स्टडी मटेरियल

मौर्योत्तर काल (185 ई.पू. – 300 ई.)

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।
Get it on Google Play

मोर्योत्तर काल के प्रमुख राजवंश –

शुंग राजवंश (185 ई.पू. से 73 ई.पू.)

अन्तिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर पुष्यमित्र शुंग ने जिस नवीन राजवंश की नींव डाली, वह शुंग वंश के नाम से जाना जाता है। शुंग वंश के इतिहास के बारे में जानकारी साहित्यिक एवं पुरातात्विक दोनों साक्ष्यों से प्राप्त होती है,

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

read more

कण्व राजवंश (लगभग 73 ई. पु. से 28 ई.पु.) 

शुंग वंश का अंतिम राजा देवभूति विलासी राजा था। अपने शासन के अंतिम दिनों में अपने ही अमात्य वसुदेव के हाथों उसकी हत्या कर दी गई। इसकी जानकारी हर्षचरित से मिली। वसुदेव ने जिस नवीन वंश की स्थापना की वह कण्व वंश के नाम से जाना जाता है। इसमें केवल चार ही शासक हुए-वासुदेव, भूमिमित्र, नारायण, और सुशर्मा

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

read more

कुषाण राजवंश (78 ई. पू. से 44 ई. पु.)

मौर्योत्तर कालीन विदेशी आक्रमणकारियों में कुषाण वंश सबसे महत्वपूर्ण है। पह्लवों के बाद भारतीय क्षेत्र में कुषाण आए जिन्हें यूची और तोखरी भी कहते है। कुषाणों ने सर्वप्रथम बैक्ट्रिया और उत्तरी अफगानिस्तान पर अपना शासन स्थापित किया तथा वहाँ से शक् शासकों को भगा दिया। अन्ततः उन्होंने सिंधु घाटी (निचले) तथा गंगा के मैदान के अधिकांश क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया।

read more

सातवाहन राजवंश (60 ई. पु. से 240 ई. पु.)

सातवाहन वंश का शासन क्षेत्र मुख्यतः महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक था। पुराणों में इन्हें आंध्र भृत्य कहते है तथा अभिलेखों में सातवाहन कहा गया है। पुराणों में इस वंश का संस्थापक सिमुक (सिन्धुक) को माना गया है जिसने कण्व वंश के राजा सुशर्मा को मारकर सातवाहन वंश की नींव रखी।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

read more

मौर्योत्तर कालीन इतिहास के बारे में जानने हेतु साक्ष्य –

साक्ष्य

पुरातात्विक साक्ष्यमौर्योत्तर कालीन सिक्केसाहित्यिक साक्ष्य
रूद्रदामन का गिरनार या जूनागढ़ अभिलेख, अयोध्या अभिलेख, हाथीगुफा अभिलेख, नासिक प्रसस्ति, अमरावती अभिलेख, बेसनगर अभिलेख, कन्हेरी अभिलेखगार्गी संहिता, मालविकाग्निमित्रम, दिव्यावदान, निलिन्द पन्हो, महाभाष्य, पेरीप्लस ऑफ़ – इरिर्थियन सी, प्लनी, टाॅलमी, स्ट्रेबो आदि विदेशी ग्रंथ।

महत्वपूर्ण मौर्योत्तर कालीन अभिलेख-

1. रूद्रदामन का गिरनार/जूनागढ़ अभिलेख

2. अयोध्या अभिलेख

3. खारवेल का हाथीगुफा अभिलेख – (प्रथम प्रशस्ति अभिलेख)

4. नासिक प्रशस्ति – (गौतमी पुत्र सातकर्णी के विषय में)

5.नाना घाट अभिलेख

यह सातकर्णी प्रथम से संबंधित है।

इसके अनुसार, सातकर्णी प्रथम ने 2 अश्वमेध यज्ञ करवाए थे।

6. बेसनगर अभिलेख

मौर्योत्तरकाल के सिक्के

इस काल में पहली बार सिक्कों पर विभिन्न राजवंश एवं शासकों के नाम लिखने की प्रथा का विकास हुआ।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

सर्वप्रथम इण्डो-ग्रीक (यूनानी-हिन्द यवन) के शासकों ने ही सोने के सिक्के जारी किए।

मौर्योत्तरकालीन साहित्यिक साक्ष्य

1. गार्गी संहिता

2. मालविकाग्निमित्रम्

  1. इस नाटक की रचना कालिदास के द्वारा की गयी है।
  2. कालिदास का प्रथम नाटक।
  3. अग्निमित्र की विदर्भ विजय की जानकारी।
  4. अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने यवनों को हराया था।

3. दिव्यावदान

यह बौद्ध ग्रंथ है।

4. महाभाष्य

इसके लेखक पतंजलि हैं।

यवन आक्रमण की जानकारी मिलती है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के राजपुरोहित थे।

5. पेरिप्लस ऑफ़ इरिथ्रियन सी

लेखक के नाम की जानकारी नहीं।

यह ग्रीक भाषा में है।

भारत एवं रोम व्यापार की विस्तृत चर्चा मिलती है।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

6. प्लिनी (77 ई.)

इनकी पुस्तक नेचुरल हिस्टोरिका है।

भारत-इटली व्यापार की जानकारी।

तथ्य

भारत रोम का व्यापार इतना समृद्ध था तथा भारत का निर्यात इतना अधिक था कि प्लिनी कहता है – “भारत हर वर्ष रोम से 5500 करोड़ सिस्टर्स (रोमन मुद्रा) प्राप्त करता है।”

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

मौर्योत्तर कालीन राजवंश

शुंग वंश

पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी

तथ्य

भरहुत स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने करवाया था। पुष्यमित्र ने सांची स्तूप की लकड़ी की वेदिका के स्थान पर पत्थर की वेदिका का निर्माण करवाया।

कण्व वंश

इस वंश की स्थापना वसुदेव के द्वारा अंतिम शुंग शासक देवभूति की हत्या करके की गयी।

इस वंश में केवल 4 राजा हुए –

  1. वासुदेव, 2. भूमिमित्र 3. नारायण एवं 4. सुशर्मा/सुशर्मन

अंतिम शासक सुशर्मा/सुशर्मन की हत्या सिमुंक ने की एवं सातवाहन वंश की स्थापना की।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

सातवाहन वंश

कृष्ण

यह सिमुक का भाई था। इसने सातवाहन साम्राज्य को नासिक तक बढ़ाया।

नासिक की गुफाओं की स्थापना की।

शातकर्णी प्रथम

हाल

हाल के सेनापति विजयानन्द ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त की।

गौतमी पुत्र शातकर्णी

  1. यह सातवाहन वंश का महानतम शासक था।
  2. इसके शासन एवं उपलब्धियों के बारे में जानकारी नासिक अभिलेख से प्राप्त होती है।
  3. नासिक अभिलेख में इसे एकमात्र ब्राह्मण या अद्वितीय ब्राह्मण कहा गया है।
  4. इसने खतियदपमानमदनस की उपाधि धारण की।
  5. नासिक अभिलेख में इसे ‘त्रिसमुद्रतोयपितवाहन‘ कहा गया है।
  6. इसने शक् शासक नहपान को पराजित किया था।
  7. उपाधियां – राजाराज, वेंकटस्वामी, विन्ध्य नरेश की उपाधियां ग्रहण की।

विशिष्ठी पुत्र पुलमावी

यज्ञश्री शातकर्णी

यह सातवाहन वंश का अंतिम शासक था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

इसके सिक्कों पर नाव के चित्र अंकित हैं।

तथ्य

खारवेल

इक्वाकु वंश

वाकाटक वंश

  1. सातवाहन वंश के पतन से लेकर चालुक्यों के उदय के बीच दक्कन में सबसे शक्तिशाली एवं प्रमुख राजवंश वाकाटक था।
  2. संस्थापक – पुराणों के अनुसार वाकाटक वंश का संस्थापक विन्ध्यशक्ति था।
  3. राजधानी – वाकाटकों की प्रारंभिक राजधानी पुरिका (बरार) थी।

विन्ध्य शक्ति

यह वाकाटक वंश का संस्थापक, ब्राह्मण धर्म को मानने वाला।

पुराणों में इसकी तुलना इंद्र एवं विष्णु से की गयी है।

वाकाटक राजवंश

विन्ध्य शक्ति शाखाबेसिम शाखा
संस्थापक: विन्ध्यशक्तिसंस्थापक: सर्वसेन

प्रवरसेन प्रथम

पृथ्वीसेन प्रथम

गुप्त साम्राज्य से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने के लिए पुत्र रूद्रसेन-2 का विवाह चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त से किया था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

प्रवरसेन द्वितीय/दामोदर सेन

पृथ्वीसेन द्वितीय

यह विन्ध्यशक्ति शाखा का अंतिम शासक था।

हरिषेण

इसके बाद वाकाटाकों का इतिहास समाप्त हो गया।

मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमण

विदेशी आक्रमणकारियों का क्रम-

यवन (हिन्द-यूनानी) /इंडो-ग्रीक – पार्थियन (पहलव) – कुषाण।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

हिन्द-यवन/इंडो ग्रीक

मौर्योत्तर काल की सबसे प्रमुख राजनीतिक घटना भारत पर यूनानी आक्रमण थी।

बैक्ट्रिया के यवनों द्वारा भारत पर आक्रमण के मुख्य कारण

बैट्रिया शासकों का भारत पर आक्रमण

भारत पर आक्रमण करने वाला सबसे पहला यवन (ग्रीक) आक्रमणकारी डेमेट्रियस प्रथम था।

बैट्रिया में विद्रोह होने के कारण नए क्षेत्र की चाह में यूकेटाइड्स ने भारत पर आक्रमण कर दिया। अतः भारत में दो कुलों का शासन स्थापित हुआ।

बैक्ट्रिया के यवन

डेमेट्रियस वंशयूक्रेटाइड्स वंश
संस्थापक: डेमेट्रियस प्रथमयूक्रेटाइड्स
राजधानी: साकल (श्यालकोट)तक्षशिल
प्रतापी शासक: मिनांडर (मिलिन्द)एण्टियाल कीड्स

मिनांडर (मिलिन्द)

एण्टियाल कीड्स

यह यूक्रेटाइड्स वंश से था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

इसने शुंग शासक भागभद्र के विदिशा दरबार में एक राजदूत हेलियोडोरस को भेजा था। हेलियोडोरस ने भागवत् धर्म ग्रहण किया एवं विदिशा में गरूण स्तंभ की स्थापना की।

यूनानी संपर्क का महत्व

शक आक्रमण

यूनानियों के बाद एशिया के शकों ने भारत पर आक्रमण किया।

भारत में शकों की कुल 5 शाखाएं थी –

1.अफगानिस्तान (महाभारत से बाहर बस गयी थी) 2. पंजाब शाखा 3. मथुरा शाखा 4. महाराष्ट्र या नासिक शाखा 5. मालवा शाखा।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

पंजाब शाखा

राजधानी – तक्षशिला।

इस शाखा के शासक एजेलिसेज के सिक्कों पर भारतीय देवी लक्ष्मी अंकित।

मथुरा शाखा

ये मालवा से राजा विक्रमादित्य द्वारा भगाए गए शासक थे।

मथुरा शाखा का प्रथम शासक राजुल था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

महाराष्ट्र शाखा

मालवा शाखा

पार्थियन (पह्लन वंश)

पार्थियन मध्य एशिया में ईरान से आए थे।

पार्थियन साम्राज्य का संस्थापक मिथ्रोडेट्स-1 था।

भारत में पार्थियन साम्राज्य का प्रथम शासक माओ/मायो माउस था, परन्तु वास्तविक संस्थापक मिथ्रोडेट्स-1 था।

कुषाण वंश

कुषाण मध्य एशिया के यूची जाती के लोग थे।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

भारत पर सर्वप्रथम आक्रमण करने वाला कुषाण शासक कुजुल फडफिसस था।

विम फडफिसस

यह कुषाण शक्ति का वास्तविक संस्थापक था इसने तक्षशिला एवं पंजाब पर अधिकार कर लिया था।

इसके सिक्कों पर एक ओर यूनानी लिपि एवं दुसरी ओर खरोष्ठी लिपि।

इसके सिक्कों पर शिव, नंदी बैल एवं त्रिशूल की आकृति अंकित थी।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

कनिष्क

कनिष्क के दरबार के विद्वान

पाश्र्व, वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन एवं चरक।

कनिष्क के उत्तराधिकारी –

वासिष्क – हुविष्क एवं वासुदेव (कनिष्क काल का अंतिम शासक)

मौर्योत्तर कालीन प्रशासन

मौयोत्तर कालीन अर्थव्यवस्था

मौर्योत्तर कालीन बन्दरगाह

सोपारा (पश्चिमी तट), भडौच (गुजरात), देवल (सिन्धु), नागपत्तनम (तमिल तट), मूसली पत्तनम, मुजरिस आदि।

मौर्योत्तर कालीन सिक्के

मौर्योत्तर कालीन समाज

इस काल में समाज को प्रभावित करने वाले दो महत्वपूर्ण काम हुए –

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।
  1. भारतीय समाज में बड़ी संख्या में जनजातियों को मिलाया गया।
  2. इस काल में विदेशिओं का भी आत्मसातीकरण हुआ।

प्राचीन भारत में विदेशिओं का सर्वाधिक आत्मसातीरण इसी काल में हुआ तथा जनजातियों एवं विदेशिओं के मिलने से समाज में वर्णशंकरों की संख्या में वृद्धि हुई जिससे इस काल में शूद्रों की सामाजिक स्थिति में सुधार आया।

महिलाओं की दशा

तथ्य

कुषाणों ने केवल तांबे एवं सोने के सिक्के चलाए थे चांदी के नहीं।

कुषाणों की राजभाषा संस्कृत थी।

मथुरा “साल्क” नामक कपड़े के लिए प्रसिद्ध था।

कॉम्पिटिशन एक्साम्स की बेहतर तयारी के लिए अभी करियर टुटोरिअल ऍप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें।

इस काल में अनुलोम (उच्च वर्ण का पुरूष, निम्न वर्ण की स्त्री) विवाह को अनुमति प्राप्त थी।

धार्मिक स्थिति