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भारतीय वनों से संबंधित अन्य विधान
भारतीय वन अधिनियम 1927
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972
वन संरक्षण अधिनियम 1980
क्षतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम 2016
वन अधिकार अधिनियम 2006
भारतीय वन अधिनियम 1927
मार्च 2019 में इस मसौदे के प्रस्तावित किये जाने के बाद से ही कुछ पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं और राज्य सरकारों द्वारा इस प्रस्तावित कानून का विरोध किया जा रहा था।
केंद्र सरकार ने मसौदा वापस लेने का फैसला किया ताकि जनजातीय लोगों और वनवासियों के अधिकार छीने जाने के बारे में किसी भी तरह की आशंका को दूर किया जा सके।
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वन संरक्षण अधिनियम 1980
पारिस्थितिक रूप से संवेदी क्षेत्रों के आस-पास प्रस्तावित किसी परियोजना के मामले में राज्य सरकार द्वारा उस परियोजना के प्रस्ताव को राज्य वन्यजीव बोर्ड के समक्ष रखा जाता है।
राज्य वन्यजीव बोर्ड अपने सुझावों के साथ परियोजना के प्रस्ताव पर आगे कार्रवाई के लिये इसे राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के पास भेजता है।
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की एक स्थायी समिति द्वारा परियोजना की जाँच की जाती है।
वनों के लिये राज्य का बजट अप्रभावित रहेगा और हस्तांतरित की जा रही धनराशि राज्य के बजट के अतिरिक्त होगी।
आशा है कि सभी राज्य इस धनराशि का उपयोग वन और वृक्षों का आवरण बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वानिकी कार्यकलापों में करेंगे, जिससे वर्ष 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के समान अतिरिक्त कार्बन सिंक (यानी वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण) होगा।
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वन अधिकार अधिनियम 2006
हाल ही में महाराष्ट्र के यवतमाल ज़िले में नरभक्षी बाघिन अवनि को मार दिया गया। माना जाता है कि इस बाघिन ने पिछले दो सालों में लगभग 13-14 लोगों की जान ली थी। इस बाघिन के नरभक्षी होने के बावजूद इसकी हत्या का विरोध भी किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि अवनि को अधिकारिक रूप से टी-1 के नाम से जाना जाता था। दरअसल, यह घटनाक्रम वन्यजीवों के संरक्षण हेतु प्रयासों की सच्ची तश्वीर पेश करता है। यह कोई अद्वितीय या नई घटना नहीं है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष भारत में स्थानिक है। इसे आमतौर पर विकास गतिविधि की नकारात्मकता और प्राकृतिक आवासों में गिरावट के रूप में चित्रित किया जा सकता है।
भारत अत्यधिक विविधतापूर्ण जलवायु एवं मृदा का देश है। इसीलिए यहां उष्णकटिबंधीय वनों से लेकर टुंड्रा प्रदेश तक की वनस्पतियां पायी जाती हैं। भारत की प्राकृतिक वनस्पतियों को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है –
ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन
पर्णपाती वन
कटीले वन
पर्वतीय वन
मैंग्रोव वन
1. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन
ये वन सालभर हरे-भरे रहते है 200 सेमी. से अधिक वर्षा के क्षेत्रों में ये मिलते हैं।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र –
सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) में महाराष्ट्र से केरल
पूर्वोत्तर भारत का शिलांग पठार
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप
उत्तरी सह्याद्रि में इन वनों को ‘शोलास वन’ कहा जाता है।
इन वनों की लकड़ियां कठोर होती हैं एवं पेड़ों की ऊंचाई 60 मीटर से भी अधिक होती है
इन वनों के प्रमुख वृक्ष –
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सिनकोना और रबर दक्षिणी सह्याद्रि और अंडमान-निकोबार में मिलते हैं।
2. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन
इन्हें पतझड़ या पर्णपाती वन भी कहते है । ये मुख्य रूप से मानसूनी वन हैं। ये 100 से 200 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र –
सह्याद्रि के पूर्वी ढलान।
प्रायद्वीप के उत्तर पूर्वी पठारी भाग।
शिवालिक श्रेणी के सहारे भाबर व तराई प्रदेश।
मानसूनी वर्षा होने के कारण यहां पर साल भर वर्षा नहीं प्राप्त होती इस कारण यहां पाये जाने वाले वृक्ष सर्दियां बीत जाने के बाद या गर्मी आने से पहले पानी बचाने के लिए अपनी पत्तियां को गिरा देते हैं।
चंदन मुख्य रूप से कर्नाटक तथा नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है।
ये सभी आर्थिक दृष्टिकोण से मूल्यवान हैं।
3. उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन
ये वनस्पतियां 70 से 100 सेमी. वर्षा क्षेत्र में मिलती है। इन वनों में ऊंचे पेड़ों का अभाव मिलता है।
4. कंटीले वन व झाड़ियां
ये वन उन भागों में मिलते हैं जहां वर्षा 70 सेमी. से कम होती है।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र –
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गुजरात से लेकर राजस्थान व पंजाब।
मध्य प्रदेश के इंदौर से आंध्रप्रदेश के कुर्नूल तक अर्ध चंद्राकार पेटी में।
इन वनों में वाष्पीकरण कम करने और जानवरों से सुरक्षा के लिए पत्तों की जगह कांटों ने ले ली है।
इन वनों के प्रमुख वृक्ष –
बबूल, खैर, खजूर, नागफनी, कैक्टस।
5. पर्वतीय वन
पर्वतों पर पाये जाने वाले वन वर्षा का नहीं ,ढ़ाल का अनुसरण करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में तेज गिरावट आ जाती है ।
ऊंचाई के साथ तापमान में तेज गिरावट के कारण सीमित क्षेत्र में ही जलवायु में परिवर्तन दिखाई पड़ता है।
ऊंचाई जलवायु में संशोधन ला सकती है। इसी कारण पर्वत जलवायु में संशोधन कर देते है।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र –
भारत में दो जगह पाये जाते है –
हिमालय पर पर्वतीय वन
1500मी. तक- सदाबहार तथा पतझड़ वन
1500मी. से 2500मी. तक- शीतोष्ण चौड़ी पत्ती वाले वन- देवदार, ओक, बर्च, मैपिल
2500मी. से 4500मी. तक – कोणधारी वन- चीड़, स्प्रूस, फर, सनोवर, ब्लूपाइन
4500मी. से 4800मी. तक- टुण्ड्रा वनस्पति- काई, घास, लिचेन।
4800मी. से ऊपर- कोई वनस्पति नहीं पायी जाती
दक्षिण भारत में पाये जाने वाले पर्वतीय वन
नीलगिरी पर्वत, अन्नामलाई तथा पालनी पहाड़ियों में पाये जाते है।
इन तीनों पहाड़ियों के कुछ-कुछ क्षेत्रों में शीतोष्ण वन पाये जाते हैं जिन्हें दक्षिण भारत में शोलास कहा जाता है।
शोलास वनों के मुख्य वृक्ष है- लारेल एवं मौगनोलिया।
दक्षिण भारत की ये पहाड़यां हिमालय पर्वत की पहाड़ियों जीतनी ऊंची नहीं है। अतः यहां कोणधारी वन नहीं पाये जाते है ।
6. ज्वारीय वन या मैंग्रोव वन
ये छोटे पेड़ या झाड़ी होते हैं जो समुद्र तटों, नदियों के मुहानों पर स्थित ज्वारीय, दलदली भूमि पर पाए जाते हैं। मुख्यतः खारे पानी में इनका विकास होता है।
मैंग्रोव वन मुख्यतः 25 डिग्री उत्तर और 25 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र –
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गंगा नदी का डेल्टा, महानदी का डेल्टा, ब्रह्मपुत्र नदी का डेल्टा, गोदावरी का डेल्टा, कृष्णा का डेल्टा, कावेरी का डेल्टा तथा गुजरात में कुछ भाग में पाये जाते हैं।
ये वन समुद्र के खारे पानी में डूबे रहते है। इन वनों की जड़े पानी के बाहर दिखाई देती है। लकड़ी कठोर होती है तथा छाल क्षारीय होती है।
ब्रह्मपुत्र के डेल्टा में सुंदरी नामक वृक्ष पाया जाता है। इसी वन में बंगाल टाइगर पाया जाता है।
मैंग्रोव वन सुनामी और चक्रवात से तटों की सुरक्षा करता है।
जलीय जीवों की प्रारंभिक नर्सरी का कार्य करता है।
राष्ट्रीय वन नीति
भारत में सबसे पहले 1894 ई. में वन नीति का निर्माण हुआ, जिसको 1952 ई. में तथा 1988 ई. में संशोधित किया गया।
1988 ई. की संशोधित नीति वनों की सुरक्षा, संरक्षण तथा विकास पर जोर देती है। ‘ राष्ट्रीय वन नीति-1988 ’ के अनुसार भारत में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र की प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया है। इसके अनुसार मैदानी भागों में 20 प्रतिशत तथा पर्वतीय भागों में 60 प्रतिशत क्षेत्र को वनाच्छदित करने की आवश्यकता है।
प्रशासनिक आधार पर वनों को तीन भागों में बांटा जाता है –
आरक्षित वन
संरक्षित वन
अवर्गीकृत वन
आरक्षित (स्थाई) वन – ये वे वन है, जिन्हें इमारती लकड़ी या अन्य वन उत्पाद उत्पादित करने के लिए आरक्षित कर लिया गया है। इनमें पशुओं को चराने व खेती की अनुमति नहीं होती है। भारत का आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया है।
संरक्षित वन – इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए उनकी सुरक्षा की जाती है। इनमें पशु चराने व खेती करने की अनुमति विशेष प्रतिबंधों के साथ दी जाती है। देश के कुल वन क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा संरक्षित है।
अवर्गीकृत वन – अन्य सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं। इनमें लकड़ी काटने व पशुचारण पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है।
भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019
यह रिपोर्ट भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) – देहरादून द्वारा प्रत्येक 2 वर्ष में तैयार की जाती है।
FSI, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन आता है।
जारीकर्ता- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय।
वर्ष 1987 से भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट को द्विवार्षिक रूप से ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
30 दिसंबर 2019 को 16वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट जारी की गई।
इस रिपोर्ट में वन एवं वन संसाधनों के आकलन के लिये भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह रिसोर्स सेट-2 से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। रिपोर्ट में सटीकता लाने के लिये आँकड़ों की जाँच हेतु वैज्ञानिक पद्धति अपनाई गई है।
इस रिपोर्ट में वन एवं वन संसाधनों के आकलन के लिये पूरे देश में 2200 से अधिक स्थानों से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग किया गया है।
वर्तमान रिपोर्ट में ‘ वनों के प्रकार एवं जैव विविधता‘ नामक एक नए अध्याय को जोड़ा गया है, इसके अंतर्गत वृक्षों की प्रजातियों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित करके उनका ‘ चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण ‘ के आधार पर आकलन किया जाएगा।
चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण
वर्ष 1936 में हैरी जॉर्ज चैंपियन ने भारत की वनस्पति का सबसे लोकप्रिय एवं मान्य वर्गीकरण किया था।
वर्ष 1968 में चैंपियन एवं एस.के. सेठ ने मिलकर स्वतंत्र भारत के लिये इसे पुनः प्रकाशित किया।
यह वर्गीकरण पौधों की संरचना, आकृति विज्ञान और पादपी स्वरुप पर आधारित है।
इस वर्गीकरण में वनों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित कर उन्हें 221 उपवर्गों में बाँटा गया है।
वनावरण या वन क्षेत्र-
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वह सभी भूमि जिसका क्षेत्रफल 1 हेक्टेयर से अधिक हो और वृक्ष घनत्व 10 % से अधिक हो वनावरण कहलाता है। भूमि का स्वामित्व व कानूनी दर्जा इसे प्रभावित नहीं करता है। यह आवश्यक नहीं है कि इस प्रकार की भूमि अभिलेखित वन में सम्मिलित हो।
वृक्षावरण या वृक्षों से आच्छादित क्षेत्र-
इसमें अभिलेखित वन क्षेत्र के बाहर 1 हेक्टेयर से कम आकार के वृक्ष खंड आते हैं। वृक्ष आवरण में सभी प्रकार के वृक्ष आते हैं, जिनमें छितरे हुए वृक्ष भी सम्मिलित हैं।
ISFR, 2019 से संबंधित प्रमुख तथ्य:
देश में वनों एवं वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल
8,07,276 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56%)
कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वनावरण क्षेत्र
7,12,249 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.67%)
कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वृक्षावरण क्षेत्र
95,027 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.89%)
वनाच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि
3,976 वर्ग किमी. (0.56%)
वृक्षों से आच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि
1,212 वर्ग किमी. (1.29%)
वनावरण और वृक्षावरण क्षेत्रफल में कुल वृद्धि
5,188 वर्ग किमी. (0.65%)
वनों की स्थिति से संबंधित राज्यवार आँकड़े:
सर्वाधिक वनावरण प्रतिशत वाले राज्य:
मिज़ोरम
85.41%
अरुणाचल प्रदेश
79.63%
मेघालय
76.33%
मणिपुर
75.46%
नगालैंड
75.31%
सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्य:
मध्य प्रदेश
77,482 वर्ग किमी
अरुणाचल प्रदेश
66,688 वर्ग किमी.
छत्तीसगढ़
55,611 वर्ग किमी
ओडिशा
51,619 वर्ग किमी.
महाराष्ट्र
50,778 वर्ग किमी.
वन क्षेत्रफल में वृद्धि वाले शीर्ष राज्य:
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कर्नाटक
1,025 वर्ग किमी.
आंध्र प्रदेश
990 वर्ग किमी.
केरल
823 वर्ग किमी.
जम्मू-कश्मीर
371 वर्ग किमी.
हिमाचल प्रदेश
334 वर्ग किमी.
रिपोर्ट से संबंधित अन्य तथ्य:
रिकार्डेड फारेस्ट एरिया:
(Recorded Forest Area) RFA/GW पद का उपयोग ऐसी भूमि के लिये किया जाता है, जिन्हें किसी सरकारी अधिनियम या नियम के तहत वन के रूप में अधिसूचित किया गया हो या उसे सरकारी रिकॉर्ड में ‘वन’ के रूप में दर्ज़ किया गया हो। ISFR-2019 में आद्रभूमियों को भी RFA के तौर पर शामिल किया गया है
इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के रिकार्डेड फारेस्ट एरिया (Recorded Forest Area-RFA/GW) में 330 (0.05%) वर्ग किमी. की मामूली कमी आई है।
भारत में 62,466 आर्द्रभूमियाँ देश के RFA/GW क्षेत्र के लगभग 3.83% क्षेत्र को कवर करती हैं।
भारतीय राज्यों में गुजरात का सर्वाधिक और दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल का आर्द्रभूमि क्षेत्र RFA के अंतर्गत आता है।
भारत के वनों में बढ़ता हुआ कार्बन स्टॉक:
वर्तमान आकलनों के अनुसार, भारत के वनों का कुल कार्बन स्टॉक लगभग 7,142.6 मिलियन टन अनुमानित है। वर्ष 2017 के आकलन की तुलना में इसमें लगभग 42.6 मिलियन टन की वृद्धि हुई है।
भारतीय वनों की कुल वार्षिक कार्बन स्टॉक में वृद्धि 21.3 मिलियन टन है, जो कि लगभग 78.1 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के बराबर है।
भारत के वनों में ‘मृदा जैविक कार्बन’ कार्बन स्टॉक में सर्वाधिक भूमिका निभाते हैं जोकि अनुमानतः 4004 मिलियन टन की मात्रा में उपस्थित हैं।
SOC भारत के वनों के कुल कार्बन स्टॉक में लगभग 56% का योगदान देते हैं।
बाँस क्षेत्र:
इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाँस भूमि लगभग 1,60,037 वर्ग किमी. अनुमानित है। ISFR-2017 की तुलना में कुल बाँस भूमि में 3,229 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
मैंग्रोव वनों की स्थिति:
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देश में मैंग्रोव वनस्पति में वर्ष 2017 के आकलन की तुलना में कुल 54 वर्ग किमी. (1.10%) की वृद्धि हुई है।
पहाड़ी क्षेत्रों की स्थिति:
भारत के पहाड़ी ज़िलों में कुल वनावरण क्षेत्र 2,84,006 वर्ग किमी. है जोकि इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 40.30% है।
वर्तमान आकलन में ISFR-2017 की तुलना में भारत के 144 पहाड़ी जिलों में 544 वर्ग किमी. (0.19%) की वृद्धि देखी गई है।
जनजातीय क्षेत्रों की स्थिति:
भारत के जनजातीय ज़िलों में कुल वनावरण क्षेत्र 4,22,351 वर्ग किमी. है जोकि इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 37.54% है।
वर्तमान आकलन के अनुसार, इन ज़िलों में RFA/GW के अंतर्गत आने वाले कुल वनावरण क्षेत्र में 741 वर्ग किमी. की कमी आई है तथा RFA/GW के बाहर के वनावरण क्षेत्र में 1,922 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
