- स्थापना – 185 ई. पू.
- शासनकाल – 185 ई.पू. से 73 ई.पू.
- संस्थापक – पुष्यमित्र शुंग
- पतन – 73 ई.
शुंग वंश प्राचीन भारत का एक ब्राह्मण वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद राज किया। इसका शासन उत्तर भारत में 185 ई.पू. से 73 ई.पू. तक (112 वर्षों तक) था। पुष्यमित्र शुंग इस राजवंश का प्रथम शासक था। शुंग वंश की उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित खबर नहीं है। शुंग उज्जैन प्रदेश के थे, जहाँ इनके पूर्वज मौर्यों की सेवा में थे। शुंगवंशीय पुष्यमित्र अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति था। उसने अपने स्वामी की हत्या करके सत्ता हासिल की थी। इस नवोदित राज्य में मध्य गंगा की घाटी एवं चम्बल नदी तक का प्रदेश शामिल था। पाटलिपुत्र, अयोध्या, विदिशा आदि इसके महत्त्वपूर्ण नगर थे। दिव्यावदान एवं तारनाथ के अनुसार जलंधर और साकल नगर भी इसमें शामिल थे।
इस वंश के शासकों की सूची इस प्रकार है –
- पुष्यमित्र शुंग (185 – 149 ई )
- अग्निमित्र (149 – 141ई )
- वसुज्येष्ठ (141 – 131 ई )
- वसुमित्र (131 – 124ई )
- अन्ध्रक (124 – 122 ई )
- पुलिन्दक (122 – 119ई )
- घोष शुंग
- वज्रमित्र
- भगभद्र
- देवभूति (83 – 73 ई)
पुष्यमित्र शुंग (185 – 149 ई )
पुष्यमित्र शुंग, जो बृहद्रथ मौर्य की सेना का सेनापति था, ने सेना का निरीक्षण करते समय बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर दी। और सत्ता पर कब्ज़ा कर बैठा था। पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक शासन किया और उसके बाद उसका पुत्र अग्निमित्र सत्तासीन हुआ। आठ वर्षों तक राज करने के बाद 140 ईसापूर्व के पास उसका पुत्र जेठमित्र (ज्येष्ठमित्र) राजा बना।
पुष्यमित्र के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना थी, पश्चिम से यवनों (यूनानियों) का हमला । वैयाकरण पतंजलि, जो कि पुष्यमित्र का समकालीन थे, ने इस आक्रमण का उल्लेख किया है। कालिदास ने भी अपने नाटक मालविकाग्निमित्रम में वसुदेव का यवनों के साथ लड़ाई का ज़िक्र किया है। भरहुत स्पूत का निर्माण पुष्यमित्र ने करवाया था शुंग शासकों ने अपनी राजधानी विदिशा में स्थापित किया था।
पुष्यमित्र के उत्तराधिकारी
अग्निमित्र
पुष्यमित्र की मृत्यु (148 इ.पू.) के पश्चात उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग वंश का राजा हुआ। वह विदिशा का उपराजा था। उसने कुल 8 वर्षों तक शासन किया।
वसुज्येष्ठ या सुज्येष्ठ
अग्निमित्र के बाद वसुज्येष्ठ राजा हुआ।
वसुमित्र
शुंग वंश का चौथा राजा वसुमित्र था । उसने यवनों को परास्त किया था। एक दिन नृत्य का आनन्द लेते समय मूजदेव नामक व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी। उसने 10 वर्षों तक राज किया। वसुमित्र के बाद भद्रक, पुलिंदक, घोष तथा फिर वज्रमित्र क्रमशः शासक हुए। इसके शाशन के 14वें वर्ष में तक्षशिला के यवन नरेश एंटीयालकीड्स का राजदूत हेलियोंडोरस उसके विदिशा स्थित दरबार में उपस्थित हुआ था। वह अत्यन्त विलासी प्रवृति का शासक था। उसके अमात्य वसुदेब कण्व ने उसकी हत्या कर दी। इस प्रकार शुंग वंश का पतन हो गया।
महत्व
इस वंश के राजाओं ने मगध साम्रज्य के केन्द्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शान्ति और सुव्यव्स्था की स्थापना कर विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा। मौर्य साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर उन्होंने वैदिक संस्कृति के आदर्शों की प्रतिष्ठा की। यही कारण है कि उसका शासनकाल वैदिक पुनर्जागरण का काल माना जाता है।
विदर्भ युद्ध
मालविकाग्निमित्रम के अनुसार पुष्यमित्र के काल में लगभग 184इ.पू.में विदर्भ युद्ध में पुष्यमित्र की विजय हुई और राज्य दो भागों में बांट दिया गया। वर्धा नदी (गोदावरी की सहायक नदी) दोनों राज्यों कीं सीमा मान ली गई। दोनो भागों के नरेश ने पुष्यमित्र को अपना सम्राट मान लिया तथा इस राज्य का एक भाग माधवसेन को प्राप्त हुआ। पुष्यमित्र का प्रभाव क्षेत्र नर्मदा नदी के दक्षिण तक विस्तृत हो गया। इस वंश का अन्तिम शासक देवभूति था, जिसकी हत्या उसके मंत्री ने की थी।
यवनों का आक्रमण
यवनों को मध्य देश से निकालकर सिन्धु के किनारे तक खदेङ दिया और पुष्यमित्र के हाथों सेनापति एवं राजा के रूप में उन्हें पराजित होना पङा। यह पुष्यमित्र के काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी।