ग्रहण करते हैं। इनको देखने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वानस्पतिक सृष्टि का आदि रूप कैसा रहा होगा। कुछ सामान्य शैवाल (ऐल्गी) भी इसी वर्ग में आते हैं। शैवाल और एककोशिकी प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) दोनों एक साथ एक-कोशजीव (प्रोटिस्टा) वर्ग में रखे जाते हैं। ये संपूर्ण जीवनसृष्टि के आदिरूप माने जाते हें। एक कोशिनों के कई वर्ग हैं, कुछ ऐसे हैं जो तरल रूप से भोजन लेते हैं, कुछ ऐसे हैं जो प्राणियों की तरह ठोस रूप में तथा कुछ ऐसे भी होते हैं जो दोनों प्रकार से भोजन प्राप्त कर सकते हैं।
अंतिम रूपवाले जीव विचारक के सुविधानुसार पौधों या जंतुओं दोनों में से किसी भी श्रेणी में रखे जा सकते हैं। आद्याद्भिद वर्ग में प्रकाश संश्लेषण (फ़ोटोसिंथेसिस) क्रिया होती है। यह क्रिया इन पौधों में पर्णहरिम ओर कभी कभी अन्य रंगों की सहायता से होती है। इस क्रिया में कार्बन डाइ-आक्साइड और पानी से धूप की उपस्थिति में जटिल कारबनिक यौगिक (जैसे स्टार्च, वसा इत्यादि) बनते हैं।
क्रिप्टोगैम (Cryptogam)
क्रिप्टोगैम में प्रजनन बीजाणुओं (spores) की मदद से होता है। ग्रीक भाषा में ‘क्रिप्टोज’ का अर्थ ‘गुप्त‘ तथा ‘गैमीन‘ का अर्थ ‘विवाह करना‘ है। अर्थात् क्रिप्टोगैम पादपों में बीज उत्पन्न नहीं होता। क्रिप्टोगैम को कई बार ‘थैलोफाइटा’, ‘निम्न पादम’ (lower plants), तथा ‘बीजाणु पादप‘ (spore plants) आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। क्रिप्टोगैम समूह पुष्पोद्भिद (Phanerogamae या Spermatophyta) समूह के ‘विलोम समूह’ है। एक समय क्रिप्टोगैम को पादप जगत में एक समूह के रूप में मान्यता थी। कार्ल लिनियस ने पादपों के अपने वर्गीकरण में सम्पूर्ण पादप जगत को 24 वर्गों में बाँटा था जिसमें से एक ‘क्रिप्टोगैमिया‘ था। आधुनिक वर्गिकी ने क्रिप्टोगैम को पादप जगत में स्थान नहीं दिया है क्योंकि समझा गया कि क्रिप्टोगैम कई असंगत समूहो का जमघट मात्र है। वर्तमान वर्गिकी के अनुसार क्रिप्टोगैम में आने वाले केवल कुछ पादपों को ही पादप जगत में स्थान दिया गया है, सभी को नहीं। विशेषतः कवक (फंजाई) को एक अलग जगत के रूप में स्वीकार किया गया है और उन्हें पादपों के बजाय जन्तुओं का निकट सम्बन्धी माना जाता है। इसी प्रकार कुछ शैवालों को अब जीवाणुओं का सम्बन्धी मान लिया गया है।