उत्तर-पूर्व क्षेत्र की स्थिति:
उत्तर-पूर्व क्षेत्र में कुल वनावरण क्षेत्र 1,70,541 वर्ग किमी. है जोकि इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 65.05% है।
वर्तमान आकलन के अनुसार, उत्तर-पूर्वीय क्षेत्र में कुल वनावरण क्षेत्र में 765 वर्ग किमी. (0.45%) की कमी आई है।
असम और त्रिपुरा को छोड़कर बाकी सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों के वनावरण क्षेत्र में कमी आई है।
ईंधन की लकड़ियों के लिये आश्रितता:
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भारत में वनों पर ईंधन की लकड़ियों के लिये आश्रित राज्यों में महाराष्ट्र सर्वाधिक आश्रित राज्य है जबकि चारा, इमारती लकड़ी और बाँस पर सर्वाधिक आश्रित राज्य मध्य प्रदेश है।
यह देखा गया है कि भारत के वनों में रहने वाले लोगों द्वारा छोटी इमारती लकड़ी का दोहन भारत के वनों में वार्षिक रूप से होने वाली वृद्धि के 7% के बराबर है।
भारत के कुल वनावरण का 21.40% क्षेत्र वनों में लगने वाली आग से प्रभावित है।
किसी देश की संपन्नता उसके निवासियों की भौतिक समृद्धि से अधिक वहाँ की जैव विविधता से आँकी जाती है। भारत में भले ही विकास के नाम पर बीते कुछ दशकों में वनों को बेतहाशा उजाड़ा गया है, लेकिन हमारी वन संपदा दुनियाभर में अनूठी और विशिष्ट है। ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत वृक्ष हैं, इसलिये वृक्षों पर ही हमारा जीवन आश्रित है। यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो किसी भी जीव-जंतु का अस्तित्व नहीं रहेगा।
वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन 2020
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) 1990 से प्रत्येक 5 वर्ष में इस रिपोर्ट को जारी करता है। इस रिपोर्ट में सदस्य देशों के वन, उनकी हालत और उनके प्रबंधन की रिपोर्ट का आकलन किया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, विश्व का कुल वन क्षेत्र 4.06 बिलियन हेक्टेयर (BHA) है, जो कि कुल भूमि क्षेत्र का तकरीबन 31 प्रतिशत है। ध्यातव्य है कि यह क्षेत्र प्रति व्यक्ति 0.52 हेक्टेयर के समान है। विश्व के वनों का सबसे बड़ा अनुपात उष्णकटिबंधीय (45 प्रतिशत) वनों का है।
विश्व के 54 प्रतिशत से अधिक वन केवल पाँच देशो (रूस, ब्राज़ील, कनाडा, अमेरिका और चीन) में ही मौजूद हैं।
GFRA-2020 के अनुसार वन क्षेत्र की दृष्टि से भारत 10वें स्थान पर रहा था।
वन क्षेत्र के आधार पर शीर्ष 10 देश
रुस
ब्राजील
कनाडा
संयुक्त राज्य अमेरिका
चीन
ऑस्ट्रेलिया
कॉंगो गणराज्य
इंडोनेशिया
पेरू
भारत
सर्वाधिक वार्षिक वन क्षेत्र की वृद्धि के आधार पर भारत का 8वां स्थान है।
GFRA-2020 के अनुसार पिछले 10 वर्षों में वन क्षेत्र बढ़ाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है।
भारत में हर साल वन क्षेत्र में 0.38% की वृद्धि हुई है। 2010-20 के दौरान जिन 10 देशों के वन क्षेत्र में औसतन बढ़ोतरी हुई है, उनमें चीन, ऑस्ट्रेलिया, भारत, चिली, वियतनाम, तुर्की, अमेरिका, फ्रांस, इटली और रोमानिया शामिल है।